लाल किला, दिल्ली का वह ऐतिहासिक स्मारक है जो भारत की सांस्कृतिक, ऐतिहासिक और राजनीतिक यात्रा का प्रतीक है। इसे मुगल बादशाह शाहजहाँ ने 17वीं शताब्दी में बनवाया था, और यह मुगल वास्तुकला का एक उत्कृष्ट नमूना है। लेकिन आज, जब लाल किले पर तिरंगा फहराया जाता है, तो इसे केवल मुगल संपत्ति के रूप में देखना कितना उचित है? विशेष रूप से तब, जब यह स्वतंत्रता आंदोलन का एक महत्वपूर्ण केंद्र रहा और भारत के लोकतांत्रिक गणराज्य की संपत्ति के रूप में स्थापित है। इस प्रश्न के इर्द-गिर्द कई ऐतिहासिक, कानूनी और सामाजिक आयाम हैं, जिन्हें समझना आवश्यक है। साथ ही, यह भी देखना जरूरी है कि इस तरह के नैरेटिव को कौन और क्यों बनाता है?
लाल किला और मुगल विरासत
लाल किला, जिसे 1638 में शाहजहाँ ने बनवाना शुरू किया था, मुगल साम्राज्य की शक्ति और वैभव का प्रतीक था। यह दिल्ली में मुगल शासन का प्रशासनिक और सांस्कृतिक केंद्र था। लाल बलुआ पत्थर से निर्मित इस किले में दीवान-ए-आम, दीवान-ए-खास, रंग महल और मोती मस्जिद जैसी संरचनाएँ मुगल कला और वास्तुकला की बारीकियों को दर्शाती हैं। लेकिन यह कहना कि लाल किला केवल मुगल संपत्ति है, इतिहास को एक संकीर्ण दृष्टिकोण से देखना होगा।
मुगलों ने दिल्ली पर कब्जा किया और स्थानीय संसाधनों, कारीगरों और श्रमिकों का उपयोग करके इस किले का निर्माण किया। न तो वे अपने साथ धन लाए, न ही किले के निर्माण में लगे मजदूर मुगल थे। ये कारीगर और श्रमिक स्थानीय थे, जिन्होंने अपनी कला और श्रम से इस स्मारक को आकार दिया। इस दृष्टि से, लाल किला भारतीय कारीगरी और संसाधनों का प्रतीक है, न कि केवल मुगल संपत्ति का।
स्वतंत्रता आंदोलन और लाल किला
लाल किला का महत्व केवल मुगल काल तक सीमित नहीं है। 1857 के प्रथम स्वतंत्रता संग्राम में यह विद्रोहियों का केंद्र बना, जब बहादुर शाह जफर को विद्रोहियों ने अपना नेता घोषित किया। हालांकि, विद्रोह के दमन के बाद अंग्रेजों ने किले को अपने नियंत्रण में ले लिया और इसे सैन्य छावनी में बदल दिया। फिर भी, 20वीं सदी में स्वतंत्रता आंदोलन के दौरान लाल किला भारतीय स्वतंत्रता का प्रतीक बन गया। 15 अगस्त 1947 को, जब पंडित जवाहरलाल नेहरू ने लाल किले की प्राचीर से तिरंगा फहराया, तो यह न केवल आजादी का प्रतीक बना, बल्कि भारत के लोकतांत्रिक गणराज्य की संप्रभुता का भी प्रतीक बन गया।
आज हर स्वतंत्रता दिवस पर लाल किले से प्रधानमंत्री का संबोधन इसकी राष्ट्रीय महत्व को और मजबूत करता है। ऐसे में, लाल किले को केवल मुगल संपत्ति के रूप में देखना इसके ऐतिहासिक और भावनात्मक महत्व को कम करना है। यह किला अब भारत की साझा विरासत का हिस्सा है, जो विभिन्न युगों और संस्कृतियों को अपने में समेटे हुए है।
कानूनी और संवैधानिक दृष्टिकोण
भारत के संविधान के अनुसार, स्वतंत्रता के बाद देश की सारी संपत्ति भारत सरकार के अधीन है। लाल किला, जो अब भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (ASI) के संरक्षण में है, भारत की राष्ट्रीय संपत्ति है। इसे यूनेस्को विश्व धरोहर स्थल के रूप में भी मान्यता प्राप्त है। कानूनी रूप से, इसे मुगल संपत्ति के रूप में दावा करने का कोई आधार नहीं है, क्योंकि मुगल साम्राज्य का अस्तित्व समाप्त हो चुका है और भारत एक संप्रभु लोकतंत्र है।
