माननीय पूर्व राष्ट्रपति श्री रामनाथ कोविन्द का श्रीविजयादशमी उत्सव में सम्बोधन

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नागपुरः 2 अक्तूबर, 2025

देवियों और सज्जनो,

आप सभी को नमस्कार

1. सबसे पहले, मैं राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के स्वयंसेवकों तथा संघ परिवार के सभी संगठनों के सदस्यों सहित, देश-विदेश में बसे, भारत के सभी लोगों को विजयादशमी की हार्दिक बधाई देता हूं। यह सुखद संयोग है कि आज महात्मा गांधी तथा पूर्व प्रधानमंत्री श्री लाल बहादुर शास्त्री जी की जयंती भी है। मैं इन महापुरुषों की स्मृति को सादर नमन करता हूं।

2. ‘श्रीविजयादशमी उत्सव’ का यह दिन, संघ का ‘शतक-पूर्ति-दिवस’ भी है। आज विश्व की सबसे प्राचीन संस्कृति का संवहन करने वाली आधुनिक विश्व की सबसे बड़ी स्वयंसेवी संस्था का शताब्दी समारोह सम्पन्न हो रहा है।

3. इस पावन अवसर पर, संघ तथा संघ परिवार के संगठनों को नेतृत्व प्रदान करने वाले वर्तमान और पूर्व के सभी महानुभावों के प्रति मैं गहन आदर व्यक्त करता हूं तथा सभी स्वयंसेवकों, कार्यकर्ताओं और सदस्यों के योगदान के लिए उनकी हार्दिक सराहना करता हूं।

4. नागपुर की यह पवित्र धरती, आधुनिक भारत के विलक्षण निर्माताओं की पावन स्मृति से जुड़ी हुई है। उन राष्ट्र-निर्माताओं में ऐसे दो डॉक्टर भी हैं जिनका मेरे जीवन-निर्माण में अत्यंत महत्वपूर्ण स्थान रहा है। वे दोनों महापुरुष हैं: डॉक्टर केशव बलिराम हेडगेवार और डॉक्टर भीमराव रामजी आंबेडकर।

5. बाबासाहब आंबेडकर के संविधान में निहित सामाजिक-न्याय की व्यवस्था के बल पर ही मेरी तरह सामान्य आर्थिक और सामाजिक पृष्ठभूमि का व्यक्ति, देश के सर्वोच्च संवैधानिक पद तक पहुंच सका। डॉक्टर हेडगेवार के गहन विचारों से एक सामान्य व्यक्ति, समाज और राष्ट्र को समझने का मेरा दृष्टिकोण स्पष्ट हुआ है। इन दोनों विभूतियों द्वारा निरूपित किए गए राष्ट्रीय एकता और सामाजिक समरसता के आदर्शों से मेरी जनसेवा की भावना अनुप्राणित रही है।

6. नागपुर की इस यात्रा के दौरान मुझे श्रद्धेय बाबासाहब आंबेडकर की पवित्र दीक्षाभूमि तथा आद्य सर-संघचालक डॉक्टर हेडगेवार जी के पावन निवास स्थान का दर्शन करने का सौभाग्य मिला। श्रद्धेय डॉक्टर हेडगेवार जी एवं श्रद्धेय श्री गुरु जी को श्रद्धा-सुमन अर्पित करके मैं स्वयं को कृतार्थ अनुभव कर रहा हूं।

7. आज के दिन, मैं डॉक्टर हेडगेवार जी, श्री गुरु जी, श्री बालासाहब देवरस जी, श्री रज्जू भैया जी तथा श्री सुदर्शन जी के प्रति हार्दिक श्रद्धांजलि अर्पित करता हूं। साथ ही मैं उन अनगिनत स्वयंसेवकों की स्मृति को सादर नमन करता हूं, जिन्होंने पूर्ण समर्पण के साथ भारत माता की सेवा की है।

