मुसलमानों का वोट और लालू खानदान की सत्ता: राजद में असंतुलन का सवाल

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कुमारी अन्नपूर्णापटना।

राष्ट्रीय जनता दल (राजद) ने हमेशा से मुस्लिम वोटों पर भरोसा किया है, खासकर बिहार के सीमांचल क्षेत्र में, जहां 24 सीटें निर्णायक मानी जाती हैं। एबीपी लाइव (10 अक्टूबर, 2025) के अनुसार, राजद को गठबंधन में 70-80% मुस्लिम समर्थन मिलता रहा है। फिर भी, मुसलमानों को मुख्यमंत्री या उपमुख्यमंत्री जैसे शीर्ष पद नहीं मिले, जो समुदाय में असंतोष का कारण बना है। हाल ही में महागठबंधन ने मुकेश साहनी (मल्लाह समुदाय, 3.5% जनसंख्या) को उपमुख्यमंत्री पद के लिए घोषित किया (23 अक्टूबर, 2025, द न्यू इंडियन एक्सप्रेस), जिससे यह सवाल उठा कि क्या मुसलमानों के साथ फिर धोखा हुआ?

तेजस्वी यादव, जो यादव समुदाय (लगभग 14% जनसंख्या) से हैं, को मुख्यमंत्री पद का चेहरा बनाया गया, जबकि मुस्लिम और यादव वोटर बेस पहले बराबर माने जाते थे। 2022-24 की राजद गठबंधन सरकार में शमीम अहमद और शहनवाज आलम सहित पांच मुस्लिम मंत्री थे (विकिपीडिया, 13 अक्टूबर, 2025), लेकिन शीर्ष कार्यकारी भूमिका से वंचित रखा गया। 2025 की बिहार जाति सर्वेक्षण के अनुसार, पिछड़ा वर्ग 63% है, फिर भी उम्मीदवार चयन में स्थापित जातीय वफादारी को तरजीह दी गई, जिससे मुस्लिम प्रतिनिधित्व कमजोर पड़ा (द टाइम्स ऑफ इंडिया, 23 अक्टूबर, 2025)।

लालू प्रसाद यादव की 1990 से चली आ रही नीति ने निचली जातियों और अल्पसंख्यकों को एकजुट किया, लेकिन आलोचकों का कहना है कि यह मुस्लिम वोटों का शोषण है, जिसमें सत्ता में बराबर हिस्सेदारी नहीं दी जाती (विकिपीडिया)। एआईएमआईएम का सीमांचल में उदय मुसलमानों को सशक्त प्रतिनिधित्व का विकल्प दे रहा है, जो राजद की पकड़ को चुनौती देता है (एबीपी लाइव)। महागठबंधन का मुस्लिम नेतृत्व में देरी शायद मीडिया के हिंदू-मुस्लिम फ्रेम से बचने की रणनीति है (द न्यू इंडियन एक्सप्रेस, 23 अक्टूबर, 2025)।

2029 के लोकसभा चुनाव में अगर मल्लाह और ईबीसी वोट एनडीए से इंडिया गठबंधन की ओर शिफ्ट होते हैं, तो मुस्लिम असंतोष बढ़ सकता है, जो राजद के लिए निर्णायक हो सकता है (एक्स पोस्ट, 23 अक्टूबर, 2025)। सवाल यह है कि जब एम (मुस्लिम) और वाई (यादव) बराबर हैं, तो सत्ता में उनकी भागीदारी क्यों नहीं? यह असंतुलन राजद की विश्वसनीयता को चुनौती दे रहा है।

 

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