नाटक में नवाचार के प्रयोग पर विशेष बल देने की आवश्यकता: प्रोफेसर भरत गुप्त

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बृजेश भट्ट


‘भरतमुनि का नाट्य शास्त्र – परंपरा एवं प्रयोग’ विषय पर कला संकुल में विशेष संगोष्ठी का आयोजन। स्वतंत्रता के बाद सरकारों द्वारा नाटकों के सन्दर्भ में अनदेखी से इस्लामीकरण की पुनरावृति

नई दिल्ली 29 जुलाई 2024: सांस्कृतिक कला केंद्र के रूप में उभरते संस्कार भारती ‘कला संकुल’ में ‘भरतमुनि का नाट्य शास्त्र – परंपरा एवं प्रयोग’ विषय आयोजित संगोष्ठी में प्रसिद्ध शास्त्रीय कलाकार, रंगमंच सिद्धांतकार प्रोफेसर भरत गुप्त को सुनने के लिए कला और साहित्य जगत के महत्वपूर्ण लोग उपस्थित थे।

अपने सम्बोधन में प्रोफेसर भरत गुप्त ने प्राचीन भारतीय नाट्य शास्त्र के महत्वपूर्ण एवं गहन बिन्दुओं पर प्रकाश डालते हुए बताया कि भारत के इस्लामीकरण के उपरान्त अंग्रेजों द्वारा यूरोपियन थिएटर के माध्यम से भारत में नाटक को पुनर्जीवित किया गया परन्तु भारत के इतिहासकारों ने नाटक के साथ न्याय नहीं किया, साथ ही आजादी से लेकर अब तक सरकारों ने इस विषय पर अनदेखी की है ।

प्रोफेसर गुप्त ने बीते सत्तर सालों से सरकारों द्वारा नाटकों की महत्ता को कमतर आंकने का आरोप लगाते हुए पूछा कि कश्मीर से कन्याकुमारी तक देश में अब तक नाट्यशास्त्र के प्रणेता भरत-मुनि के नाम पर एक भी थिएटर या स्मारक क्यों नहीं बन पाया? जबकि नाट्यविधा में भारत का नाट्य शास्त्र सम्पूर्ण विश्व की प्राचीनतम कलाओं में से एक है।

प्राचीन समय में नाटकों में भाषाई एकीकरण भारतीय परंपरा का उत्कृष्ठ उदाहरण रहा है परन्तु इसके सन्दर्भ में ऐतिहासिक तथ्यों को लेकर विद्वानों में विरोधाभास होने के कारण नाट्य शास्त्रों को अनुकूल सम्मान नहीं मिल पाया। यह पीड़ा प्रोफेसर गुप्त के वक्तब्य में बार बार व्यक्त हुई।

एक प्राचीन भारत और दूसरा अर्बन की दो धाराओं में भारत में नाटक बंट गया है। इन दो धाराओं के बीच बंटे नाटकों को एक करने की आवश्यकता पर बल देते हुए प्रोफेसर गुप्त ने नाटकों में भाषायी एकीकरण के महत्ता को अपने वक्तव्य में रेखांकित किया।

इस गोष्ठी में नाट्य कला विद्यार्थी, प्रोफेसर, नाटककार, रंगकर्मियों के प्रश्नो के साथ प्रश्नोत्तर के लिए भी पर्याप्त समय रखा गया था। प्रोफेसर गुप्त ने सभी सवालों को ध्यानपूर्वक सुना और विस्तार से एक एक प्रश्न का उत्तर दिया।

उल्लेखनीय है सांस्कृतिक कला केंद्र के रूप में स्थापित हो रहे संस्कार भारती ‘कला संकुल’ में प्रत्येक माह के अंतिम रविवार को होने वाली संगीत, नृत्य, लोक नृत्य, साहित्य, चित्रकला विषयो पर आधारित ‘मासिक संगोष्ठियों की चर्चा अब राजधानी में बौद्धीक वर्ग के बीच होने लगी है।

उल्लेखनीय है कि दिल्ली में कला दृष्टि की व्यापकता, कला विषय पर विमर्श, उनकी चुनौतियों के आंकलन एवं भारतीय कला दृष्टि के संयोजन जैसे कला जगत के विभिन्न घटकों को ध्यान में रखते हुए संस्कार भारती पिछले कई वर्षो से दीनदयाल उपाध्याय मार्ग स्थित कला संकुल में ‘मासिक संगोष्ठियों’ का आयोजन कर रहा है।

विगत संगोष्ठियों में प्रसिद्ध नृत्यकार चित्रकार पद्मश्री राम सुतार, पद्मश्री रंजना गौहर, संगीत नाट्य अकादमी अवार्ड से सम्मानित भरतनाट्यम नृत्यांगना रमा रमा वैद्यनाथन, बाँसुरी वादक पंडित चेतन जोशी, जय प्रभा मेनन, श्री अभय सुपोरी, श्रीमती मीनू ठाकुर, प्रो.चंदन चौबे सहित अनेक मूर्धन्य कलाकार, विद्वानों ने उपस्थिति दर्ज कराई है।

(लेखक संस्कार भारती के मीडिया संपर्क प्रमुख है)

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