लद्दाख : सुरक्षा और समृद्धि के लिए राज्य का दर्जा या स्वायत्तता का रास्ता

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लद्दाख, भारत का एक विशाल और दुर्गम भूभाग, अपनी अनूठी भौगोलिक, सांस्कृतिक और सामरिक स्थिति के कारण लंबे समय से चर्चा का विषय रहा है। 5 अगस्त 2019 को जम्मू-कश्मीर से अनुच्छेद 370 हटने और लद्दाख को केंद्रशासित प्रदेश बनाए जाने के बाद, यह सवाल और प्रासंगिक हो गया है कि क्या लद्दाख को पूर्ण राज्य का दर्जा देना चाहिए!

लद्दाख की भौगोलिक और जनसांख्यिक स्थिति

लद्दाख का क्षेत्रफल लगभग 59,146 वर्ग किलोमीटर है, लेकिन इसकी जनसंख्या केवल 2.74 लाख (2011 की जनगणना के अनुसार) है। यह भारत के सबसे कम जनसंख्या घनत्व वाले क्षेत्रों में से एक है, जहाँ प्रति वर्ग किलोमीटर केवल 4-5 लोग रहते हैं। तुलना के लिए, पुडुचेरी, जो सबसे छोटा विधानमंडल वाला केंद्रशासित प्रदेश है, की आबादी 12 लाख से अधिक है और वहाँ 30 विधायकों की विधानसभा है।

इतनी कम जनसंख्या के लिए लद्दाख को पूर्ण राज्य बनाना अव्यवहारिक और आर्थिक रूप से बोझिल हो सकता है। केंद्रशासित प्रदेश के रूप में, लद्दाख को केंद्र सरकार से प्रति व्यक्ति अधिक वित्तीय सहायता मिलती है। उदाहरण के लिए, 2023-24 के केंद्रीय बजट में लद्दाख को 5,958 करोड़ रुपये आवंटित किए गए, जो प्रति व्यक्ति आधार पर कई राज्यों से अधिक है। यह सहायता क्षेत्र की बुनियादी ढांचा परियोजनाओं, जैसे सड़क, बिजली और संचार, के लिए महत्वपूर्ण है।

सामरिक और सुरक्षा संबंधी चिंताएँ

लद्दाख की सीमाएँ चीन और पाकिस्तान से लगती हैं, जो इसे सामरिक दृष्टि से अत्यंत संवेदनशील बनाती हैं। 2020 के गलवान संघर्ष ने इस क्षेत्र की सुरक्षा चुनौतियों को और उजागर किया। पूर्ण राज्य का दर्जा देने से भूमि उपयोग, बुनियादी ढांचा विकास और अन्य नीतिगत निर्णयों में राज्य सरकार को अधिक अधिकार मिल सकते हैं। यह सैन्य रसद और राष्ट्रीय सुरक्षा से जुड़ी परियोजनाओं, जैसे सड़क निर्माण और अग्रिम हवाई पट्टियों, को जटिल बना सकता है। वर्तमान में, केंद्र सरकार की प्रत्यक्ष निगरानी के कारण सीमावर्ती क्षेत्रों में त्वरित निर्णय लेना संभव है। उदाहरण के लिए, लद्दाख में BRO (सीमा सड़क संगठन) द्वारा निर्मित सड़कें, जैसे दौलत बेग ओल्डी रोड, राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए महत्वपूर्ण हैं। यदि राज्य सरकार को इन परियोजनाओं पर नियंत्रण मिलता है, तो नौकरशाही देरी और स्थानीय राजनीतिक दबाव प्रगति को बाधित कर सकते हैं।

लेह और कारगिल के बीच मतभेद

लद्दाख में लेह और कारगिल के बीच धार्मिक, सांस्कृतिक और राजनीतिक मतभेद लंबे समय से मौजूद हैं। लेह में मुख्य रूप से बौद्ध आबादी (लगभग 66%) है, जबकि कारगिल में शिया मुस्लिम बहुसंख्यक (लगभग 77%) हैं। 2019 में केंद्रशासित प्रदेश बनने के बाद, लेह में उत्साह देखा गया, लेकिन कारगिल में कुछ असंतोष था, क्योंकि वहाँ के निवासियों को जम्मू-कश्मीर के साथ कुछ सांस्कृतिक और आर्थिक जुड़ाव महसूस होता था। पूर्ण राज्य का दर्जा देने से इन मतभेदों के ध्रुवीकरण का जोखिम बढ़ सकता है। एक विधानसभा इन क्षेत्रों के बीच संसाधनों और प्रतिनिधित्व को लेकर तनाव को और गहरा सकती है। इसके विपरीत, वर्तमान में लेह और कारगिल में लद्दाख स्वायत्त पहाड़ी विकास परिषद (LAHDC) स्थानीय शासन के लिए प्रभावी मंच प्रदान करती हैं।

