क्या ‘अमेरिका फर्स्ट’ नीतियाँ दुनिया को तबाही की ओर ले जा रही हैं?

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अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प की ‘अमेरिका फर्स्ट’ नीतियों ने वैश्विक अर्थव्यवस्था में एक ज़लज़ला ला दिया है। शेयर बाजार में खौफ़ का माहौल है और अर्थशास्त्री ग्लोबल साउथ पर इसके विनाशकारी प्रभावों की चेतावनी दे रहे हैं। भारत जैसे देश, जो अभी आर्थिक विकास की राह पर चले ही थे, अब इस तूफ़ान की चपेट में आ रहे हैं। क्या धमकियों और लेन-देन पर आधारित विदेश नीति से अमन कायम हो सकता है या फ़जीते का रायता फैलता चला जाएगा? यह सवाल दुनिया भर के नेताओं के ज़ेहन में गूंज रहा है।

ट्रम्पवाद, अपने मूल में, एक कट्टरपंथी विचारधारा है जो मध्यकालीन पूंजीवाद की असफलताओं का समाधान पेश करती है। प्रोफेसर परस नाथ चौधरी कहते हैं, “यह राष्ट्रीय हितों और अहंकार को प्राथमिकता देता है, जो राज्य के प्रति निष्ठा को सबसे ऊपर रखता है। यह घरेलू सरमायेदारों को बढ़ावा देता है, जो स्थानीय अभिजात वर्ग को फायदा पहुंचाने वाली आर्थिक नीतियों का समर्थन करते हैं। वर्तमान हालात संकेत देते हैं कि वैश्वीकरण, जो कभी समृद्धि का ज़रिया था, अब कमजोर हो रहा है। नव राष्ट्रवाद का उदय तनाव का सबब बन सकता है। अंकल सैम का ट्रम्पवाद जलवायु परिवर्तन या गरीब देशों में भूख और बीमारियों से पीड़ित लाखों लोगों के प्रति बेपरवाह है।”

ट्रम्पवाद के समर्थक तर्क देते हैं कि स्थानीय व्यवसायों और एलन मस्क जैसे शक्तिशाली व्यक्तियों को प्राथमिकता देने से अर्थव्यवस्थाओं को नई ऊर्जा मिलेगी। हालांकि, व्यवसायी राजीव गुप्ता चेतावनी देते हैं कि यह दृष्टिकोण एक खतरनाक तंग-नज़री को जन्म देता है, जो देशों को अंतर्राष्ट्रीय सहयोग से दूर करता है।

सामाजिक कार्यकर्ता चतुर तिवारी कहते हैं, “घरेलू सरमायेदारों को बढ़ावा देने से असमानता बढ़ती है और प्रतिस्पर्धा कम होती है। यह माहौल कुछ लोगों को फायदा पहुंचा सकता है, लेकिन यह समाज के लिए हानिकारक भी है।”

आंतरिक रूप से, ट्रम्पवाद असहमति को दबाकर और विभाजन को बढ़ावा देकर तनाव बढ़ा रहा है। समाज शास्त्री त्रिलोक स्वामी के मुताबिक “इस तरह की विचारधाराएं नाकाम हैं और समाज को बांटती हैं। राष्ट्र के प्रति गर्व लोकतांत्रिक सिद्धांतों की कीमत पर नहीं होना चाहिए।”

वैश्विक स्तर पर, ट्रम्प की ‘अमेरिका फर्स्ट’ नीतियों ने अमेरिका की विश्वसनीयता को कम किया है। उनकी लेन-देन वाली विदेश नीति ने पुराने सहयोगियों को दूर किया है और प्रतिद्वंद्वियों को मजबूत किया है। समाजवादी विचारक राम किशोर कहते हैं, “अमेरिकन ड्रीम अब टूट चुका नाइटमेयर बनकर रह गया है।”

आर्थिक रूप से, ट्रम्प की नीतियां अमेरिका को एक बहुध्रुवीय दुनिया में हाशिए पर धकेलने की तरफ अग्रसर हैं। वैश्विक अर्थव्यवस्था इंटरडिपेंडेंट यानी एक दूसरे से जुड़ी हुई है, और कोई भी देश अकेले नहीं फल-फूल सकता है। बिहार के विद्वान टी.पी. श्रीवास्तव कहते हैं, “दुनिया ज्ञानोदय के युग में प्रवेश कर चुकी है, जहां सहयोग महत्वपूर्ण है। पुराने मॉडलों से चिपके रहकर, अमेरिका पीछे रह जाएगा।”

ट्रम्प के विस्तारवादी रुझान वैश्विक तनाव को उकसा रहे हैं। उनकी लेन-देन वाली कूटनीति संप्रभुता का उल्लंघन करती है। बुद्धिजीवी टी.एन. सुब्रमण्यम कहते हैं, “पुतिन के प्रति ट्रम्प का रवैया चिंताजनक है।” यूक्रेन में बेवजह दाखिल होना और युद्ध थोपने के लिए, रूसी राष्ट्रपति पुतिन का बहिष्कार ही नहीं, कार्यवाही भी होनी चाहिए थी, लेकिन ट्रंप ने हमलावर से हाथ मिलाकर गलत संदेश दिया है।

उधर मध्य पूर्व में, ट्रम्प की नीतियां समाधान कम, तनाव को ज्यादा बढ़ा रही हैं। मानवीय संकटों से निपटने की उनकी रणनीति में कमी है, जिससे अमेरिका की नैतिक प्रतिष्ठा को नुकसान पहुंचा है। जाहिर है अंतरराष्ट्रीय स्तर पर अब अमेरिका की सुपर पावर की छवि विकृत हो रही है।

ट्रम्पवाद का वैश्विक प्रभाव एक चेतावनी है कि संकीर्ण सोच वाली नीतियां विभाजन, असमानता और घटती वैश्विक प्रतिष्ठा की ओर ले जाती हैं। जैसे-जैसे देश इसके परिणामों से जूझ रहे हैं, दुनिया को सहयोग और समावेशिता के लिए प्रयास करना होगा ताकि ऐसी विचारधाराओं से उत्पन्न चुनौतियों का सामना किया जा सके। लेकिन विश्व शांति के पनघट की ये डगर आसान नहीं है।

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Brij Khandelwal

Brij Khandelwal

Brij Khandelwal of Agra is a well known journalist and environmentalist. Khandelwal became a journalist after his course from the Indian Institute of Mass Communication in New Delhi in 1972. He has worked for various newspapers and agencies including the Times of India. He has also worked with UNI, NPA, Gemini News London, India Abroad, Everyman's Weekly (Indian Express), and India Today. Khandelwal edited Jan Saptahik of Lohia Trust, reporter of George Fernandes's Pratipaksh, correspondent in Agra for Swatantra Bharat, Pioneer, Hindustan Times, and Dainik Bhaskar until 2004). He wrote mostly on developmental subjects and environment and edited Samiksha Bharti, and Newspress Weekly. He has worked in many parts of India.

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