लेखक गाँव की संकल्पना
‘लेखक गाँव’ हिमालय की गोद में बसा एक ऐसा स्थान है, जो साहित्य और संस्कृति के संरक्षण, संवर्धन और प्रचार के लिए समर्पित है। डॉ. निशंक के शब्दों में, यह “मात्र एक स्थान नहीं, अपितु वह वैचारिक तपोभूमि है जहाँ हिमालय की मौन चेतना में साहित्य बोलता है, संस्कृति मुस्कराती है और विचार साधना का स्वरूप लेते हैं।” यह परियोजना भारतीय साहित्य और संस्कृति को एक वैश्विक मंच प्रदान करने का प्रयास है, जहाँ रचनाकार, विचारक और शिक्षाविद् एकत्रित होकर भारतीयता के मूल्यों को पुनर्जनन और प्रचारित करेंगे।
लेखक गाँव का विचार हिमालय की प्राकृतिक और आध्यात्मिक ऊर्जा से प्रेरित है। हिमालय, जो भारतीय संस्कृति में सदा से साधना, ज्ञान और शांति का प्रतीक रहा है, इस परियोजना का आधार बनता है। यह गाँव एक ऐसी जगह होगी जहाँ साहित्यकार अपनी रचनात्मकता को निखार सकेंगे, विचारक गहन चिंतन में डूब सकेंगे, और संस्कृति के संवाहक भारतीय मूल्यों को नई पीढ़ी तक पहुँचा सकेंगे। यह स्थान केवल लेखकों के लिए नहीं, बल्कि उन सभी के लिए खुला होगा जो भारतीय संस्कृति और साहित्य के प्रति संवेदनशील हैं और इसे समृद्ध करना चाहते हैं।
स्पर्श हिमालय महोत्सव 2025
लेखक गाँव की अवधारणा को और अधिक सशक्त बनाने के लिए डॉ. निशंक ने ‘स्पर्श हिमालय महोत्सव की घोषणा की है। यह महोत्सव लेखक गाँव में आयोजित होने वाला एक अनूठा आयोजन होगा, जो साहित्य, संस्कृति और विचारों का उत्सव होगा। डॉ. निशंक के अनुसार, यह महोत्सव “भारतीयता, विचार और सृजन का जीवंत संगम” बनेगा। इसमें देश-विदेश के साहित्यकार, शिक्षाविद्, और संस्कृति प्रेमी हिस्सा लेंगे, और यह आयोजन विचारों के यज्ञ के रूप में उभरेगा।
महोत्सव का उद्देश्य भारतीय साहित्य और संस्कृति को वैश्विक मंच पर स्थापित करना है। यहाँ होने वाले संवाद और चर्चाएँ न केवल साहित्यिक होंगी, बल्कि सामाजिक, सांस्कृतिक और आध्यात्मिक मुद्दों पर भी केंद्रित होंगी। यह आयोजन भारतीयता के मूल्यों को पुनर्जनन करने और उन्हें आधुनिक संदर्भ में प्रस्तुत करने का प्रयास करेगा। हिमालय की पृष्ठभूमि में आयोजित यह महोत्सव पर्यावरण, स्थिरता और सांस्कृतिक संरक्षण जैसे विषयों को भी प्राथमिकता देगा, जो आज के समय में अत्यंत प्रासंगिक हैं।
लेखक गाँव का सामाजिक और सांस्कृतिक महत्व
लेखक गाँव और इसके अंतर्गत आयोजित होने वाला स्पर्श हिमालय महोत्सव भारतीय समाज और संस्कृति के लिए कई मायनों में महत्वपूर्ण है। सबसे पहले, यह परियोजना साहित्य और संस्कृति को आमजन तक पहुँचाने का एक प्रयास है। आज के डिजिटल युग में, जहाँ साहित्य और संस्कृति को अक्सर व्यावसायिकता के दबाव में उपेक्षित किया जाता है, लेखक गाँव एक ऐसी जगह होगी जहाँ रचनात्मकता को प्रोत्साहन मिलेगा और साहित्य को उसका खोया हुआ गौरव वापस मिलेगा।
दूसरा, यह परियोजना भारतीयता के मूल्यों को पुनर्जनन करने का एक प्रयास है। भारतीय संस्कृति में साहित्य, कला और दर्शन का गहरा समन्वय रहा है, और लेखक गाँव इस समन्वय को पुनर्जनन करने का एक मंच प्रदान करेगा। यहाँ होने वाले आयोजन युवा पीढ़ी को अपनी सांस्कृतिक जड़ों से जोड़ने में मदद करेंगे, जो आज के वैश्वीकरण के दौर में अपनी पहचान खोने के खतरे में हैं।
तीसरा, लेखक गाँव हिमालय के पर्यावरणीय और आध्यात्मिक महत्व को भी रेखांकित करता है। हिमालय न केवल प्राकृतिक सौंदर्य का प्रतीक है, बल्कि यह भारतीय दर्शन और साहित्य का स्रोत भी रहा है। लेखक गाँव इस क्षेत्र की प्राकृतिक और सांस्कृतिक विरासत को संरक्षित करने और इसे वैश्विक मंच पर प्रस्तुत करने का एक प्रयास है।
डॉ. निशंक का योगदान और दृष्टिकोण
डॉ. रमेश पोखरियाल ‘निशंक’ ने अपने साहित्यिक और राजनैतिक जीवन में हमेशा भारतीय संस्कृति और शिक्षा को प्राथमिकता दी है। 100 से अधिक पुस्तकों के लेखक के रूप में, उन्होंने साहित्य के विभिन्न रूपों—कविता, उपन्यास, कहानी—के माध्यम से भारतीय मूल्यों को प्रस्तुत किया है। उनकी यह पहल उनके उस दृष्टिकोण का हिस्सा है, जिसमें वे साहित्य और संस्कृति को समाज के विकास का आधार मानते हैं।
लेखक गाँव और स्पर्श हिमालय महोत्सव की संकल्पना डॉ. निशंक की दूरदर्शिता का परिचय देती है। उन्होंने न केवल इस परियोजना की नींव रखी, बल्कि इसे देश के प्रबुद्ध शिक्षकों और चिंतकों के साथ साझा कर इसे एक सामूहिक प्रयास बनाने का प्रयास किया है। उनकी यह पहल न केवल साहित्यिक समुदाय को प्रेरित करेगी, बल्कि समाज के हर वर्ग को भारतीयता के प्रति गर्व का अनुभव कराएगी।
लेखक गाँव और स्पर्श हिमालय महोत्सव 2025 भारतीय साहित्य, संस्कृति और विचारों के लिए एक नया युग शुरू करने की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम है। यह परियोजना हिमालय की शांति और सौंदर्य को साहित्य और संस्कृति के साथ जोड़कर एक ऐसी तपोभूमि का निर्माण कर रही है, जहाँ विचारों का यज्ञ होगा और संस्कृति की लौ प्रज्वलित होगी। डॉ. रमेश पोखरियाल ‘निशंक’ की यह पहल न केवल साहित्यकारों के लिए, बल्कि प्रत्येक भारतीय के लिए गर्व का विषय है। यह परियोजना हमें याद दिलाती है कि हमारी सांस्कृतिक विरासत हमारी सबसे बड़ी शक्ति है, और इसे संरक्षित और समृद्ध करना हम सभी का दायित्व है।