म्यांमार में बैठ कर राहुल की वोट चोरी का प्रेजेंटेशन कौन बना/बनवा रहा था?

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सुरेंद्र बांसल

राहुल गाँधी जब अमेरिका के कॉलेजों में, कैम्ब्रिज कॉलेज की कैंटीन में या अन्य विदेशी सभागारों में यह पूछते हैं कि ‘भारत में लोकतंत्र की हत्या हो रही है और यूरोप-अमेरिका देख रहा है, कुछ करता क्यों नहीं’, तो उनकी आशा होती है कि वो उनके स्वप्न को पूरा करने में सहायता करें।

वह स्वप्न क्या है? वह स्वप्न है सत्ता में ऐसे नहीं आ सकते, तो वैसे आ जाएँ। चुनाव जीत नहीं पा रहे, हारने को मोरल विक्ट्री बताते हैं, और सुप्रिया हाथ हवा में लहराती है, कभी सोशल मीडिया की खरीदी गई रीच के कारण उन्हें लोकप्रिय मान लिया जाता है।

ऐसे में कई उपद्रवों को इनका समर्थन मिलता रहा: शाहीन बाग, किसान आंदोलन, पहलवान आंदोलन, किसान आंदोलन २.०, ईवीएम हैकिंग नैरेटिव आदि। इसी में अगला और लेटेस्ट है: वोट चोरी।

हालाँकि, राहुल गाँधी की मानसिक क्षमता इतनी है नहीं कि वो नित नए नैरेटिव गढ़ सके, तो उन्हें विदेश से हेल्प की आवश्यकता पड़ती है। ‘वोट चोरी’ में भी @khurpenchh ने एक खुलासा किया है जिसमें दिखता है कि उन्हें जो पढ़ना था, वो कोई और लिख रहा था।

उनका प्रेजेंटेशन म्यांमार में बैठे किसी व्यक्ति ने, भारत में बैठे किसी व्यक्ति के साथ बैठ कर बनाया, यह उस फाइल के मेटाडेटा को पढ़ने पर दिख रहा है। यही कारण है कि दूसरों का लिखा पढ़ने वाले राहुल, प्रोजेक्टर की लाइट जाने के बाद स्क्रीन न चलने पर, एक शब्द नहीं बोल पा रहे थे।

म्यांमार में कौन है? मलेशिया में कौन है? थाइलैंड में कौन है? थाइलैंड में भारतीय पासपोर्ट से घुस कर, क्या ब्रिटिश पासपोर्ट के प्रयोग से कोई बाहर जा सकता है? यदि हाँ तो कहाँ, और क्यों?

क्या भारत के LoP सरकार को वापस आ कर यह जानकारी देते हैं कि वो विदेश यात्राओं पर क्यों निकलते हैं, किस से मिलते है? क्या यह छुट्टी मात्र है? क्या वर्ष भर में साठ विदेश यात्राएँ छुट्टी मात्र होती हैं?

नेपाल में जो हो रहा है, बांग्लादेश में जो हुआ, उसी की आशा में कॉन्ग्रेस समर्थकों के ट्वीट देख लीजिए। वो चाहते हैं कि हमारी संसद में आग लगा दी जाए। आग लगाने के लिए चिंगारी चाहिए।

राहुल गाँधी वह मशाल स्वयं नहीं लेना चाहते। इसी कारण से ऐसे नैरेटिव बनाए जाते हैं जहाँ युवा वर्ग उग्र हो जाए क्योंकि उसे आधी सूचना दी जाती है। युवाओं को भड़काना सबसे आसान है, विद्यार्थियों को सड़कों पर लाना सबसे आसान है।

‘भारत के भविष्य’ के नाम पर सोशल मीडिया के धुरंधर पटकथा लिखते हैं, उन्हें उकसाते हैं कि उनका रक्त उबल क्यों नहीं रहा है। वो जानते हैं कि छात्र यदि जूते में स्मोक बम ले कर संसद में भी उतर जाता है, तो भी पुलिस कुछ नहीं करेगी। उसे वो भगत सिंह बना देंगे।

यह एक प्रोजेक्ट है जो विदेश से संचालित है। आज के खुलासे में केवल एक सूत्र पकड़ा गया है जो संभवतः इन्होंने सोचा नहीं होगा। पर आप सोचिए, कि विदेशी धरती से कैरोसीन छिड़कने की बातें करने वाले, क्या सत्ता से इतने लम्बे समय दूर रह सकेंगे जबकि उनके आस-पास लाख-पचास हजार की संख्या में ‘छात्र’ प्रधानमंत्री की ब्रा ले कर भाग रहे हैं, संसद को आग लगा रहे हैं?

(खुरपेंच की रिपोर्ट संलग्न)
https://x.com/khurpenchh/status/1965767560378617895?t=3r_OvzK184k4y4YOl25CmA&s=08

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