”बिहार में जलवायु संकट से बढ़े हीट वेव और वज्रपात का आकलन और उसे रोकने के प्रयास के आकलन’ पर ‘मीडिया कलेक्टिव फॉर क्लाइमेट इन बिहार’ ने गैर सरकारी संस्था ‘असर’ के सहयोग से मीडिया रिपोर्ट जारी किया है। इस अध्ययन टीम में सीटू तिवारी, सत्यम कुमार झा, मनीष शांडिल्य, पुष्यमित्र शामिल थे। रिपोर्ट तैयार करने में इनका सहयोग- सौरभ मोहन ठाकुर, संजीत भारती, बासुमित्र ने किया। 67 पन्ने की रिपोर्ट के मुख्य अंश को हम यहां प्रकाशित कर रहे हैं। जिसे पढ़ने के बाद आप जमीनी स्थिति से परिचित हो सकेंगे। अध्ययन करने वाली टीम ने जहां एक तरफ यह बताया है कि इस अध्ययन की आवश्कता क्यों है, दूसरी तरफ उन्होंने जमीनी चुनौतियों को भी कलमबद्ध किया और हालात कैसे सुधरे, इस पर भी उन्होंने अपनी रिपोर्ट में सुझावों से भरा एक लंबा नोट लिखा है। आइए इस रिपोर्ट के माध्यम से समझते हैं जलवायु संकट और इससे जुड़ी चुनौतियों को।
अरविन्द अभय
यह अध्ययन क्यों?
भारत के पूर्वी हिस्से में बसा राज्य बिहार पिछले कई दशकों से मानव विकास से जुड़ी कई गंभीर चुनौतियों का सामना कर रहा है। इन चुनौतियों में सबसे प्रमुख यहां हर वर्ष आने वाली विभिन्न प्राकृतिक आपदाओं को माना जाता है, जिनमें बाढ़ सबसे बड़ी आपदा है। इसके अलावा सूखा, वज्रपात, अग्निकांड, शीतलहर और लू (गर्म हवाएं) भी ऐसी आपदाएं हैं, जो अमूमन हर साल राज्य की बड़ी आबादी को प्रभावित करती है और विकास की तमाम योजनाओं और कोशिशों के बावजूद यह राज्य हमेशा पिछड़ जाता है। हाल के वर्षों में बढ़े जलवायु संकट ने इस समस्या को और अधिक बढ़ा दिया है।
यह अध्ययन हमने बिहार राज्य में हीट वेव और वज्रपात के असर को समझने, उसको लेकर किये जाने वाले सरकारी हस्तक्षेपों और उसकी जमीनी पड़ताल का आकलन करने और उसका बेहतर समाधान तलाशने के लिए किया था। इस अध्ययन के दौरान अध्येताओं के तौर पर भी हमने समझा कि हीट वेव और वज्रपात बिहार जैसे गरीब राज्य के लिए कितनी बड़ी समस्या है। साथ ही यह भी समझा कि ये दोनों आपदा भी जलवायु संकट की उस विराट आपदा के हिस्से हैं, जिससे आज पूरी दुनिया जूझ रही है।
हमने क्या पाया?
