न्यूज रिपोर्ट: बांग्लादेश और पाकिस्तान में हिन्दुओं पर अत्याचार का आईना दिखाने वाली रिपोर्ट पर बौखलाहट

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नई दिल्ली, 15 अगस्त 2025: आजादी के 78वें साल में, जब देश अपने स्वतंत्रता दिवस की तैयारियों में जुटा हुआ था, एक न्यूज रिपोर्ट ने एक बार फिर से भारत विभाजन और उसके बाद पाकिस्तान और बांग्लादेश में हिन्दुओं पर हुए अत्याचारों को लेकर बहस छेड़ दी। अंजना ओम कश्यप द्वारा प्रस्तुत की गई रिपोर्ट, जिसमें 1947 के विभाजन के दौरान और बाद में पाकिस्तान और बांग्लादेश में हिन्दुओं पर हुए अत्याचारों और उनकी बेबसी को तथ्यों के साथ प्रस्तुत किया गया, ने एक बार फिर से उन लोगों को बौखला दिया, जो इन मुद्दों पर चुप्पी साधे रहते हैं।
रिपोर्ट में बताया गया कि 1947 के विभाजन के दौरान 4 करोड़ मुसलमानों में से सिर्फ 96 लाख पाकिस्तान गए, जबकि बाकी भारत में ही रहे। इसका मतलब साफ था कि विभाजन का मकसद पूरा नहीं हो सका। इसके साथ ही, रिपोर्ट ने यह भी उजागर किया कि पाकिस्तान और बांग्लादेश में हिन्दुओं पर दशकों से अत्याचार होते रहे, लेकिन भारतीय मुस्लिम समुदाय और कुछ बुद्धिजीवियों ने इन मुद्दों पर कभी चिंता नहीं जताई।  यहां सवाल तो यह भी उठता है कि क्या भारत में पाकिस्तान और बांग्लादेश के हिन्दुओं के लिए कभी कोई बड़ा आयोजन हुआ, क्या मुम्बई के गेटवे ऑफ इंडिया पर कभी कोई यात्रा निकली, क्या कभी रोहिंग्या से लेकर गाजा तक के मुसलमानों के लिए कलेजा निकाल कर रख देने वाले भारतीय मुस्लिम समुदाय ने इन हिन्दुओं के लिए आवाज उठाई?

इस रिपोर्ट पर प्रतिक्रिया देते हुए, इतिहासकार इरफान हबीब और पत्रकार आरफा खानम शेरवानी ने आपत्ति जताई। इरफान हबीब ने ट्वीट कर कहा, “लुक एट द मिस्चीफ बीइंग प्लेड सो ब्लैटेंटली। व्हो विल नॉट बिलीव इट, बीइंग पेडल्ड ऑन द सो-कॉल्ड नेशनल चैनल।” वहीं, आरफा खानम शेरवानी ने भी इस रिपोर्ट को लेकर अपनी नाराजगी जाहिर की। लेकिन सवाल यह उठता है कि क्या इनकी आपत्ति तथ्यों पर है या फिर आईने में अपनी छवि देखने से हुई बेचैनी पर?

रिपोर्ट में जो तथ्य सामने आए, वे किसी से छिपे नहीं हैं। बांग्लादेश में हिन्दुओं पर अत्याचार की घटनाएं नियमित रूप से सामने आती रही हैं। 1971 के बांग्लादेश मुक्ति संग्राम के दौरान भी हिन्दुओं को निशाना बनाया गया था। इसके बाद भी, वहां हिन्दुओं की आबादी लगातार घटती गई है। पाकिस्तान में तो स्थिति और भी विकट है, जहां हिन्दुओं को अल्पसंख्यक के रूप में लगातार दबाया जाता रहा है। लेकिन इन मुद्दों पर भारतीय मुस्लिम समुदाय की चुप्पी और बुद्धिजीवियों की उदासीनता ने कई सवाल खड़े कर दिए हैं।

एक सच यह भी है कि रोहिंग्या मुसलमानों, गाजा के मुसलमानों और अन्य मुस्लिम समुदायों के लिए भारतीय मुस्लिम समुदाय ने बड़ी-बड़ी रैलियां और आयोजन किए, लेकिन अपने ही देश के पड़ोस में रह रहे हिन्दुओं के लिए कभी कोई पहल नहीं की गई। यह दोहरा रवैया साफ तौर पर दिखाई देता है।

अंजना ओम कश्यप की रिपोर्ट ने इन मुद्दों को एक बार फिर से सामने लाकर उन लोगों को आईना दिखा दिया, जो इन सच्चाइयों से मुंह चुराते रहे हैं। रिपोर्ट में यह सवाल उठाया गया कि क्या वहां के हिन्दुओं को अपना भाई मानने वाले भारतीय मुस्लिम समुदाय ने कभी इन अत्याचारों पर चिंता जताई? क्या कभी किसी मदरसे से, किसी मौलवी से या किसी बड़े आयोजन से इन हिन्दुओं के लिए आवाज उठाई गई?

इस रिपोर्ट पर उठी आपत्तियों से साफ है कि तथ्यों से ज्यादा, इन लोगों को अपनी छवि से परेशानी है। वे चाहते हैं कि इन मुद्दों पर चर्चा न हो, क्योंकि इससे उनका दोहरा रवैया सामने आता है। लेकिन सच्चाई यह है कि इन अत्याचारों को नकारा नहीं जा सकता। अंजना ओम कश्यप की रिपोर्ट ने इन सच्चाइयों को एक बार फिर से उजागर कर दिया है, और यही कारण है कि कुछ लोग बौखला गए हैं।इस रिपोर्ट ने एक बार फिर से यह सवाल खड़ा कर दिया है कि क्या भारतीय मुस्लिम समुदाय और कुछ बुद्धिजीवी सच को स्वीकार करने के लिए तैयार हैं, या वे सिर्फ अपनी सुविधा के हिसाब से मुद्दों को चुनते रहेंगे? समय आ गया है कि इन सच्चाइयों का सामना किया जाए, चाहे वह कितना भी कड़वा क्यों न हो।

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आशीष कुमार अंशु

आशीष कुमार अंशु

आशीष कुमार अंशु एक पत्रकार, लेखक व सामाजिक कार्यकर्ता हैं। आम आदमी के सामाजिक सरोकार से जुड़े मुद्दों तथा भारत के दूरदराज में बसे नागरिकों की समस्याओं पर अंशु ने लम्बे समय तक लेखन व पत्रकारिता की है। अंशु मीडिया स्कैन ट्रस्ट के संस्थापक सदस्यों में से एक हैं और दस वर्षों से मानवीय विकास से जुड़े विषयों की पत्रिका सोपान स्टेप से जुड़े हुए हैं

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