दिल्ली। भारत में अंग दान (ऑर्गन डोनेशन) की दर बेहद कम है। न्यू इंडियन एक्सप्रेस की एक हालिया रिपोर्ट के अनुसार, 2024 में भारत में रिकॉर्ड 18,911 अंग प्रत्यारोपण हुए, फिर भी प्रति मिलियन आबादी में अंग दान की दर एक से भी कम रही। इस कमी को दूर करने के लिए समाज के हर वर्ग को आगे आना होगा, विशेष रूप से उन नव नास्तिकों को, जो आधुनिकता और विज्ञान के प्रति अपनी आस्था को प्राथमिकता देते हैं। यदि यह समूह मृत्यु के पश्चात अपने शरीर को दान करने का संकल्प ले, तो लाखों लोगों को नया जीवन मिल सकता है।
भारत में एक बड़ा वर्ग, विशेषकर युवा, विज्ञान को धर्म के विपरीत देखता है। उन्हें धर्म से अधिक लगाव नहीं है, और वे इसे विज्ञान से अलग मानते हैं। नव नास्तिकों का मानना है कि मृत्यु के बाद शरीर केवल एक जैविक संरचना है, जिसका कोई आध्यात्मिक महत्व नहीं। यदि यह विचार सही है, तो मृत्यु के बाद अंतिम संस्कार की परंपरा को छोड़कर शरीर को मेडिकल कॉलेजों या दधीचि देह दान समिति जैसे संगठनों को दान करना अधिक तर्कसंगत और मानवीय कदम होगा। दधीचि देह दान समिति (https://dehdan.org/) जैसे संगठन इस दिशा में सराहनीय कार्य कर रहे हैं, जो मृत्यु के बाद शरीर को चिकित्सा अनुसंधान और अंग दान के लिए उपयोग में लाते हैं।
देह दान न केवल चिकित्सा विज्ञान को बढ़ावा देता है, बल्कि जरूरतमंद लोगों को नया जीवन भी प्रदान करता है। एक व्यक्ति के अंग दान से कई लोगों की जिंदगी बचाई जा सकती है, जैसे कि हृदय, फेफड़े, गुर्दे, और यकृत प्रत्यारोपण के माध्यम से। इसके अलावा, मेडिकल कॉलेजों में शरीर दान करने से चिकित्सा छात्रों को मानव शरीर की संरचना समझने में मदद मिलती है, जो भविष्य के डॉक्टरों को बेहतर बनाता है।
नव नास्तिकों को इस दिशा में पहल करनी चाहिए। उनके लिए यह एक अवसर है कि वे अपने विचारों को व्यवहार में लाएं और समाज के लिए एक उदाहरण प्रस्तुत करें। साथ ही, ईश्वर, अल्लाह, या यीशु में आस्था रखने वालों को भी देह दान पर विचार करना चाहिए, क्योंकि सभी धर्म मानवता की सेवा को सर्वोपरि मानते हैं। दधीचि देह दान समिति से संपर्क कर इस नेक कार्य में योगदान देकर हम एक बेहतर और स्वस्थ भारत का निर्माण कर सकते हैं।