दिल्ली। भारत की ग्रामीण अर्थव्यवस्था की आधारशिला रही महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी योजना (मनरेगा) अब नए रूप में सामने आई है। राष्ट्रपति ने ‘विकसित भारत-गारंटी फॉर रोजगार एंड आजीविका मिशन (ग्रामीण) विधेयक, 2025’ (जी राम जी कानून) को मंजूरी दे दी है। यह कानून मनरेगा की कमियों को दूर कर ग्रामीण विकास को नई दिशा देने वाला है।
ग्रामीण रोजगार योजनाओं का ऐतिहासिक सफर
स्वतंत्रता के बाद से ग्रामीण भारत में रोजगार और विकास के लिए कई योजनाएं आईं। 1960 के दशक में ग्रामीण श्रमशक्ति कार्यक्रम शुरू हुए। इसके बाद राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार कार्यक्रम, जवाहर रोजगार योजना (1993), संपूर्ण ग्रामीण रोजगार योजना और रोजगार आश्वासन योजना जैसी पहलें हुईं। 2005 में नरेगा लागू हुआ, जिसे 2009 में महात्मा गांधी का नाम जोड़कर मनरेगा बना दिया गया। हर 15-20 साल में इन योजनाओं की समीक्षा और बदलाव की परंपरा रही है, क्योंकि समाज, अर्थव्यवस्था और तकनीक बदलते रहते हैं।
मनरेगा की सफलताएं और सीमाएं
मनरेगा ने ग्रामीण गरीबी उन्मूलन, आय स्थिरता और बुनियादी ढांचा निर्माण में बड़ी भूमिका निभाई। महिलाओं की भागीदारी 48% से बढ़कर 58% हुई, डिजिटल पेमेंट और जियो-टैगिंग से पारदर्शिता बढ़ी।
लेकिन समय के साथ कमियां उजागर हुईं-बड़े पैमाने पर भ्रष्टाचार, मजदूरी भुगतान में देरी, फर्जी लाभार्थी, मशीनों का दुरुपयोग और टिकाऊ संपत्ति निर्माण की कमी। दस लाख करोड़ रुपये से ज्यादा खर्च होने के बावजूद अपेक्षित बुनियादी ढांचा नहीं बना।
महामारी के बाद कई परिवारों को पूरे 100 दिन काम भी नहीं मिला। योजना अल्पकालिक राहत तक सीमित रह गई, जबकि आज का ग्रामीण युवा विकसित भारत-2047 के बड़े सपनों से जुड़ा है।
बदलते भारत की नई जरूरतें
पिछले दो दशकों में ग्रामीण भारत बदल चुका है। निर्धनता दर 27.1% से घटकर 5.3% हो गई।
डिजिटल पहुंच, बेहतर कनेक्टिविटी और विविध आजीविका के अवसर बढ़े।
मिलेनियल्स, जेन जी और जेन अल्फा की नई पीढ़ी नई आकांक्षाएं रखती है।
2005 की मनरेगा अब 21वीं सदी के डिजिटल और एआई युग से पूरी तरह मेल नहीं खाती। पुरानी योजनाओं को आधुनिक परिवेश में ढालना जरूरी है।
जी राम जी कानून की मुख्य विशेषताएं
नया कानून रोजगार गारंटी को 100 से बढ़ाकर 125 दिन करता है। कृषि चक्रों से तालमेल के लिए बोआई-कटाई के पीक सीजन में 60 दिनों की छुट्टी का प्रावधान है, जिससे मजदूर कृषि कार्य से अतिरिक्त आय कमा सकें।
कुल 185 दिन रोजगार की संभावना।
फोकस अल्पकालिक राहत से हटकर टिकाऊ विकास पर है।
चार स्पष्ट श्रेणियां तय की गईं: जल संरक्षण, आधारभूत संरचना, आजीविका और प्राकृतिक आपदा संबंधी कार्य।
सामग्री पर खर्च 40% से बढ़ाकर 50% किया गया। योजना निर्माण अब स्थानीय ग्राम समिति करेगी, न कि दिल्ली से।
भ्रष्टाचार और देरी पर लगाम
मनरेगा में भुगतान देरी और ठेकेदारों की शिकायतें आम थीं। जी राम जी में साप्ताहिक या पाक्षिक भुगतान अनिवार्य है, पूरी तरह डिजिटल माध्यम से।
बायोमीट्रिक अटेंडेंस, जियो-टैगिंग, रियल-टाइम डैशबोर्ड और एआई निगरानी से भ्रष्टाचार कम होगा।
प्रशासनिक खर्च 6% से बढ़ाकर 9% किया गया, ताकि बेहतर स्टाफिंग और ट्रेनिंग हो।
फंडिंग में पहाड़ी एवं पूर्वोत्तर राज्यों के लिए केंद्र का हिस्सा 90% और बाकी राज्यों में 60% रखा गया-जिससे राज्यों की जवाबदेही बढ़ेगी।
विवाद और विपक्ष के आरोप
विपक्ष इसे मनरेगा के अधिकार-आधारित ढांचे का अंत बता रहा है। कांग्रेस ने ‘राम’ नाम को राजनीतिक करार दिया और महात्मा गांधी की विरासत का अपमान बताया।
आरोप है कि बजट कैपिंग से योजना मांग-आधारित से सप्लाई-आधारित हो जाएगी, राज्य बोझ बढ़ने से लागू नहीं कर पाएंगे और पीक सीजन छुट्टी से मजदूरों की आय प्रभावित होगी।
कुछ विशेषज्ञ मानते हैं कि संकट के समय मनरेगा लाइफलाइन थी, नया कानून उसकी ताकत कमजोर करता है।
नई ऊंचाइयों की ओर कदम?
जी राम जी कानून वित्तीय अनुशासन, तेज भुगतान, कृषि समन्वय और टिकाऊ विकास से ग्रामीण भारत को नई ऊंचाइयों पर ले जाएगा।
यह विकसित भारत-2047 के विजन से जुड़ा है। नाम में ‘राम’ ईमानदारी और राम राज्य का प्रतीक है।
असली परीक्षा जमीनी कार्यान्वयन में होगी-क्या यह ग्रामीण युवाओं की आकांक्षाओं को पूरा करेगा और मनरेगा से बेहतर साबित होगा? समय बताएगा।
फिलहाल, यह ग्रामीण नीति का बड़ा बदलाव है।



