दिल्ली। नेता विपक्ष का पद भारतीय लोकतंत्र में एक महत्वपूर्ण और सम्मानजनक दायित्व है। यह न केवल सरकार की जवाबदेही सुनिश्चित करता है, बल्कि रचनात्मक आलोचना और सकारात्मक सुझावों के माध्यम से संसदीय चर्चाओं को समृद्ध भी करता है। इस पद की गरिमा को सुषमा स्वराज जी ने अपने कार्यकाल (2009-2014) के दौरान बखूबी निभाया। उनकी वाक्पटुता, तथ्यपरक तर्क और संसदीय मर्यादाओं का पालन आज भी एक मिसाल है।
सुषमा जी ने कभी भी व्यक्तिगत आक्षेप या गाली-गलौज का सहारा नहीं लिया। उनकी आलोचनाएँ हमेशा नीतियों और कार्यप्रणाली पर केंद्रित होती थीं। चाहे यूपीए सरकार की नीतियों का विरोध हो या विदेश नीति पर बहस, उन्होंने तीखे सवाल उठाए, लेकिन उनकी भाषा में शालीनता और गहराई थी। वह विपक्ष की भूमिका को रचनात्मक बनाए रखती थीं, जिससे संसद में स्वस्थ लोकतांत्रिक माहौल बना रहता था। उनकी विनम्रता और हास्यबोध ने उन्हें सभी दलों के नेताओं का सम्मान दिलाया।
वर्तमान नेता विपक्ष को सुषमा जी के व्यवहार से प्रेरणा लेनी चाहिए। संसद में धमकियों या अपमानजनक भाषा का प्रयोग न केवल पद की गरिमा को ठेस पहुँचाता है, बल्कि लोकतंत्र की विश्वसनीयता को भी कमजोर करता है। सुषमा जी का जीवन दर्शाता है कि दृढ़ता और शालीनता का समन्वय ही सच्ची नेतृत्व क्षमता है। वर्तमान नेता विपक्ष को चाहिए कि वह उनकी तरह तथ्यों और तर्कों के साथ अपनी बात रखें, ताकि विपक्ष की भूमिका न केवल प्रभावी, बल्कि सम्मानजनक भी बने।