हमारी समझ बनी कि भले बिहार राज्य दुनिया को जलवायु संकट के खतरे में झोंकने की दिशा में बड़ी भूमिका नहीं निभा रहा, मगर एक गरीब, संसाधन विहीन और बेहतर प्रशासनिक क्षमता से वंचित राज्य होने की वजह से बिहार के सामने जलवायु संकट एक बड़ी आपदा की तरह सामने आया है। हर साल आने वाली बाढ़ के बाद हीट वेव और वज्रपात ही ऐसी आपदा हैं, जिससे बिहार सर्वाधिक प्रभावित हो रहा है।
हमने पाया कि राज्य में 2015-2019 के बीच हीट वेव की वजह से 534 लोगों की जान गयी। यानी औसतन हर साल 106.8 लोगों की मौत हुई। राज्य के 38 में से 33 जिले में हीट वेव की स्थिति सामान्य से अधिक ऊंची है। इनमें चार जिले खगड़िया, जमुई, पूर्णिया और बांका में हीट वेव का संकट बड़ा है। ये टाइप टू वाली श्रेणी में आते हैं। राहत की बात यह जरूर है कि राज्य में कोई जिला अभी अति उच्च ताप भेद्यता वाली टाइप वन में नहीं आता। मगर यह तथ्य आंखें खोलने वाला है कि खगड़िया और पूर्णिया जैसे उत्तर बिहार के जिलों में हीट वेव का संकट अधिक है, जबकि वहां के लोग और वहां का प्रशासन भी अमूमन इस खतरे से अनभिज्ञ नजर आते हैं। यह तथ्य हमें राज्य के हीट एक्शन प्लान में मिला है, मगर हम सब जानते हैं कि इस खतरे को लेकर हमारी जानकारी कितनी कम है।
वज्रपात के मामले में भी स्थिति ऐसी ही है। देश में मध्य प्रदेश और बिहार दो ऐसे राज्य माने जाते हैं, जहां वज्रपात से सबसे अधिक मौतें होती हैं। एनसीआरबी के आंकड़ों के मुताबिक बिहार में 2015 से 2019 के बीच वज्रपात से कुल 1280 लोगों की मौत हुई यानी हर साल अमूमन 256 लोगों की। इस दौरान देश में कुल 14074 लोगों की मौत हुई यानी हर साल 2814.8 लोगों की। इस लिहाज से वज्रपात से मरने वाले देश के हर सौ लोगों में नौ बिहार के थे। जबकि वज्रपात की कुल घटनाओं की बात करें तो बिहार का देश में दसवां स्थान है। ओड़िशा और बंगाल में वज्रपात की घटनाएं सर्वाधिक होती हैं, मगर वहां की सरकार ने अपने तरीके से इस संकट पर काबू पाया है और अपने राज्य के लोगों को मरने से बचाया है।
हमने यह भी जाना कि बिहार सरकार ने 2019 में हीट वेव एक्शन प्लान तैयार किया है। इसके अलावा 2015 से हर साल राज्य का आपदा प्रबंधन विभाग मार्च महीने में सभी जिलों को हीट वेव से बचाव के निर्देश जारी करता है। इस योजना में राज्य के 18 विभागों को शामिल किया गया है और उन्हें अलग-अलग जिम्मेदारी दी गयी है। मगर जमीनी पड़ताल बताते हैं कि इनमें से ज्यादातर निर्देशों को लागू नहीं किया जाता।
जमीनी हकीकत
- ग्रामीण अस्पतालों में नहीं के बराबर आइसोलेशन बेड बनते हैं।
- प्रचार प्रसार का काम औपचारिकता निभाने जैसा होता है।
- स्कूलों और आंगनवाड़ी केंद्रों में बचाव के उपाय के तौर पर दवाएं और संसाधन नहीं के बराबर हैं।
- मनरेगा और श्रम संसाधन विभाग व्यावहारिक रूप से कहीं मजदूरों के लिए कार्यस्थल पर पीने का पानी और ओआरएस, आइसपैक वगैरह नहीं रखवाता। उनके काम के वक्त में बदलाव नहीं किया जाता।
- नगर निकायों को शहर में जगह-जगह पर प्याऊ की व्यवस्था करनी है। मगर यह काम भी खानापूर्ति की तरह होता है। कहीं धूप से बचाव के लिए शेड का इंतजाम नहीं होता।
- तापमान 40 डिग्री से अधिक होने पर कई तरह के उपायों को करना है, मगर वह किया नहीं जाता।
- किसी बस में पीने के पानी और ओआरएस की व्यवस्था नहीं होती।
इस संकट को समझने के लिए हमने राज्य की स्वास्थ्य सुविधाओं का अलग से आकलन किया। मगर हमने पाया कि वे भी अपर्याप्त हैं। खास तौर पर अस्पतालों में मैनपावर का संकट बड़ा है। यह भी इस संकट को बढ़ा देता है, क्योंकि हीट वेव से पीड़ित लोगों को समय से उपचार नहीं मिल पाता।
