महाराष्ट्र का हवा पानी लेने के बाद इस निष्कर्ष पर पहुंचा

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अमित श्रीवास्तव

महाराष्ट्र में सत्ता के विरुद्ध जमीनी मुद्दा विपक्ष खड़ा नहीं कर पा रहा वहीं road मेट्रो अन्य connectivity। में बहुत काम हुआ है, ऐसा लोग बता रहे हैं। इससे सत्ता को फायदा हो सकता है।

वहीं विपक्ष का मुद्दा है मेरी पार्टी को तोड़ दिया। विपक्ष के इस मुद्दे का असर केवल कार्यकर्ताओं व बड़े नेताओं के प्रभाव क्षेत्र में ही इस मुद्दे का असर दिखा। और इन क्षेत्रों में भी दोनों ही गुटों के पक्ष में लोग खड़े दिखें।

महिलाओं को बहन योजना का लाभ मिला है किंतु इन मुद्दों पर चर्चा जमीन पर कम हैं। सरकार इन योजनाओं पर केंद्रित प्रचार करें तो बड़ा फायदा होगा।

महाराष्ट्र में सरकार विरोधी लहर कहीं नहीं है, हमेशा कि तरह मुस्लिम एक पक्षीय मतदान करेंगे।

मराठा आरक्षण आंदोलन का प्रभाव पूरे महाराष्ट्र के मराठियों में नहीं है। जैसी चर्चा राष्ट्रीय चैनलों पर होती है कि इस आरक्षण के नेता के पक्ष में पूरा समाज खड़ा है, यह मिथक भी टूटेगा। यह मुद्दा इतना घिस चुका है कि अब लोग कहने लगे हैं कि मिल जाए तो ठीक वरना सड़क पर अब नहीं उतरेंगे।

जितने भी बड़े बेटा हैं अपने कद के अनुसार वो सब के सब अपने क्षेत्र विशेष के नेता हैं।

एक भी नेता जोन स्तर के नेता नहीं हैं। कुछ जिलों तक सभी नेताओं का प्रभाव सीमित है।

देवेंद्र फडणवीस के समय हुए कार्यों को लेकर आज भी लोग चर्चा करते हैं। नितिन गडकरी का प्रभाव नागपुर व उससे आसपास के क्षेत्रों में हैं। महाराष्ट्र का रण बूथ प्रबंधन का रण हैं। जिससे जितना बूथ जीता वो उतनी सीट लाएगा।

विधायकों के प्रति फैन फॉलोइंग भी गजब की है, किसी भी दल के विधायक या पराजित प्रत्याशी अपने समर्थकों का हीरो या बॉस हैं। उनके लिए संघर्ष करने को तैयार हैं जनता।

समर्थकों में आज भी उद्धव ठाकरे के प्रति सहानुभूति है कि वो बाला साहब के बेटे हैं किंतु वो एकनाथ शिंदे से नाराज भी नहीं हैं।

कांग्रेस कार्यकर्ताओं में जोश ही नहीं है। जिला के पदाधिकारियों से नीचे के कार्यकर्ता चुनाव लड़ने के मूड में ही नहीं दिख रहे हैं।

शरद पवार के कार्यकर्ता भी उनके ही तरह हैं वो कब किसे गालियां दे दें और कब किसी के प्रति कृतज्ञ हो जाए समझ से परे है। चुनाव के प्रति बेहद सजग हैं। लड़ने और जितने के मूड में हैं।

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