डॉ राजीव मिश्रा
क्रान्ति शब्द सुनने में बड़ा आकर्षक लगता है. और दुनिया में बड़े बड़े परिवर्तन इन क्रांतियों से आए हैं.
लेकिन किसी भी क्रान्ति का सत्य क्या होता है?
किसी भी देश की कितनी प्रतिशत जनता क्रांति की फिक्र करती है?
बड़ी से बड़ी क्रांतियों में भाग लेने के लिए कितने की भीड़ जुटती है?
दुनिया की सबसे महत्व की तीन आधुनिक क्रांतियां गिनी जाती हैं जिसने पूरी दुनिया का इतिहास बदल दिया.
*पहली, फ्रांस की राज्य क्रांति..(1789).*
यह क्रांति जनसामान्य की क्रांति नहीं थी, वह रॉयल्टी और नोबेलिटी यानि सामंती शक्तियों के विरुद्ध बुर्जुआ यानि मध्यम वर्ग की क्रांति थी… यानि नए नए प्रभावशाली और सम्पन्न हुए लोगों की सत्ता में भागीदारी के लिए किया हुआ विद्रोह था. *अगर उन्हें समझदारी से सत्ता में भागीदारी दे दी जाती तो कोई विद्रोह उद्रोह नहीं होना था.* और पूरी क्रांति का विंदुपथ मूलतः क्रांति के बाद उत्पन्न वैक्यूम में सत्ता पर कब्जा करने के लिए आपसी प्रतिस्पर्धा थी जिसमें क्रांति के नेता दूसरे नेताओं को क्रांति विरोधी बता कर गिलोटिन पर चढ़ा रहे थे.
*इस काम के लिए उन्हें कुछ हजार लोगों की भीड़ चाहिए थी…सामान्य जन का काम यह भीड़ बनना था, बदले में उन्हें हर रोज चौराहे पर गिलोटिन पर कटते सरों को देखने का मुफ्त मनोरंजन मिलता था.*
*दूसरी सबसे महत्वपूर्ण रूसी क्रांति* की मूल “क्रांतिकारी” घटना में मुश्किल से कुछ सौ लोग शामिल हुए थे.
जिस रात सत्ता के केंद्रों पर कब्जा कर लिया गया था, उसकी अगली सुबह ज्यादातर लोगों को रात की घटना का महत्व भी ठीक से समझ नहीं आया था.
*कुल मिला कर परिणाम यह हुआ कि सामंती पृष्ठभूमि एक महत्वाकांक्षी व्यक्ति ने अव्यवस्था और पॉवर वैक्यूम का लाभ उठा कर सत्ता पर कब्जा कर लिया. पब्लिक दर्शक थी, और जबतक उसे सत्य समझ में आता, उसके हाथ में कुछ नहीं बचा था, सिवाय सात दशकों की यातना के.*
*तीसरी सबसे महत्व की क्रांति,*
जो सामान्य अर्थों में क्रांति गिनी भी नहीं जाती, वह था अमेरिका का स्वतंत्रता संग्राम. विचार की दृष्टि से यह एक अधिक समग्र क्रांति थी, और परिणाम की दृष्टि से भी. इसका शीर्ष नेतृत्व भी अमेरिका का नव धनाढ्य व्यापारी और भूमिपति वर्ग था. पर *इसकी क्रांतिकारी बात यह थी कि उन लोगों ने जिस व्यवस्था के विरुद्ध विद्रोह किया, उसे वैसी ही एक अन्य व्यवस्था से नहीं बदला.*
*उन्होंने व्यक्तियों के बजाय संस्थाओं में विश्वास व्यक्त किया और सत्ता और नियंत्रण के बजाय स्वतंत्रता और उद्यम को केंद्रीय विचार बनाया.*
लेकिन *किसी भी क्रांति के मूल में कभी जन सामान्य नहीं हुआ करता. वह सिर्फ भीड़ जुटाता है, तथ्य़ यह है कि क्रांति के केंद्र में हमेशा एलीट वर्ग हुआ करता है. क्रांतियां उसके लिए सत्ता पर कब्जा करने का एक माध्यम मात्र हुआ करती हैं. सत्ता मिलने के बाद वह वही करता है जो अपनी सत्ता को सुदृढ़ और स्थायी बनाने के लिए आवश्यक होता है.*
इस शताब्दी में जो भी *चिल्लर टाइप क्रांतियां हुई हैं,* उनमें भी मूल रूप से यही हुआ है…चाहे अरब स्प्रिंग हो, या श्रीलंका, बांग्लादेश और नेपाल टाइप छीछालेदर. अंतर सिर्फ इतना आया है कि सत्ता पर कब्जा करने, भीड़ जुटाने और भीड़ को नियंत्रित और निर्देशित करने का काम देश के भीतर बैठे महत्वाकांक्षी व्यक्तियों के बजाय बाहरी तंत्र कर रहा है.
*आवश्यक है कि हम “क्रांति” शब्द के रोमांस में ना फंसें. अगर आप सत्ता के प्रत्याशी एलीट में से नहीं हैं तो क्रांति में आपके काम का कुछ नहीं है, सिवाय कटते सरों और जलते घरों के मुफ्त मनोरंजन के. और उनमें से एक सर या एक घर हममें से किसी का भी हो सकता है.*
(डॉ राजीव मिश्र जी से साभार)