वज्रपात के संकट का सामना करने के लिये राज्य सरकार के पास आज की तारीख तक कोई सुव्यवस्थित योजना नहीं है। एक्शन प्लान भी नहीं बना है। हालांकि आपदा प्रबंधन विभाग का कहना है कि वे इसे बहुत जल्द तैयार करके लागू करने वाले हैं। चेतावनी का तंत्र भी व्यवस्थित नहीं है। इंद्रवज्र नामक एक एप बना है, जो बहुत कारगर नहीं है। एसएमएस के जरिये एक बहुत सामान्य किस्म की चेतावनी जारी की जाती है, मगर वह बहुत प्रभावी नहीं है। फिलहाल सरकार सिर्फ अखबारों में विज्ञापन जारी कर लोगों को जागरूक करने का प्रयास करती है।
अगर संक्षेप में कहें तो हीट वेव और वज्रपात के जिस स्तर के खतरे का बिहार सामना कर रहा है, उसे लेकर न लोगों में गंभीरता है और न सरकारी हस्तक्षेप किये जा रहे हैं। लिहाजा यह खतरा लगातार बढ़ रहा है। जो योजनाएं बनी भी हैं, वे धरातल पर न के बराबर लागू होती हैं और इसकी निगरानी भी नहीं होती।
हमारे सुझाव
- हीट वेव और वज्रपात का संकट बड़ा है, मगर इस खतरे को लेकर अभी बिहार के लोग तो दूर प्रशासन के बीच भी अच्छी समझ नहीं बन पायी है। पूर्णिया जैसा जिला जो हीट वेव के खतरे की उच्च श्रेणी में है, वहां का प्रशासन मानता है कि जिले का मौसम वैसा नहीं है कि यहां हीट वेव का खतरा हो। इसलिए सबसे अधिक जरूरी इस खतरे के बारे में प्रशासन को प्रशिक्षित और संवेदित करने की है। उन्हें बताना होगा कि राज्य किस स्तर के खतरे का सामना कर रहा है। इसके लिए नियमित सेमीनार और कार्यशालाओं का आयोजन होना चाहिए।
- जागरूकता का काम आम लोगों के बीच भी होना चाहिए। अगर वे इस खतरे के वास्तविक स्वरूप को समझ लेंगे तो संकट से बचाव करने में वे खुद धीरे-धीरे सश्रम हो जायेंगे। इसके लिए प्रचार प्रसार का काम गंभीरता से करना होगा और ऑनलाइन माध्यमों से कहीं अधिक होर्डिंग, माइकिंग और नुक्कड़ नाटकों जैसे पारंपरिक माध्यमों को अपनाना होगा, जो बिहार जैसे राज्य के लिए अधिक मुफीद हैं, जहां अभी भी बहुत कम लोगों के पास स्मार्टफोन है।
- हीट वेव एक्शन प्लान की तरह वज्रपात का एक्शन प्लान भी जल्द से जल्द बने और लागू हो। देश के कई राज्यों में जिलावार एक्शन प्लान बने हैं। बिहार में भी खतरे को देखते हुए कुछ सर्वाधिक प्रभावित जिलों का अलग से एक्शन प्लान बने, वहां की परिस्थितियों के अनुकूल।
- एक्शन प्लान और नीतियों को तैयार करने में बाहरी विशेषज्ञों के बदले ऐसे स्थानीय विशेषज्ञों को प्राथमिकता दी जाये जो स्थानीय भूगोल और पर्यावरण को समझते हों।
- यह ध्यान रखा जाये कि एक्शन प्लान और दिशानिर्देशों का जमीनी स्तर पर ठीक से प्लानिंग हो रहा है या नहीं। इसकी सख्त निगरानी हो और सुनिश्चित किया जाये कि दिशा निर्देशों का कम से कम 60 फीसदी पालन तो जरूर हो।
- इस संकट का सामना करने में सरकारी स्वास्थ्य तंत्र की बड़ी भूमिका होती है। इसलिए खास तौर पर ग्रामीण और दूरदराज के अस्पतालों को सुविधा, दवा और मैनपावर से युक्त बनाया जाये और उसकी व्यवस्था को सुदृढ़ किया जाये। अगर हो सके तो ऊर्जा के साधनों के रूप में सोलर को अपनाया जाये। जो आपदा की स्थिति में भी अस्पताल को क्रियाशील रखने में मददगार हो।
- फिलहाल हमारा पूरा फोकस इस संकट से लोगों को राहत दिलाने में है, मगर साथ-साथ हमें यह प्रयास भी करना होगा कि कैसे हम जलवायु संकट को कम करने में मददगार हो सकते हैं। शहरों के कंकरीट एरिया को कम करें, पेड़ों को कटने से रोकें और पर्यावरण को बेहतर बनायें।