8. डॉक्टर हेडगेवार जी ने संगठन का जो पौधा लगाया और बड़ा भी किया, उसे श्री गुरुजी ने प्रचुर विस्तार दिया तथा उसकी जड़ें मजबूत की। श्री बालासाहब देवरस जी ने संघ को पुष्पित-पल्लवित करते हुए, समरसता पर विशेष जोर दिया। रज्जू भैया जी ने स्वाधीनता के बाद के सबसे बड़े आर्थिक बदलाव और उससे होने वाले सामाजिक परिवर्तनों के बीच संघ को मार्गदर्शन दिया। श्री सुदर्शन जी ने राजनीतिक संक्रमण के दौर में, सामाजिक और नैतिक बदलावों के बीच संघ के कार्य को आगे बढ़ाया। उनके कार्यकाल के बाद भी निरंतर आगे बढ़ता हुआ संघ, एक पवित्र और विशाल वटवृक्ष की तरह, अपनी जड़ों तथा शाखा-प्रशाखाओं के माध्यम से भारत के लोगों को एकता, गौरव और प्रगति की संजीवनी तथा छाया प्रदान कर रहा है। डॉक्टर मोहन भागवत जी, भारतीय परंपरा के अनुपम व्याख्याता होने के साथ-साथ आधुनिकता और संस्कारों का समन्वय करने वाले एक दूरदर्शी समाज-वैज्ञानिक भी हैं। उनके साथ हुई अपनी प्रत्येक भेंटवार्ता में मुझे उनकी राष्ट्र-निष्ठा, क्रियाशीलता और समावेशी व सृजनात्मक नेतृत्व के नए आयाम देखने को मिलते हैं।

9. सभी सरसंघचालकों के नेतृत्व में संघ ने, न केवल समय की पुकार को सुना है, बल्कि आवश्यकतानुसार, समय की धारा को मोड़ा भी है।

10. मुझ जैसे एक सामान्य स्वयंसेवक को इस ऐतिहासिक अवसर से जोड़ने के लिए मैं संघ का हृदय से आभार व्यक्त करता हूं।

देवियो और सज्जनो,

11. अन्नदाता किसान से लेकर अन्तरिक्ष वैज्ञानिक तक, विद्यार्थी से लेकर व्यवसायी तक, जनजातीय समुदायों से लेकर स्वास्थ्य सेवकों तक, श्रमिकों से लेकर अधिवक्ताओं तक, पूर्व सैनिकों से लेकर कलासाधकों तक, बालकों से लेकर मातृशक्ति तक, अर्थात समाज के सभी लोगों को विभिन्न आयामों के माध्यम से जोड़ने का सत्कार्य संघ द्वारा निरंतर किया जा रहा है।

देवियो और सज्जनो,

12. विजयादशमी-उत्सव के प्रति भारतीय जन-मानस का सदियों से चला आ रहा उत्साह यह सिद्ध करता है कि हमारे देशवासी धर्म और सत्य के हमेशा पक्षधर रहे हैं। मैं मानता हूं कि आद्य सरसंघचालक डॉक्टर हेडगेवार जी ने संघ के शुभारंभ के लिए सबसे शुभ दिन तो चुना ही, सबसे सार्थक दिन भी चुना।

13. संघ की स्थापना के 50वें वर्ष में, आपातकाल की घोषणा के बाद, जून 1975 में संघ पर प्रतिबंध लगा दिया गया। संघ ने भूमिगत आंदोलन चलाते हुए आपातकाल का जो प्रभावी प्रतिरोध किया, वह वैश्विक चर्चा का विषय बना। पृथक विचारधाराओं वाले दलों और नेताओं ने भी संघ की प्रशंसा की। उन्हें लगता था कि कोई न कोई उच्च आदर्श अवश्य है, जो संघ के स्वयंसेवकों को ऐसे वीरोचित कार्यों के लिए प्रेरणा और त्याग हेतु अदम्य साहस प्रदान करता है। वर्ष 1948, 1975 तथा 1992 में संघ पर प्रतिबंध लगाए गए। प्रत्येक प्रतिबंध के बाद संघ ने, गंभीर चुनौतियों के बीच विस्तार और विकास किया तथा और अधिक मजबूत होकर उभरा।