जब मुगलों ने दिल्ली पर कब्जा किया, तो उन्होंने स्थानीय संसाधनों का उपयोग किया। उसी तरह, आज भारत सरकार ने देश की सारी ऐतिहासिक संपत्तियों को अपने नियंत्रण में लिया है, ताकि उनकी सुरक्षा और संरक्षण हो सके। इस दृष्टिकोण से, लाल किले को मुगल संपत्ति के रूप में देखना न तो कानूनी रूप से सही है और न ही ऐतिहासिक रूप से संतुलित।
नैरेटिव का निर्माण और उसका उद्देश्य
फिर सवाल उठता है कि लाल किले को मुगल संपत्ति से जोड़ने का नैरेटिव कौन बनाता है और क्यों? इस तरह के नैरेटिव का निर्माण अक्सर राजनीतिक, सांस्कृतिक या सामाजिक एजेंडा के तहत होता है। कुछ लोग इसे मुगल काल को बढ़ा-चढ़ाकर पेश करने या उसकी आलोचना करने के लिए इस्तेमाल करते हैं। यह नैरेटिव भारतीय इतिहास को ध्रुवीकरण का हथियार बनाने की कोशिश करता है, जिसमें मुगल काल को या तो गौरवशाली बताया जाता है या उसे विदेशी आक्रांताओं की विरासत के रूप में चित्रित किया जाता है।
ऐसे नैरेटिव बनाने वाले लोग अक्सर इतिहास को अपने दृष्टिकोण से तोड़-मरोड़ कर पेश करते हैं। कुछ के लिए, यह सांस्कृतिक पहचान की लड़ाई है, जहाँ वे मुगल काल को भारतीय संस्कृति पर एक बाहरी प्रभाव के रूप में देखते हैं। दूसरी ओर, कुछ लोग मुगल काल को भारतीय इतिहास का एक अभिन्न अंग मानते हैं, जो भारत की समन्वित संस्कृति का हिस्सा है। सलमान रश्दी के उपन्यास मिडनाइट्स चिल्ड्रन में “आधी रात की संतानों” का उल्लेख भारत की आजादी के समय जन्मी पीढ़ी के लिए है, जो देश के जटिल इतिहास और सांस्कृतिक विविधता से जूझती है। इस संदर्भ में, “मुगलों की आधी रात की संताने” एक रूपक हो सकता है उन लोगों के लिए जो इतिहास को एक विशेष दृष्टिकोण से देखते हैं और उसे अपने राजनीतिक या सामाजिक उद्देश्यों के लिए इस्तेमाल करते हैं।
इतिहास का समन्वय और भविष्य
लाल किला न तो केवल मुगल विरासत है और न ही केवल स्वतंत्रता का प्रतीक। यह भारत के बहुआयामी इतिहास का एक जीवंत दस्तावेज है। इसे मुगल बनाम गैर-मुगल के द्वंद्व में फंसाना इतिहास की जटिलता को सरल बनाने की कोशिश है। भारत का इतिहास विभिन्न संस्कृतियों, धर्मों और शासकों का मिश्रण है। मुगल, मराठा, राजपूत, गुप्त, चोल-सभी ने इस देश की सांस्कृतिक और ऐतिहासिक विरासत को समृद्ध किया है। लाल किला इस समन्वय का प्रतीक है।
इस तरह के नैरेटिव को बढ़ावा देने के बजाय, हमें लाल किले को एक राष्ट्रीय धरोहर के रूप में देखना चाहिए, जो भारत की विविधता और एकता को दर्शाता है। इसे मुगल संपत्ति या स्वतंत्रता के प्रतीक के रूप में सीमित करने के बजाय, हमें इसे भारत के इतिहास के एक जीवंत हिस्से के रूप में स्वीकार करना चाहिए।
लाल किला भारत की सांस्कृतिक और ऐतिहासिक धरोहर का एक अनमोल हिस्सा है। इसे केवल मुगल संपत्ति के रूप में देखना न तो ऐतिहासिक रूप से सही है और न ही कानूनी रूप से उचित। यह किला भारत के स्वतंत्रता संग्राम और लोकतांत्रिक गणराज्य का प्रतीक है। इस तरह के नैरेटिव जो इसे मुगल बनाम गैर-मुगल की बहस में उलझाते हैं, अक्सर राजनीतिक या सांस्कृतिक उद्देश्यों से प्रेरित होते हैं। सलमान रश्दी के शब्दों को उधार लें तो, ये नैरेटिव “आधी रात की संतानों” की तरह हैं, जो इतिहास को अपने हिसाब से परिभाषित करने की कोशिश करते हैं। लेकिन लाल किला इससे कहीं बड़ा है—यह भारत की आत्मा का प्रतीक है, जो विभिन्न युगों और संस्कृतियों को अपने में समेटे हुए है। इसे उसी रूप में स्वीकार करना ही इसका सच्चा सम्मान है।