नियम तोड़ने की सजा और सिस्टम की जवाबदेही

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मनोज मलयानिल

दिल्ली। नये मोटर वाहन अधिनियम के कड़े प्रावधानों के तहत जब ट्रैफिक नियम तोड़ने वालों पर हजारों में जुर्माना लगना शुरू हुआ तो कई मित्रों ने उल्टे उन्हीं के समर्थन में आंसू बहाना शुरू कर दिया जिन्हें नियम की धज्जियां उड़ाने की सजा फाइन चुकाकर पूरी करनी पड़ी। मैंने टिप्पणी की कि उदंड और बद्मिजाज मिडिल क्लास को भारी भरकम पैसों की चोट से ही ठीक किया जा सकता है।

इसके बाद कुछ मित्रों ने सरकार और सिस्टम के खिलाफ ही मोर्चा खोल दिया। क्या खराब सड़कों की जिम्मेवारी सरकार लेगी? गड्ढे वाली सड़कों पर होने वाले हादसों के लिए कौन जिम्मेवार है? सड़कों पर होने वाले अतिक्रमण और जाम के लिए सरकार को क्यों ना जिम्मेवार ठहराया जाए?

जिन सवालों को उठाया गया है वे सारे सवाल जायज हैं। पर सवाल उठता है कि अगर रोड खराब है तो क्या आपको बिना लाइसेंस की गाड़ी चलाने की अनुमति मिल जाती है ! अगर सड़क पर गड्ढ़े हैं तो क्या आप अपनी गाड़ी को दूसरों की गाड़ी पर चढ़ा देंगे ! अगर सड़क पर ट्रैफिक पुलिस नहीं है तो क्या आप अपनी गाड़ी रेड लाइट पर नहीं रोकेंगे? सरकार बेवकूफ है तो आप हेलमेट नहीं पहनेंगे और सीट बेल्ट नहीं बांधेंगे?

बेकार की दलीलें दी जा रही हैं। सरकार और सिस्टम खराब हैं तो उनकी आलोचना कीजिये। जरूर सवाल उठाइये। पर आप कब और कहां सवाल उठा रहे हैं ये ज्यादा अहम होता है।

स्कूल या कॉलेज में इम्तिहान हो रहा है। उसी दौरान नकल करते हुए कुछ छात्र पकड़े जाते हैं। निरीक्षक उन्हें परीक्षा हॉल से बाहर कर देते हैं। अब छात्र दलील देना शुरू कर दे कि शिक्षा व्यवस्था सड़ गई है। शिक्षा संस्थानों में शिक्षक ठीक से पढ़ाते नहीं हैं। इसलिए उनके पास नकल के सिवा कोई और रास्ता नहीं रह गया था। क्या ऐसे तर्क स्वीकार किये जा सकते हैं।

यहां जो सड़क को लेकर सवाल कर रहे हैं उनके सवाल भी ठीक हैं और जो शिक्षा पर सवाल खड़े कर रहे हैं उनके सवाल भी जायज हैं। पर हर सवाल का समय होता है और सही समय पर सही सवाल उठाना चाहिये वरना अराजकता फैल जायेगी।
कुछ मित्रों ने मुझसे पूछा है कि सरकार और सिस्टम की जिम्मेवारी तय करने की बात मैं क्यों नहीं करता। गुरुग्राम का जाम हो या लगभग हर फ्लाईओवर के आख़िर का बदइंतज़ाम.. सब पर मैंने जवाबदेही तय करने की बात की है। खैर अभी इतना ही।

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