मेट्रो की राह और हिम्मत की कहानी

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डॉ. सीमा सिंह

फरीदाबाद : लंबे समय से मैंने सार्वजनिक परिवहन का इस्तेमाल नहीं किया था। घर के सामने कार खड़ी होती और मैं सीधे गंतव्य तक पहुँच जाती थी। लेकिन हाल ही में विदेश यात्रा के दौरान मेट्रो और बसों का इतना अनुभव हुआ कि मन बना लिया—भारत लौटकर भी यही तरीका अपनाऊँगी। इससे न केवल पैसे बचेंगे, बल्कि पर्यावरण को भी राहत मिलेगी।

आज पहली बार घर से पैदल निकली। सुबह की हवा और सड़क का शोर मन को तरोताजा कर रहा था। पैदल चलने की सुखद अनुभूति ने मुझे मंत्रमुग्ध कर दिया। आसपास कई लोग मेट्रो की ओर बढ़ रहे थे, और मैं भी उनके साथ बहती चली गई। रास्ते में नई-नई दुकानें दिखीं—कुछ मेरे काम की, कुछ बस आँखों को भाने वाली। हर कोने पर पुरानी यादें ताजा हो रही थीं।

तभी एक बाइक सवार मेरे बगल से गुजरा। पहले तो ध्यान नहीं गया, लेकिन उसने स्पीड कम की और घूरते हुए कुछ बुदबुदाया। पास आकर बोला, “मिस ब्यूटीफुल, आई लव यू।” मेरे गुस्से का पारा सातवें आसमान पर पहुँच गया। बिना देर किए मैंने उसे कड़े शब्दों में जवाब दिया। वह घबराकर तेजी से भागा, और मैं बाइक का नंबर नोट करने से चूक गई।

यह पहली बार नहीं था। पहले भी ऐसी घटनाएँ होती रहती थीं, लेकिन समय के साथ वे धुंधली पड़ गई थीं। उस उम्र में ये घटनाएँ मुझे अंदर तक तोड़ देती थीं, सामान्य होने में घंटों लगते थे। लेकिन अब हालात बदल गए हैं। अब मैं डरने की बजाय मुंहतोड़ जवाब देने और सबक सिखाने की हिम्मत रखती हूँ।

समाज में पुरुषों की ओर से होने वाली प्रताड़ना की खबरें सुनकर मन उदास हो जाता है। अक्सर एक अपवाद को पूरे समाज का सच मान लिया जाता है। पुरुषों की क्रूरता का जवाब महिलाएँ शायद ही कभी दे पाती हैं। मेरी चिंता उन नन्हीं बच्चियों के लिए भी है, जो रोज ऐसी घटनाओं से जूझती हैं और डर के मारे परिवार को कुछ नहीं बतातीं, क्योंकि उन्हें लगता है कि पढ़ाई छूट जाएगी।

फिर भी, इन सबके बावजूद मैं सोच रही हूँ—क्या मैं रोज ऐसी परेशानियों से जूझते हुए समय पर मेट्रो पकड़ पाऊँगी? मन में थोड़ी हिचकिचाहट है, लेकिन हार नहीं मानूँगी। आज मैंने पुलिस चौकी में जाकर सीसीटीवी फुटेज देखने की बात कही है। शाम को वापस लौटते समय इसकी फॉलो-अप भी करूँगी। यह मेरी नई शुरुआत है—परिवहन की सुविधा और अपनी हिम्मत दोनों को साथ लेकर।

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