14. विश्व पटल पर वर्चस्व रखने वाले कितने ही संस्थान, विचारधाराएं, व्यक्तित्व और राष्ट्र, सौ वर्षों के कालप्रवाह में विलीन हो गए, यहां तक कि विस्मृत भी हो गए। लेकिन राष्ट्र-प्रेम और भारतीय आदर्शों की संजीवनी से विधिपूर्वक पोषण ग्रहण करते हुए, राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ जितना विशाल हुआ है उतना ही सशक्त भी हुआ है और जीवंत भी हुआ है। डॉक्टर हेडगेवार ने एक ऐसे संगठन का सृजन किया जिसकी सरल, सहज और प्रभावी विचार-धारा और कार्य पद्धति से उसे अनूठी प्राणशक्ति मिलती रही है। यद्धि संघ की कोई औपचारिक सदस्यता नहीं होती है, लेकिन संघ के स्वयंसेवकों जैसी निष्ठा भी कहीं नहीं दिखाई देती है।

देवियो और सज्जनो,

15. संघ की विचारधारा तथा स्वयंसेवकों से मेरा प्रगाढ़ परिचय वर्ष 1991 के आम चुनाव के दौरान हुआ। कानपुर जिले के घाटमपुर लोकसभा चुनाव-क्षेत्र में भारतीय जनता पार्टी का मैं प्रत्याशी था। उस चुनाव अभियान के दौरान समाज के विभिन्न वर्गों के लोगों से मिलने तथा उनके साथ कार्य करने का अवसर मुझे मिला। जिन सहयोगियों को मैंने सबसे सहज, निष्ठावान और जात-पात के भेद-भाव से पूरी तरह मुक्त पाया, वे संयोग से संघ पदाधिकारी और स्वयंसेवक ही थे। अभी भी, समाज के बहुत से लोगों को यह जानकारी नहीं है कि संघ में किसी भी प्रकार की अस्पृश्यता और जातिगत भेद-भाव नहीं होता है। मैं समझता हूं कि समाज के अनेक वर्गों में संघ से जुड़ी निराधार भ्रांतियों को दूर करने की जरूरत है।

16. इस संदर्भ में, वर्ष 2001 में लाल किले के परिसर में आयोजित ‘दलित संगम रैली’ का मैं उल्लेख करना चाहूंगा। उस समय मैं अनुसूचित जाति मोर्चा का राष्ट्रीय अध्यक्ष था। श्रद्धेय अटल जी प्रधानमंत्री थे। देश में बहुत से लोग संघ परिवार तथा अटल जी को दलित विरोधी होने का दुष्प्रचार करते रहे हैं। उस रैली को संबोधित करते हुए अटल जी ने उ‌द्घोष किया था कि ‘हमारी सरकार दलितों, पिछड़ों और गरीबों की भलाई के लिए बनी है। … हमारी सरकार मनुस्मृति के आधार पर नहीं, बल्कि ‘भीम स्मृति’ के आधार पर काम करेगी। ‘भीम स्मृति’ अर्थात ‘भारत का संविधान’। उन्होंने यह भी कहा कि हम भीमवादी हैं, अर्थात आंबेडकर-वादी हैं।’ अटल जी तथा संघ की विचारधारा के प्रति समाज के इस वर्ग में जो दुष्प्रचार प्रसारित किया जा रहा था, उसे दूर करने में उनके उस सम्बोधन की ऐतिहासिक भूमिका रही है। संघ वस्तुतः सामाजिक एकता और सुधार का प्रबल पक्षधर रहा है और इस दिशा में सदैव सक्रिय भी रहा है।

17. पिछले कुछ वर्षों से मैं अपनी आत्मकथा लिखने का प्रयास कर रहा था, जिसे मैं हाल ही में सम्पन्न कर पाया हूं। उसे मैंने ‘Triumph of the Indian Republic: My Journey, My Struggles’ यह नाम दिया है। पूरी विनम्रता के साथ मैं यह कहना चाहता हूं कि मेरी जीवन-यात्रा और संघर्ष में जिन आदर्शों ने मुझे शक्ति व प्रेरणा दी है वे भारतीय संविधान और राष्ट्रीय जीवन मूल्यों पर आधारित हैं। मेरी जीवन-यात्रा में स्वयंसेवकों के साथ जुड़ाव तथा घनिष्ठता से मेरे जीवन-मूल्यों को कैसे दृढ़ता मिली, इनसे जुड़े प्रसंग भी मैंने अपनी आत्मकथा में शामिल किये हैं। मैं आशा करता हूँ कि इस वर्ष के अंत तक मेरी पुस्तक आप सभी पाठकों तक पहुंच जाएगी।

