प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी: क्यों कहलाते हैं ‘प्रधानसेवक

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Caption: PBS

17 सितंबर, 2025 को भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी 75 वर्ष के हो जाएंगे। यह अवसर उनकी उपलब्धियों, नेतृत्व शैली और जनसेवा के प्रति समर्पण पर चर्चा करने का एक उपयुक्त मौका है। नरेंद्र मोदी की पहचान न केवल एक राजनेता के रूप में, बल्कि ‘प्रधानसेवक’ के रूप में भी रही है-एक ऐसा शब्द जो उन्होंने स्वयं अपनाया और जिसे उनकी नीतियों, कार्यशैली और जनता के प्रति जवाबदेही ने सार्थक किया। आखिर, नरेंद्र मोदी को ‘प्रधानसेवक’ क्यों कहा जाता है? यह सवाल उनके कार्यों, नीतियों, जनसंपर्क और संकटकाल में नेतृत्व की गहन पड़ताल से समझा जा सकता है।

सेवक की भावना: जनता के लिए समर्पण

2014 में पहली बार प्रधानमंत्री बनने के बाद नरेंद्र मोदी ने अपने पहले भाषण में कहा था, “मैं आपका सेवक हूं, न कि शासक।” यह कथन केवल सांकेतिक नहीं था, बल्कि उनकी कार्यशैली का आधार बना। गुजरात के मुख्यमंत्री के रूप में अपने 13 वर्षों के कार्यकाल (2001-2014) से लेकर केंद्र में 11 वर्षों के नेतृत्व तक, उनकी नीतियां जनता की बुनियादी आवश्यकताओं को संबोधित करती रही हैं। उनकी सोच ‘सबका साथ, सबका विकास’ के नारे में परिलक्षित होती है, जिसने समावेशी विकास को नया आयाम दिया। बाद में इसे ‘सबका विश्वास’ और ‘सबका प्रयास’ के साथ और विस्तार दिया गया, जो सामाजिक समरसता और जनभागीदारी पर जोर देता है।

प्रधानमंत्री जन धन योजना (2014) इसका एक ठोस उदाहरण है। इस योजना के तहत 53 करोड़ से अधिक बैंक खाते खोले गए, जिसने लाखों गरीब परिवारों को वित्तीय समावेशन का अवसर दिया। विश्व बैंक की एक रिपोर्ट के अनुसार, भारत में वित्तीय समावेशन का स्तर 2014 के 50% से बढ़कर 2021 तक 80% हो गया। इसी तरह, आयुष्मान भारत योजना (2018) ने 50 करोड़ से अधिक लोगों को 5 लाख रुपये तक का मुफ्त स्वास्थ्य बीमा प्रदान किया, जिससे गरीब परिवारों को स्वास्थ्य सेवाएं सुलभ हुईं। ये योजनाएं उनकी उस सोच को दर्शाती हैं, जिसमें जनता की सेवा सर्वोपरि है।

जनता से सीधा संवाद

नरेंद्र मोदी की लोकप्रियता का एक प्रमुख कारण उनकी जनता से सीधे संवाद करने की असाधारण क्षमता है। ‘मन की बात’ रेडियो कार्यक्रम, जो 2014 से शुरू हुआ, इसका सबसे बड़ा उदाहरण है। सितंबर 2025 तक इसके 113 से अधिक एपिसोड प्रसारित हो चुके हैं। इस कार्यक्रम में मोदी न केवल सरकारी योजनाओं को सरल भाषा में समझाते हैं, बल्कि समाज के गुमनाम नायकों की कहानियों को उजागर करते हैं, जो सामाजिक जागरूकता और प्रेरणा का स्रोत बनता है। एक सर्वेक्षण के अनुसार, 70% से अधिक श्रोता इस कार्यक्रम को प्रेरणादायक और सूचनात्मक मानते हैं।

सोशल मीडिया, विशेष रूप से X प्लेटफॉर्म, पर उनकी सक्रिय उपस्थिति उनकी पारदर्शी और जवाबदेह कार्यशैली को दर्शाती है। 2025 तक उनके X हैंडल (@narendramodi) पर 100 मिलियन से अधिक फॉलोअर्स हैं, जो उन्हें विश्व के सबसे अधिक फॉलो किए जाने वाले नेताओं में से एक बनाता है। यह जनता के साथ उनकी निरंतर संलग्नता और उनकी नीतियों को साझा करने की प्रतिबद्धता को दर्शाता है।

नीतियों में सेवा की भावना

मोदी की नीतियां उनकी सेवक भावना का आधार हैं। स्वच्छ भारत अभियान (2014) ने स्वच्छता को राष्ट्रीय आंदोलन का रूप दिया। इस अभियान के तहत 12 करोड़ से अधिक शौचालयों का निर्माण हुआ, जिसके परिणामस्वरूप 2019 तक भारत को खुले में शौच से मुक्त घोषित किया गया। विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) ने अनुमान लगाया कि इससे 300,000 से अधिक बच्चों की जान बची। यह अभियान केवल बुनियादी ढांचे तक सीमित नहीं था, बल्कि इसने सामाजिक जागरूकता और जनभागीदारी को बढ़ावा दिया।

