मुम्बई। कुणाल कामरा ने अपनी एक टीशर्ट पर कुत्ते का मूतना दिखाकर, आरएसएस का मजाक उड़ाते हुए दिखने की कोशिश की है। वह सालों से अपनी मुर्खताओं की गलियों में भटक रहा है। भाई, हास्य का यह तरीका तो फफूंद लगी रोटी की तरह लग रहा है, जो न हंसी लाती है न पेट भरती है। चलो, हम तुम्हें एक नया रास्ता दिखाते हैं, ताकि तुम्हारा पिछवाड़ा सुलगना बंद हो और कुछ सार्थक कर सको क्योंकि तुम्हारे कहे और लिखे में हास्य सूख गया है।
सबसे पहले, अपनी कॉमेडी को राजनीतिक गटर से निकालो। देश में हंसी-मजाक के लिए ढेर सारे विषय हैं—ट्रैफिक, बॉय फ्रेन्ड—गर्ल फ्रेन्ड के झगड़े, या फिर अपने ही चुटकुले जो फ्लॉप हो गए।
कुत्ते का मूतना ठीक है, लेकिन इसे संघ या किसी संगठन से जोड़ना तुम्हारी बुद्धि को महागठबंधन का गोबर साबित करता है। जो ना लिपने के काम आएगा और ना ही तुम्हारे चेहरे पर पोतने के!
क्यों नहीं अपनी ऊर्जा उस रेलवे जांच में लगाते, जहां तुम्हारे दावों को झूठा साबित किया गया? वहां से कुछ ठोस निकालो, न कि सोशल मीडिया पर मिम्स के चक्कर में बार-बार भगोड़े की अपनी पहचान जाहिर करो।
दूसरा, अपने महागठबंधन वाले फॉलोअर्स को गंभीरता से लो। वे तुमसे टीशर्ट मांग रहे हैं, लेकिन क्या वे तुम्हारी सोच को समझते हैं? उन्हें हंसी दो, न कि कुत्ते की मूत का ढेर।
तीसरा, पुराने विवाद-गोस्वामी, शिंदे, या कोर्ट-को भूल जाओ। वे तुम्हें ड्रामा क्वीन बनाते हैं, न कि कॉमेडियन। नया रास्ता यही है-साफ-सुथरी हंसी, जो दिल को छुए, न कि गुस्सा दिलाए।
2025 में देश आगे बढ़ रहा है, और तुम पीछे की गलियों में कुत्तों के पीछे भाग रहे हो। अपना स्टाइल बदलो, कंटेंट को ताजा करो। वरना, तुम्हारा यह मूतने वाला जोक इतिहास बनकर रह जाएगा, और तुम्हारा पिछवाड़ा सुलगता ही रहेगा। रास्ता साफ है, कुणाल—हंसाओ, मत उकसाओ, और अपनी कला को सम्मान दो! वर्ना मुम्बई से भाग कर चेन्नई गए और वहां से भागना पड़ा तो कहां जाओगे!