18. मेरा सौभाग्य है कि संघ से जुड़ी महान विभूतियों से मुझे व्यक्तिगत मार्ग-दर्शन प्राप्त होता रहा। संघ के चतुर्थ सरसंघचालक आदरणीय रज्जू भैया जी ने मुझे जनसेवा और अध्यात्म की पद्धतियों से अवगत कराया। उन्हीं के सुझाव पर मैंने राज्यसभा सांसद के अपने कार्यकाल के दौरान विपस्सना ध्यान-पद्धति का अभ्यास शुरू किया। मैंने देखा है कि संघ के कार्यकर्ता, भारतीय परम्पराओं में निहित निरंतरता और एकता को महत्व देते हैं। श्रद्धेय श्री अटल बिहारी वाजपेयी जी ने मेरी जीवन-यात्रा को मूल्य-आधारित राजनीति की तरफ मोड़ा और मैं राज्यसभा का सदस्य बना। माननीय नानाजी देशमुख से मिलने का सौभाग्य मुझे कई बार प्राप्त हुआ। उनकी प्रेरणा से संचालित ग्राम-विकास के अनेक प्रकल्पों को मैंने नजदीक से देखा और समझा है। राष्ट्रपति के अपने कार्यकाल में भी मुझे चित्रकूट जाकर उनके द्वारा किए गए व्यापक परिवर्तन को देखने का सौभाग्य मिला था। आदरणीय दत्तोपंत ठेंगड़ी जी से, श्रमिकों के कल्याण तथा समाज-सेवा की अमूल्य शिक्षा मुझे प्राप्त हुई।

19. मुझे ‘डॉक्टर श्यामा प्रसाद मुखर्जी शोध अधिष्ठान’ में अपनी सेवाएं प्रदान करने का सुअवसर भी मिला। वहां कार्य करते हुए, मुझे संघ की विचार-प्रक्रिया तथा वर्तमान परिदृश्य में संघ की भूमिका को और गहराई से समझने का सुयोग प्राप्त हुआ था।

देवियो और सज्जनो,

20. मैंने अधिवक्ता, राज्यसभा सांसद, राज्यपाल और राष्ट्रपति के रूप में कर्तव्य-निर्वहन करते हुए, संवैधानिक मूल्यों को सर्वोच्च प्राथमिकता दी है। संवैधानिक मूल्यों को समझने में, संविधान के प्रमुख शिल्पी बाबासाहब आंबेडकर के विचार, दीप-स्तम्भ की तरह, मेरे दृष्टि-पथ को प्रकाशित करते रहे हैं। बाबासाहब ने संविधान की संरचना में राष्ट्रीय एकता को सर्वोच्च प्राथमिकता दी थी। राष्ट्रवाद की भावना हमारे संविधान की धुरी है। मेरे पूर्ववर्ती राष्ट्रपति श्री प्रणब मुखर्जी ने वर्ष 2018 में ‘संघ शिक्षा वर्ग तृतीय वर्ष समापन समारोह’ में अपने सम्बोधन के दौरान कहा था कि भारतीय राष्ट्रवाद की अवधारणा संवैधानिक राष्ट्रवाद यानी Constitutional Patriotism पर आधारित है। बाबासाहब भी कहा करते थे कि संविधान की व्यवस्था उपलब्ध हो जाने के बाद प्रत्येक समस्या का समाधान संविधान की व्यवस्था के अंतर्गत ही किया जाना चाहिए। इसी प्रकार, यह कहना सर्वथा तर्क सांगत, न्यायसंगत और भावसम्मत है कि संविधान को अंगीकृत, अधिनिमित और आत्मार्पित करने के बाद अपने राष्ट्रीय आदर्शों के स्रोतों को हम अपने संविधान में ही देखें।