छठी अनुसूची और LAHDC का सशक्तिकरण

लद्दाख की लगभग 97% जनसंख्या अनुसूचित जनजाति (ST) है, जिसमें बौद्ध, शिया मुस्लिम, और अन्य समुदाय शामिल हैं। छठी अनुसूची लागू करना लद्दाख के लिए एक व्यावहारिक समाधान हो सकता है। यह अनुसूची स्वायत्त जिला परिषदों को भूमि, संस्कृति और संसाधनों पर नियंत्रण प्रदान करती है, जो स्थानीय पहचान और अधिकारों की रक्षा करती है। वर्तमान में, LAHDC को भूमि, शिक्षा, और स्थानीय विकास पर कुछ अधिकार हैं, लेकिन इन शक्तियों को और बढ़ाया जा सकता है। उदाहरण के लिए, LAHDC को भूमि हस्तांतरण और स्थानीय रोजगार नीतियों पर अधिक नियंत्रण दिया जा सकता है। साथ ही, डोमिसाइल आधारित आरक्षण लागू करने से स्थानीय लोगों को रोजगार और शिक्षा में प्राथमिकता मिल सकती है। यह मॉडल नॉर्थ-ईस्ट के राज्यों, जैसे मिजोरम और मेघालय, में सफल रहा है, जहाँ छठी अनुसूची ने स्थानीय स्वायत्तता और विकास को बढ़ावा दिया है।

पारिस्थितिकी और आर्थिक विकास

लद्दाख का पारिस्थितिकी तंत्र अत्यंत नाजुक है। ग्लेशियरों पर निर्भर जल संसाधन और उच्च ऊंचाई वाला पर्यावरण इसे औद्योगिक शोषण के प्रति संवेदनशील बनाते हैं। पूर्ण राज्य का दर्जा देने से स्थानीय सरकारें औद्योगिक विकास को बढ़ावा देने के लिए पर्यावरणीय नियमों में ढील दे सकती हैं, जो दीर्घकाल में हानिकारक हो सकता है। इसके बजाय, केंद्र सरकार की निगरानी में सख्त पर्यावरणीय नियम लागू किए जा सकते हैं। लद्दाख की अर्थव्यवस्था पर्यटन, पशुपालन और अक्षय ऊर्जा पर आधारित हो सकती है। उदाहरण के लिए, लद्दाख में सौर ऊर्जा की अपार संभावनाएँ हैं। 2023 में, लद्दाख में 1.7 गीगावाट की सौर परियोजना शुरू की गई, जो क्षेत्र को ऊर्जा आत्मनिर्भर बनाने की दिशा में एक कदम है। इसके अतिरिक्त, स्थानीय उत्पादों, जैसे पश्मीना और जैविक कृषि, को बढ़ावा देने से आर्थिक समृद्धि संभव है।

केंद्रशासित प्रदेश मॉडल की प्रासंगिकता

केंद्रशासित प्रदेश के रूप में, लद्दाख को केंद्र सरकार की योजनाओं से प्रत्यक्ष लाभ मिलता है। उदाहरण के लिए, उड़ान योजना के तहत लेह और कारगिल में हवाई संपर्क बढ़ा है, और PMGSY (प्रधानमंत्री ग्राम सड़क योजना) ने ग्रामीण क्षेत्रों को जोड़ा है। पूर्ण राज्य का दर्जा देने से ये योजनाएँ स्थानीय राजनीति और नौकरशाही की जटिलताओं में उलझ सकती हैं। इसके बजाय, केंद्रशासित प्रदेश ढांचे के तहत LAHDC को और सशक्त करना, छठी अनुसूची लागू करना, और डोमिसाइल आधारित नीतियाँ बनाना अधिक व्यवहार्य है।

लद्दाख को पूर्ण राज्य का दर्जा देना न तो व्यावहारिक है और न ही राष्ट्रीय हित में। इसकी कम जनसंख्या, सामरिक संवेदनशीलता, और लेह-कारगिल के बीच मतभेद इसे केंद्रीकृत शासन के लिए उपयुक्त बनाते हैं। समाधान का मार्ग है—LAHDC को और अधिक शक्तियाँ देना, छठी अनुसूची लागू करना, और पर्यावरण व संस्कृति की रक्षा के लिए सख्त नियम बनाना। साथ ही, क्षेत्र-विशिष्ट आर्थिक योजनाएँ, जैसे सौर ऊर्जा और पर्यटन को बढ़ावा देना, लद्दाख को समृद्ध और सुरक्षित बनाए रख सकता है। केंद्रशासित प्रदेश का ढांचा लद्दाख की अनूठी पहचान, पर्यावरण, और सुरक्षा को संरक्षित करने का सबसे प्रभावी तरीका है।

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आशीष कुमार अंशु

आशीष कुमार अंशु

आशीष कुमार अंशु एक पत्रकार, लेखक व सामाजिक कार्यकर्ता हैं। आम आदमी के सामाजिक सरोकार से जुड़े मुद्दों तथा भारत के दूरदराज में बसे नागरिकों की समस्याओं पर अंशु ने लम्बे समय तक लेखन व पत्रकारिता की है। अंशु मीडिया स्कैन ट्रस्ट के संस्थापक सदस्यों में से एक हैं और दस वर्षों से मानवीय विकास से जुड़े विषयों की पत्रिका सोपान स्टेप से जुड़े हुए हैं

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