दिल्ली। भारतीय पत्रकारिता में सनसनीबाज पत्रकार के तौर पर ख्यात राजदीप सरदेसाई ने ‘माफीवीर’ के रूप में अपनी पहचान बना ली है। उन्होंने अपने पत्रकारिता कॅरियर में कई ऐसी कहानियां बुनी हैं, जो जांच के आगे ढह जाती हैं, और पत्रकारिता की नींव को कमजोर करती हैं।
13 अक्टूबर 2025 को सरदेसाई ने एक और माफी मांगी—2011 में IBN7 के स्टिंग ऑपरेशन ‘दिल्ली के डबल एजेंट्स’ के लिए, जो कोबरापोस्ट के साथ मिलकर किया गया था। इसने बीजेपी पार्षद अजीत सिंह तोकस पर रिश्वत मांगने का झूठा आरोप लगाया, जिसने बीजेपी-विरोधी उन्माद को हवा दी। 14 साल तक अदालत में घसीटे जाने के बाद, सरदेसाई ने अपने फैलाए हुए झूठ से खुद को अलग करते हुए दावा किया कि उन्होंने केवल एक ‘बाहरी एजेंसी’ की जांच को दोहराया, जिसे बाद में तीसरे पक्ष ने खारिज कर दिया।
द्रोणाचार्य सरदेसाई के एकलव्य रवीश कुमार अब तक पूछ लेते कि तोकस के 14 साल कौन लौटाएगा? उनके सबसे पसंदीदा सवाल है। वे खास मौकों पर यह सवाल कई बार पूछ चुके हैं लेकिन इस बार गुरू (घंटाल) का मामला था, इसलिए उनके मुंह से बकार नहीं निकला। वैसे उन्होंने कैश फॉर वोट में भी अहम भूमिका निभाई थी और उसके बाद उनकी वफादारी की मुरीद पूरी कांग्रेस है लेकिन मजाल है कि आईटी सेल वाले यू ट्यूबर्स को कभी राजदीप और उनकी पत्नी में गोदी मीडिया दिखाई दिया हो। जबकि पत्नी अवसर पाते ही तृणमूल की गोद में जा बैठी लेकिन आईटी सेल वाले यू ट्यूबर्स ने उन्हें गोदी मीडिया नहीं कहा।
वैसे दर्जनों मामलों में बिना माफी मांगे चुप्पी साध लेने वाले राजदीप के लिए माफी मांगना कोई नई बात नहीं है। वे भारतीय मीडिया के माफीवीर हैं। 2020 में, उन्होंने आईपीएस अधिकारी राजीव त्रिवेदी से 2007 की CNN-IBN रिपोर्ट के लिए माफी मांगी, जिसमें उन्हें सोहराबुद्दीन एनकाउंटर मामले में गलत तरीके से फंसाया गया था। हैदराबाद कोर्ट ने उनकी माफी स्वीकार की। राजदीप सरदेसाई ने यह झूठ फैलाया था कि राजीव त्रिवेदी ने नकली नंबर प्लेट वाली कारें उपलब्ध कराई थीं, जिनका इस्तेमाल सोहराबुद्दीन को अहमदाबाद ले जाने के लिए किया गया था।
2021 में, दिल्ली की ट्रैक्टर रैली के दौरान राजदीप ने दावा किया कि पुलिस ने एक किसान को गोली मार दी—जो एक दुर्घटना थी। इसके लिए इंडिया टुडे ने उन्हें दो हफ्ते के लिए हटाया और एक महीने की तनख्वाह काटी।
2017 में, उन्होंने BHU के कुलपति को मोदी रैली में गलत पहचाना और प्रणब मुखर्जी की मृत्यु की झूठी घोषणा की-दोनों के लिए माफी मांगी। उनकी गलतियां हमेशा बीजेपी नेताओं को निशाना बनाती हैं, जो उनके पक्षपात को उजागर करती हैं। उनके इस काले रिकॉर्ड के बावजूद, देश की एक प्रतिष्ठित मीडिया हाउस उन्हें क्यों पाल पोस रही है।
खान मार्केट गैंग वाले इस बात को जानते हैं कि इतने बदनाम पत्रकार को किसी मीडिया हाउस से ये सम्मान बिना किसी बड़ी पैरवी के नहीं मिल सकता। अब राजदीप ने जब पत्रकारिता में कांग्रेस के समर्पित कार्यकर्ता की तरह ही काम किया है फिर चैनल की मजबूरी को समझना बहुत मुश्किल नहीं है।
सोनिया गांधी के दो या दो से अधिकद इंटरव्यू लेने वाले देश में गिनती के पत्रकार हैं। उनमें एक राजदीप हैं और दूसरे राजीव शुक्ला हैं। वैसे पत्रकारिता में राजदीप और राजीव शुक्ला में सिर्फ इतना अंतर रहा है कि राजीव कांग्रेस पार्टी में रहकर पार्टी के लिए पत्रकारिता कर रहे थे, वहीं राजदीप पार्टी से बाहर रहकर कांग्रेस पार्टी के लिए काम कर रहे थे।
राजदीप के लिए कहा जा सकता है कि वे टीआरपी की होड़ में तथ्यों को ताक पर रखकर, केवल एक कमजोर पत्रकार नहीं बल्कि पत्रकारिता के दुश्मन भी हैं, जो न्यूज़रूम को पोलिटिकल पार्टी के ‘प्रोपगेंडा’ का अड्डा बना देता है।