21. 25 नवंबर, 1949 को बाबासाहब ने संविधान सभा में दिए गए अपने ऐतिहासिक सम्बोधन में कुछ चिंताएं व्यक्त की थीं जो मुझे संघ की चिंताओं और चिंतन में भी दिखाई पड़ती हैं। बाबासाहब ने अपनी इतिहास-दृष्टि से जो सामाजिक कमजोरी संविधान-सभा के सामने प्रस्तुत की थी उसे एक अंग्रेजी कहावत में इस प्रकार व्यक्त किया जाता है: “United, we stand. Divided, we fall.” यानी जहां एकता है, वहां अस्मिता है। जहां विभाजन है, वहां पतन है। डॉक्टर हेडगेवार भी कहते थे कि विदेशियों ने हमें प्रताड़ित करने के लिए हमारे ही भाइयों के हाथों में लाठी पकड़ा दी। हम असंगठित और विभाजित रहे।

22. 1925 में स्थापित राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ, एकता और संगठन का प्रतिरूप बना। आज हजारों शाखाओं में लाखों स्वयंसेवक व्यक्ति निर्माण, चरित्र निर्माण, समाज निर्माण और राष्ट्र निर्माण के लक्ष्य के साथ निरंतर आगे बढ़ रहे हैं।

देवियो और सज्जनो,

23. स्वाधीनता के पूर्व के राजनीतिक परिदृश्य में सांप्रदायिक विभाजन की भावना को भड़काने वाले अनेक तत्व सक्रिय थे। लोगों में सांप्रदायिकता से ऊपर उठकर राष्ट्र-प्रेम को प्राथमिकता देने का संदेश प्रसारित करने के लिए बाबासाहब के समकालीन, अनेक प्रबुद्ध व्यक्तियों का मानना था कि जनता के बीच हम सबको यह कहना चाहिए कि सबसे पहले हम भारतीय हैं उसके बाद ही हम हिन्दू, मुसलमान, सिख या ईसाई हैं। परन्तु भारतीयता के बारे में बाबासाहब की सोच कहीं अधिक व्यापक थी। वे कहा करते थे कि जनता के बीच हमें यह कहना चाहिए कि हम ‘पहले भी भारतीय हैं, बाद में भी भारतीय हैं और अंत में भी भारतीय हैं’।

देवियो और सज्जनो,

24. मैं मानता हूं कि प्रत्येक भारतीय को संघ के एकात्मता स्तोत्र को अवश्य पढ़ना चाहिए। इस स्तोत्र में, भारतीय इतिहास, भूगोल, संस्कृति, जीवन-मूल्यों और सामाजिक समावेश तथा समरसता की श्रेष्ठ अभिव्यक्ति विद्यमान है।

25. एकात्मता-स्तोत्र में महर्षि वाल्मीकि, एकलव्य, संत रविदास, संत कबीर, संत तुकाराम, भगवान बिरसा मुंडा, महात्मा फुले, श्री नारायण गुरु, बाबासाहब भीमराव आंबेडकर आदि प्रातः स्मरणीय विभूतियों का नामोल्लेख संघ की सर्व-समावेशी समाज-दृष्टि का प्रमाण है। परंतु यह जानकारी हमारे समाज के बहुत से लोगों तक नहीं पहुंची है। मैं चाहूंगा कि social-media और digital-technology सहित, हर संभव माध्यम का उपयोग करके,सामाजिक समावेश का संघ द्वारा प्रसारित यह संदेश जन-जन तक पहुंचे।

26. भेदभाव-रहित भारतीय समाज की परिकल्पना को व्यक्त करते हुए केरल की महान आध्यात्मिक विभूति, समाज सुधारक और कवि श्रीनारायण गुरु ने कहा है:

“जाति-भेदम् मत-द्वेषम् एदुम्-इल्लादे सर्वरुम्

सोद-रत्वेन वाडुन्न मात्रुका-स्थान मानित”

अर्थात, एक आदर्श स्थान वह है जहां जाति और पंथ के भेदभाव से मुक्त होकर सभी लोग भाई-भाई की तरह रहते हैं।

