शशिप्रभा तिवारी
डा समीक्षा शर्मा कथक नृत्य के क्षेत्र में जाना माना नाम है। उन्होंने युवा कथक कलाकारों की श्रेणी में अपनी साधना से एक अलग पहचान बनाई है। एक ओर वह अच्छी नृत्यांगना हैं, वहीं दूसरी ओर शास्त्र पक्ष की भी अच्छी समझ रखती हैं। उन्होंने कथक पर उज्बेक भाषा में अनुवादित एक पुस्तक लिखी है। उनके कई शोध पत्र प्रकाशित हो चुके हैं। वह भारतीय सांस्कृतिक संबंध परिषद की ओर से उज्बेकिस्तान में सांस्कृतिक दूत के पद पर कार्य कर चुकी हैं। वह दूरदर्शन और आईसीसीआर द्वारा मान्यता प्राप्त कलाकार हैं। उन्हें इंडिया एक्सलेंस अवार्ड, अंतरराष्ट्रीय महिला एसोसिएशन सम्मान, ग्वालियर रत्न और नृत्य श्रृंगार मणि मिल चुका है। उन्हें खजुराहो नृत्य समारोह, कालिदास महोत्सव, सार्क तरोना लारी, बार्सिलोना उत्सव में शिरकत कर चुकी हैं।
पिछले दिनों इंडिया इंरनेशनल सेंटर में माॅनसून उत्सव 23 अगस्त को आयोजित था। इस समारोह में कथक नृत्यांगना समीक्षा शर्मा ने एकल नृत्य प्रस्तुत किया। इसमें उन्होंने नवाचार करते हुए, स्वरचित नृत्य रचना कृष्ण अंग बहुरंग पेश किया। इस प्रस्तुति का आरंभ उन्होंने खाटू श्याम की वंदना से किया। इसमें उन्होंने खाटू श्याम के अवतरण और उनके जीवन व वंदन की कथा की व्याख्या पेश किया। यह वंदना रचना ‘खाटू श्या मजी अरज सुनो जी‘ पर आधारित थी। इस भजन की रचना समीक्षा शर्मा ने किया था। यह राग मिश्र मांड और दीपचंदी ताल में निबद्ध था। नृत्यांगना समीक्षा शर्मा ने प्रसंग को बहुत सरलता और सहजता से पेश किया। ‘शीश के दानी‘ व ‘भंवर में नैया‘ बोल को भाव और नाव की गत व सरपण गति से मोहक अंदाज में दर्शाया।
उनकी दूसरी प्रस्तुति थी-कृष्ण अंग बहुरंग। इस की परिकल्पना उन्होंने अपने गुरु पंडित राजेंद्र गंगानी के मार्गदर्शन में किया था। इसमें सांभरी के पशु पक्ष्यिों के प्रति प्रेम और प्राकृतिक प्रेम को विशेष् तौर पर समाहित किया गया था।
इसमें ऋषि संाभ्री के मछली प्रेम को दर्शाया। इसी के अगले अंश में विष्णु अवतार कृष्ण द्वारा कालिया मर्दन प्रसंग को दिखाया। इसके लिए सूरदास के पद तांडव गति मुंडन पर नाचत गिरिधारी का चयन किया गया था। इस प्रसंग को दर्शाने के क्रम में नृत्यांगना समीक्षा शर्मा ने मृग, गज, व्याघ्र, मीन, सर्प हस्तकों के जरिए दर्शाते हुए, गतियों को प्रभावकारी अंदाज में पेश किया। नृत्य में भाव पक्ष का प्रयोग संुदर था। इसके साथ तिहाइयों, टुकड़ो और गतों को बखूबी पेश किया। नृत्य का समापन कलिया मर्दन प्रसंग के बाद बावन चक्कर को प्रस्तुत किया।
नृत्यांगना समीक्षा ने बताया कि मैं बचपन से ही नृत्य करती हूं। नृत्य करने से मुझे आत्मसंतुष्टि मिलती है। मैं समय के साथ अपना सफर करते हुए, धीरे-धीरे आगे बढ़ती रही हूं। इसके बावजूद लगता है कि अभी तो बहुत कुछ करना बाकी है।
इंडिया इंटरनेशनल सेंटर के इस आयोजन के दौरान अपनी प्रस्तुति के संदर्भ में उन्होंने बताया कि नृत्य के देवता भगवान शिव यानी नटराज को माना जाता है। हमलोग कृष्ण को नटनागर मानते हैं। वह भी कालिया सर्प के फन पर खड़े होकर नृत्य करते हैं। इस प्रसंग को कथक और अन्य नृत्य शैलियों के कलाकार कालिया मर्दन प्रसंग में पेश करते हैं। मैं कृष्ण से जुडे इस प्रसंग को थोड़े अलग तरीके से पेश करना चाहती थी। इसी क्रम में मुझे स्रांभि ऋषि प्रसंग का पता चला। फिर मैं मथुरा स्थित जैत गांव में गई। वहां मैंने लोककथा सुनी। यहां कालिया सर्प के मूर्ति को देखा। वहां लोगों ने बताया कि अंग्रेजों ने कालिया सर्प की मूर्ति पऱ गोलियां चलाई थी, जिससे उनके सिर से खून निकला था और ढेर सारे सर्प बिल में से निकल कर आ गए थे। इससे मुझे एक नया विचार मिला और मैंने इसे अपने प्रस्तुति में शामिल किया।
पंडित राजेंद्र गंगानी कथक नृत्यांगना समीक्षा शर्मा के गुरु हैं। उनके संदर्भ में वह कहती हैं कि गुरु जी की सबसे बड़ी खूबी उनकी निरंतरता है। जब भी बात करिए तब वह सबसे पहले पूछते हैं कि आपने रियाज किया या नहीं। वह बिना नागा किए रोज रियाज करते हैं। उनकी यह बात मुझे बहुत प्रेरित करता है।
बहरहाल, इस समारोह में कथक नृत्यांगना समीक्षा शर्मा के साथ संगत करने वाले कलाकार थे-तबले पर निशित गंगानी, गायक शोएब हसन, पखावज पर महावीर गंगानीा, सारंगी पर अयूब खान और पढंत पर प्रवीण प्रसाद।