नेपाल का टिकटॉक विद्रोह: अमेरिका की साजिश से राहुल की लंकावी छुट्टी तक – सबक सिखाने की होड़

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तृप्ति शुक्ला

काठमांडू : नेपाल की सरकार ने अमेरिकी सोशल मीडिया ऐप्स को बैन कर दिया लेकिन चाइनीज ऐप्स को बैन नहीं किया क्योंकि चाइनीज ऐप्स ने कथित तौर पर उनकी सरकार की गाइडलाइंस मान लीं लेकिन अमेरिकी ऐप्स ने नहीं मानीं।

और इससे खफा Gen Z ने चाइनीज ऐप्स (खासतौर से टिकटॉक) के माध्यम से कम्यूनिकेट करके, अमेरिकी ऐप्स वापस लाने के लिए इतना बड़ा आंदोलन खड़ा कर दिया।

कहा ये जा रहा है कि चाइनीज टिकटॉक पर प्रो अमेरिकी ये आंदोलन अमेरिका ने ही खड़ा करवाया है, क्योंकि अरब स्प्रिंग से लेकर बांग्लादेश तक अमेरिका की इसमें मास्टरी रही है।
कहा ये भी जा रहा है कि अमेरिका SCO के बहाने हुए हालिया फोटो-ऑप की खुन्नस में चीन को सबक सिखाना चाहता था, इसीलिए वो ये कर रहा है।

और कहा ये भी जा रहा है कि नेपाल के इस संभावित तख्तापलट से शायद भारत को बैठे-बिठाए कुछ फायदा हो जाए क्योंकि नेपाल के वर्तमान पीएम ओली साब कट्टर कम्युनिस्ट और नक्सली ठहरे जो भारत को उत्ता पसंद नहीं करते।

लेकिन बात अगर सबक सिखाने की ही है तो सबक तो अमेरिका भारत को भी सिखाना चाह ही रहा होगा तो वो ये क्यों ही चाहेगा कि भारत का फायदा हो जाए, वो भी बैठे-बिठाए!


लेकिन फिर भारत में तो अमेरिकी ऐप्स भी बैन नहीं हैं तो भारत को सबक सिखाने के लिए वो कुछ और ही सोच रहा होगा।

उधर राहुल गांधी भी भारत को, माफ कीजिएगा, मेरा मतलब है मोदी को बीते एक दशक से सबक सिखाना चाह रहे हैं और इधर सुनने में आया है कि सबक सिखाने की योजना बनाते-बनाते वो अचानक ही छुट्टी मनाने मलेशिया चले गए जहाँ के लंकावी द्वीपसमूह पर दुनिया भर के गुप्तचर इकट्ठा हो रहे हैं। पता नहीं राहुल इस बार किस देश के गुप्तचर की हैसियत से वहाँ छुट्टी मनाने गए हैं।

भारत को राहुल गांधी से सीखना चाहिए, वो आदमी अकेले दम पर अमेरिका और चाइना, दोनों से एक साथ संबंध स्थापित किए हुए है। जब जिसको जरूरत पड़ती है और जब जिसकी जरूरत पड़ती है, उस हिसाब से समीकरण सेट होते रहते हैं।

न सिर्फ अमेरिका और चाइना, राहुल गांधी के पाकिस्तान और बांग्लादेश तक से मधुर संबंध हैं। पाकिस्तान से तो इतने मधुर संबंध हैं कि हालिया ऑपरेशन सिंदूर के दौरान पाकिस्तान ने उन्हें अपना अघोषित प्रवक्ता नियुक्त किया हुआ था।

और मधुर संबंध हों भी क्यों न! बंदा मोहब्बत की जीती-जागती चलती-फिरती दुकान है। मोदी की तरह कोई मौत का सौदागर थोड़े न है।

अब बस देखना ये है कि वो हाइड्रोजन बम का फॉर्मूला लेकर लंकावी गए हैं या फिर वहाँ से फॉर्मूला लेने गए हैं।

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