सभी देशवासियों को यह जानना चाहिए कि संघ के एकात्मता-स्तोत्र में श्रीनारायण गुरु जी का संघ के लाखों स्वयंसेवकों द्वारा नित्य स्मरण किया जाता है।

27. इस एकात्मता-स्तोत्र का एक श्लोक महिला विभूतियों को भी समर्पित है। आप सब तो उस श्लोक को जानते ही हैं। मैं अपनी श्रद्धा व्यक्त करने के लिए वह श्लोक दोहराता हूं:

अरुंधती अनसूया च सावित्री जानकी सती,

द्रौपदी कण्णगी गार्गी मीरा दुर्गावती तथा,

लक्ष्मीः अहल्या चन्नम्मा रुद्रमाम्बा सुविक्रमा,

निवेदिता सारदा च प्रणम्या मातृ देवता।

28. इस श्लोक में भगिनी निवेदिता का उल्लेख अत्यंत महत्वपूर्ण है। भगिनी निवेदिता ने आज से ठीक 123 वर्ष पहले, 2 अक्तूबर को ही मुंबई में ‘हिन्दू महिला सोशल क्लब’ को संबोधित करते हुए एक महत्वपूर्ण भाषण दिया था। उन्होंने भारत की बहनों से अनुरोध किया था कि वे भारतीय परिवार-परंपरा में विद्यमान आदरपूर्ण विनम्रता, सुदृढ़ स्नेह-बंधन, बुजुर्गों द्वारा बच्चों का दूरदर्शी संरक्षण तथा बच्चों में आदरभाव और कर्तव्य-परायणता के जीवन मूल्यों को बचाए रखें। पंच-परिवर्तन अभियान के तहत ‘कुटुंब-प्रबोधन’ का संघ का वर्तमान प्रयास अत्यंत सराहनीय है। पारिवारिक मान्यताओं को अपनाने, परिवार को व्यक्तित्व-निर्माण का आधार बनाने तथा परंपरा और संस्कारों की शक्ति को घर-परिवार में जगाने का महत्व आज के nuclear family तथा digital-age के संदर्भ में और अधिक बढ़ गया है।

29. महिलाएं हमारी परिवार-व्यवस्था में बराबर की सहभागी हैं। संघ की विकास यात्रा में भी यह तथ्य परिलक्षित होता है। आज से लगभग 90 वर्ष पहले 25 अक्तूबर 1936 को विजयादशमी के ही दिन संघ द्वारा ‘राष्ट्र-सेविका समिति’ की स्थापना की गयी थी। संघ की मान्यता के अनुसार, मातृ-शक्ति का दायित्व है कि वे परिवार निर्माण के साथ-साथ समाज और राष्ट्र का निर्माण भी करें। अतीत में भी मातृ-शक्ति द्वारा ऐसा योगदान किया जाता रहा है। जीजामाता, अहिल्याबाई होलकर, रानी अब्बक्का, रानी चेन्नम्मा, लक्ष्मी बाई, झलकारी बाई, अवन्ती-बाई लोधी, सावित्री बाई फुले, लक्ष्मीबाई केलकर, विजयाराजे सिंधिया और सुषमा स्वराज जैसी महिला विभूतियों ने अपने त्याग, शौर्य और नेतृत्व से राष्ट्र-निर्माण को अमूल्य योगदान दिया है।

देवियो और सज्जनो,

30. सामाजिक समरसता को पंच-परिवर्तन अभियान में पहला स्थान दिया गया है। सामाजिक समानता और एकता संघ की पहचान है। ‘एक मंदिर, एक कुआं, एक शवदाह-स्थल’ जैसे प्रयासों से, विभाजक प्रवृत्तियों को दूर किया जा रहा है। यह प्रसन्नता की बात है कि समरसता की भावना के साथ समाज-सेवा तथा समाज-परिवर्तन के अनेक प्रकल्प संघ द्वारा चलाये जातेहैं। देशभर में, संघ के स्वयंसेवकों के द्वारा शिक्षा, स्वास्थ्य और जन-जागरण के लिए गरीब बस्तियों में किया जा रहा कार्य विशेष रूप से सराहनीय है।

