डॉ. मोहन भागवत
मोरोपंत पिंगले जी 75 साल के हो गए। उस वक्त हम सब लोग वृंदावन में बैठक में थे और अखिल भारतीय कार्यकर्ता वहां पर उपस्थित थे। समापन के पूर्व हो. वे. शेषाद्री जी ने कहा कि आज हमारे मोरोपंत जी के 75 वर्ष पूर्ण हुए हैं और इसके लिए उन्हें शाल दे रहे हैं। उन्होंने शाल पहना दी।
फिर उन्हें बोलने के लिए आग्रह किया। उनके बोलने से पहले कार्यकर्ताओं के चेहरे पर हंसी रहती थी। वे कहते थे कि मेरी मुश्किल यह है कि मैं खड़ा होता हूं तो लोग हंसने लगते हैं। मैंने हंसने लायक कुछ बोला नहीं तो भी मेरे बोलने पर हंसते हैं। क्योंकि मुझे लगता है कि लोग मुझे गंभीरता से नहीं ले रहे हैं। फिर उन्होंने आगे कहा कि, मैं जब मर जाऊंगा तो लोग पहले पत्थर मारकर देखेंगे कि मैं सचमुच मर गया….।
फिर उन्होंने कहा कि “ 75 वर्ष पर आपने सम्मान किया, लेकिन इसका अर्थ मैं जानता हूं। 75 वर्ष की शॉल जब ओढ़ाई जाती है, तब उसका अर्थ यह होता है कि अब आप की आयु हो गई, अब जरा बाजू हो जाओ, हमें करने दो।” उनके गौरव के लिए मन में भाव लेकर सब किया गया था, पर उस गौरव से खुद का लगाव ना रहे, इस बारे में वे सावधानी बरतते थे।