इसी तरह, ‘मेक इन इंडिया’ (2014) और ‘डिजिटल इंडिया’ (2015) ने भारत को वैश्विक मंच पर मजबूत किया। मेक इन इंडिया के तहत भारत में विनिर्माण क्षेत्र का योगदान बढ़ा, और 2025 तक भारत दुनिया की तीसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बनने की दिशा में अग्रसर है। डिजिटल इंडिया ने इंटरनेट कनेक्टिविटी को ग्रामीण क्षेत्रों तक पहुंचाया, जिससे डिजिटल भुगतान में 400% की वृद्धि हुई। ये पहलें युवाओं को रोजगार और तकनीकी सशक्तीकरण का अवसर प्रदान करती हैं।

संकट में नेतृत्व

संकटकाल में नेतृत्व ही एक सच्चे सेवक की असली पहचान होती है। कोविड-19 महामारी (2020-2022) के दौरान नरेंद्र मोदी ने जिस तरह देश को एकजुट किया, वह उनकी सेवक भावना का प्रतीक है। ‘प्रधानमंत्री गरीब कल्याण अन्न योजना’ के तहत 80 करोड़ लोगों को मुफ्त राशन उपलब्ध कराया गया, जिसने संकट के समय भुखमरी को रोका। भारत ने 200 करोड़ से अधिक वैक्सीन डोज वितरित कीं, और ‘वैक्सीन मैत्री’ के तहत 100 से अधिक देशों को मुफ्त वैक्सीन प्रदान की, जिसने भारत को वैश्विक स्वास्थ्य नेतृत्व में अग्रणी बनाया।

सामाजिक समावेश और सशक्तीकरण

मोदी की नीतियों में सामाजिक समावेश और सशक्तीकरण का विशेष स्थान है। ‘बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओ’ (2015) ने लिंगानुपात में सुधार किया, और 2023 तक 1,020 लिंगानुपात (प्रति 1,000 पुरुषों पर महिलाएं) दर्ज किया गया। ‘उज्ज्वला योजना’ (2016) के तहत 10 करोड़ से अधिक गरीब महिलाओं को मुफ्त गैस कनेक्शन प्रदान किए गए, जिसने उनकी स्वास्थ्य और आर्थिक स्थिति को बेहतर किया। ये योजनाएं समाज के कमजोर वर्गों को मुख्यधारा में लाने की उनकी प्रतिबद्धता को दर्शाती हैं।

चुनौतियां और आलोचनाएं

कोई भी नेतृत्व आलोचनाओं से अछूता नहीं रहता। नोटबंदी (2016) और जीएसटी (2017) जैसे कदमों ने शुरुआत में आर्थिक चुनौतियां पैदा कीं। उदाहरण के लिए, नोटबंदी के कारण असंगठित क्षेत्र में अस्थायी रोजगार की हानि हुई। हालांकि, लंबे समय में इन कदमों ने डिजिटल अर्थव्यवस्था को बढ़ावा दिया और कर प्रणाली को पारदर्शी बनाया। कुछ आलोचक उनकी नीतियों को प्रचार-प्रधान मानते हैं, लेकिन उनके कार्यों का प्रभाव, जैसे स्वच्छता, स्वास्थ्य और वित्तीय समावेशन में प्रगति, इन आलोचनाओं को कमजोर करता है।

नरेंद्र मोदी को ‘प्रधानसेवक’ कहना केवल एक शब्द का प्रयोग नहीं, बल्कि उनकी कार्यशैली, नीतियों और जनता के प्रति जवाबदेही का प्रतीक है। चाहे वह स्वच्छता, स्वास्थ्य, शिक्षा, रोजगार या वैश्विक मंच पर भारत की पहचान हो, उन्होंने हर क्षेत्र में जनता की सेवा को प्राथमिकता दी। उनकी सादगी, जनता से सीधा संवाद और संकट में नेतृत्व की क्षमता ने उन्हें न केवल भारत, बल्कि विश्व स्तर पर एक लोकप्रिय नेता बनाया। 75वें जन्मदिन पर यह कहना उचित होगा कि नरेंद्र मोदी ने ‘प्रधानसेवक’ की भूमिका को न केवल अपनाया, बल्कि उसे जीया भी है। उनकी यह यात्रा देशवासियों के लिए प्रेरणा है कि सच्ची सेवा ही सच्चा नेतृत्व है।

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आशीष कुमार अंशु

आशीष कुमार अंशु

आशीष कुमार अंशु एक पत्रकार, लेखक व सामाजिक कार्यकर्ता हैं। आम आदमी के सामाजिक सरोकार से जुड़े मुद्दों तथा भारत के दूरदराज में बसे नागरिकों की समस्याओं पर अंशु ने लम्बे समय तक लेखन व पत्रकारिता की है। अंशु मीडिया स्कैन ट्रस्ट के संस्थापक सदस्यों में से एक हैं और दस वर्षों से मानवीय विकास से जुड़े विषयों की पत्रिका सोपान स्टेप से जुड़े हुए हैं

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