31. संघ में व्याप्त समरसता, समानता और जाति भेद से पूरी तरह मुक्त व्यवहार को देखकर महात्मा गांधी भी बहुत प्रभावित हुए थे, जिसका विस्तृत विवरण सम्पूर्ण गांधी वांड्मय में मिलता है। गांधीजी ने 16 सितंबर, 1947को दिल्ली में आयोजित राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की रैली को संबोधित किया था और कहा था कि वे बरसों पहले संघ के संस्थापक डॉक्टर हेडगेवार के जीवनकाल में संघ के एक शिविर में गए थे। गांधीजी संघ के शिविर में अनुशासन, सादगी और छूआछूत की पूर्ण समाप्ति को देखकर अत्यंत प्रभावित हुए थे। जनवरी 1940 में बाबासाहब आंबेडकर द्वारा महाराष्ट्र के सातारा जिले के कराड़ नगर में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की शाखा में जाकर लोगों से मिलने का तथा अपनेपन की भावना व्यक्त करने और सहायता का प्रस्ताव देने का उल्लेख, संघ के समरसतापूर्ण दर्शन एवं व्यवहार शैली का ऐतिहासिक प्रमाण है। मराठी भाषा में प्रकाशित होने वाले ‘केसरी’ समाचार पत्र को उस समय राष्ट्रीय समाचार पत्र का दर्जा प्राप्त था। 9 जनवरी, 1940के केसरी समाचार पत्र में बाबासाहब के एक महत्वपूर्ण वक्तव्य को उद्धृत किया गया है। बाबासाहब ने कहा था ‘कुछ बातों में मतभेद होने पर भी मैं इस संघ की ओर अपनेपन से देखता हूं।’ बाबासाहब के अपने साप्ताहिक पत्र ‘जनता’ में भी यह समाचार छपा था कि कराड़ म्युनिसिपलिटी के एक समारोह में भाग लेने के बाद बाबासाहब राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के लोगों से मिले और आवश्यकता पड़ने पर उनकी सहायता करने का आश्वासन दिया।

देवियो और सज्जनो,

32. आर्थिक आत्म-निर्भरता तथा स्वदेशी को प्रोत्साहन देना, संघ की प्राथमिकता रही है। यह प्राथमिकता आज के वैश्विक संदर्भ में और भी अधिक प्रासंगिक हो गई है। संघ के पंच-परिवर्तन के कार्यों में शामिल ‘स्व’ का बोध और स्वदेशी व्यवहार तथा आत्म-निर्भरता मूलतः एक दूसरे से जुड़े हुए हैं।

33. संघ द्वारा भारतीय मूल्यों तथा सादगी पर आधारित पर्यावरण-पूरक जीवन-शैली पर सदैव जोर दिया जाता है। परंपरागत भारतीय जीवन-शैली, प्रकृति का सम्मान करने की भावना पर आधारित रही है। मुझे विश्वास है कि संघ के शताब्दी वर्ष के दौरान पंच-परिवर्तन कार्यों में शामिल किया गया ‘पर्यावरण संरक्षण’ का अभियान प्रकृति के साथ सामंजस्यपूर्ण जीवनशैली के प्रसार में सहायक सिद्ध होगा। अतिवृष्टि, अनावृष्टि, अकालवृष्टि, अप्रत्याशित हिमपात, तापमान में अत्यधिक वृ‌द्धि से पशु-पक्षियों और मनुष्यों की मृत्यु जैसे प्राकृतिक प्रकोप पिछले कुछ वर्षों के दौरान बढ़े हैं। व्यक्तिगत, पारिवारिक, सामाजिक, संगठनात्मक और राष्ट्रीय प्रयासों के बल पर पर्यावरण संतुलन को स्थापित करने की दिशा में हम सबको और आगे बढ़ना है।

देवियो और सज्जनो,

34. युवाओं की ऊर्जा को सही दिशा प्रदान करना देश के सुदृद भविष्य के लिए अनिवार्य है। यह बात उत्साहित करती है कि आज संघ के प्रति युवाओं में आकर्षण बढ़ रहा है। युवाओं में ईमानदारी, विनम्रता, प्रामाणिकता और सकारात्मक दृष्टिकोण के जीवन-मूल्यों को प्रसारित करने में संघ परिवार बहुत बड़ा योगदान दे सकता है। सभी सम्बद्ध संगठनों को एकजुट होकर योग-युक्त तथा नशा-मुक्त युवा पीढ़ियों का निर्माण करना है।

35. मैं युवाओं से अनुरोध करूंगा कि वे जन-सेवा में बढ़-चढ़कर भागीदारी करें। नैतिक मूल्यों पर आधारित राजनीति में भागीदारी करना जन-सेवा का प्रभावी माध्यम है। किसी विचारक ने ठीक ही कहा है कि राजनीति से परहेज करने की गलती करके, समाज के अच्छे लोग अपने ऊपर कम योग्य व्यक्तियों के शासन का भार ढोना स्वीकार कर लेते हैं। जन-सेवा की भावना से प्रेरित होकर तथा संकीर्ण निजी स्वार्थों से ऊपर उठकर राजनीति में सक्रिय होना युवाओं के हित में भी है, तथा समाज और राष्ट्र के हित में भी है।

36. मैं समाज के सभी लोगों से, विशेषकर युवाओं से, यह कहना चाहता हूं कि आपकी जो भी उपलब्धियां हैं उनका बहुत बड़ा श्रेय परिवार के अलावा, समाज और देश को जाता है। यह समाज और देश का आपके ऊपर ऋण है। इसे चुकाने के लिए आपको हर तरह से तैयार रहना चाहिए। जो लोग विकास यात्रा में पीछे रह गए हैं उनका हाथ पकड़कर उन्हें अपने साथ ले चलना हमारा राष्ट्रीय कर्तव्य है। संघ द्वारा चलाए जा रहे पंच-परिवर्तन कार्यों में ‘नागरिक कर्तव्य’ भी शामिल है। हम भारत के लोगों ने, सामाजिक न्याय सुनिश्चित करने के लिए संवैधानिक संकल्प लिया है। अंत्योदय की भावना और लक्ष्य के साथ कार्य करके हम अपने नागरिक कर्तव्यों को ठीक से निभा सकेंगे। मैं संघ की शाखाओं में प्रायः गाए जाने वाले एक अत्यंत लोकप्रिय गीत के माध्यम से अपनी बात कहना चाहूंगा। लाखों स्वयंसेवक इस गीत को भली-भांति जानते हैं। फिर भी, यह पंक्ति मैं दोहराना चाहूंगाः

देश हमें देता है सब कुछ,

हम भी तो कुछ देना सीखें।

देवियो और सज्जनो,

37. संघ की कार्यशैली व्यक्ति-निष्ठ न होकर संगठन-निष्ठ और तत्त्व-निष्ठ है। यही संघ की शक्ति है। पिछले सौ वर्षों के दौरान संघ द्वारा समरस, और संगठित व समावेशी समाज तथा सुदृढ़ राष्ट्र के निर्माण हेतु भगीरथ प्रयास किए गए हैं। संघ ने संत-परंपरा, सज्जन-शक्ति और मातृ-शक्ति के योगदान से हमारे समाज और राष्ट्र को एकता के सूत्र में पिरोया है। नई पद्धतियों और technology को अपनाते हुए, संघ के कार्यों को और तेज गति से आगे बढ़ाने की आवश्यकता है। मैं आशा करता हूं कि भविष्य में संघ का और अधिक विस्तार होगा। जमीनी स्तर पर सामाजिक समरसता एवं सामाजिक न्याय के पक्षधर रहे संघ के स्वयंसेवक, गरीबों और वंचितों को न्याय दिलाने में और अधिक सक्रियता तथा दृढ़ता के साथ कार्य करेंगे।

38. मुझे विश्वास है कि वर्ष 2047 तक विकसित भारत तथा पूर्णतः समरस और एकात्म भारत के निर्माण में संघ का असीम योगदान रहेगा। मैं पुनः आप सभी को विजयादशमी के पावन पर्व की बधाई देते हुए अपनी बात समाप्त करता हूं।

धन्यवाद !

जय हिन्द।

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