संजय स्वामी
शिक्षा, चिकित्सा, प्रौद्योगिकी, तकनीकी कौशल में भारतीय दुनिया के किसी देश से पीछे नहीं है। आधुनिक समय की सभी विधायें, कौशल भारतीयों ने अपनी मेहनत से हासिल किए हैं
श्रावण माह में भारतवर्ष के विभिन्न धार्मिक आस्था और श्रद्धा के मंदिर शिवालयों में काँवड़ यात्री पवित्र जल लेकर जलाभिषेक हेतु दुर्गम कठिन पैदल यात्रा कर रहे हैं। श्रद्धा का कोई विकल्प नहीं श्रद्धा अध्यात्म से जुड़ी हुई है। अध्यात्म संस्कारों से जुड़ा हुआ है। सनातन परंपरा में श्रद्धा और विश्वास पूर्वक संस्कारो का पीढ़ी दर पीढ़ी रोपण किया जा रहा हैं।
भारतीयों ने वैश्विक परिप्रेक्ष्य में विश्व के विकसित देशों के साथ कंधे से कंधा मिलाकर चलने के लिए भरपूर मेहनत की है। शिक्षा, चिकित्सा, प्रौद्योगिकी, तकनीकी कौशल में भारतीय दुनिया के किसी देश से पीछे नहीं है। आधुनिक समय की सभी विधायें, कौशल भारतीयों ने अपनी मेहनत से हासिल किए हैं। आधुनिकता के साथ ही धार्मिक क्रियाकलापों में भी भारतीय विशेष श्रद्धा भाव से भाग लेते हैं। सनातन संस्कृति की अधिकांश धार्मिक मान्यताओं, अनुष्ठान, पूजा पाठ में शुद्धता और पवित्रता पर विशेष जोर दिया जाता है। चाहे 21वीं सदी की युवा पीढ़ी हो या फिर 20 वीं सदी की प्रौढ़ और वृद्ध पीढ़ी। दोनों पीढ़ियों के बीच में आयु का, अनुभव का, विचारों का अंतर तो हो सकता है परंतु धार्मिक क्रियाकलापों, नियमों के पालन में कोई भेद नहीं। ईश्वर भक्ति आराधना देव पूजा आदि में युवा अत्यधिक उत्साह से पूरे श्रद्धा भाव से बढ़-चढ़कर भाग लेते हैं।वरिष्ठ जन की बताई विधि अनुसार धार्मिक अनुष्ठान को पूरे विधि विधान से करते, अपनाते हैं।
वर्तमान कावड़ यात्रा के संदर्भ में उत्तर प्रदेश, उत्तराखंड तथा मध्य प्रदेश सरकार ने कुछ नियम जारी किए। आखिर सरकार को नए नियम क्यों जारी करने पड़े? न्यायालय ने इस गंभीर विषय का सम्यक चिंतन नहीं किया, न तथ्यों को संज्ञान में लिया। बस नास्तिकवादी मानसिकता और राजनीतिक वैमनस्य से कुछ लोगों ने न्यायालय में रिट लगाई और न्यायालय ने रोक लगा दी। वास्तव में भारतीय न्याय व्यवस्था के अनेक नियम, प्रावधान आयातित हैं। विडंबना यह भी है कि भारतीय न्याय व्यवस्था ने न्याय दर्शन और मनुस्मृति को कभी अपने पाठ्यक्रम या नियमों में सम्मिलित नहीं किया। जिसका परिणाम है कि केवल न्यायालय के कक्ष में जो तथ्य, आंकड़े प्रस्तुत कर दिए जाते हैं उसके आधार पर माननीय न्यायाधीश निर्णय सुना देते हैं। जबकि भारतीय प्राचीन न्याय व्यवस्था में न्याय देने वाले अधिकारी, अनेक राजा-महाराजा आदि वेश बदलकर कई बार तथ्यों की स्वयं जांच पड़ताल करते थे।
कांवड़ यात्रा श्रद्धा-भक्ति पूर्वक किया जाने वाला धार्मिक कर्म(तप) है। जिस हेतु सर्वप्रथम घर से ही श्रद्धालु कावड़िए पवित्र भावना से संकल्प करके कावड़ लेने जाते हैं। स्नान, पूजा पाठ करके पवित्र जल को पात्र में धारण कर यात्रा प्रारंभ करते हैं। मन में मंत्र पाठ करते हुए, भजन बोलते हुए, आनंद में नाचते, दौड़ते पवित्र भाव से कावड़ ला भगवान शिव का जलाभिषेक करते हैं। इतने कठोर तप में कहीं व्यवधान न हो इसलिए इन तीनों राज्यों की सरकारों ने कुछ नियम बनाए। इसमें कौन सी अनुचित बात है?
जब रमजान का महीना होता है मुस्लिम बंधु रोजे रखते हैं। अनेकों हिंदू अपनी ओर से इफ्तार की व्यवस्था करते हैं। वहां भी भारतीय संस्कृति की झलक और हमारी परंपरा देखने को मिलती है। जो हिंदू अपने पड़ोसी मुस्लिम भाइयों के लिए इफ्तायरी की दावत करते हैं, वे बहुत पवित्र तन मन, श्रद्धा भाव से पूर्ण शुद्धता के साथ भोजन तैयार करवाते हैं। बड़े प्रेम आदर सम्मान के साथ सभी को भोजन करवाते हैं। इस्लाम के अनेक मतावलंबियों में नहाने धोने का बहुत रिवाज शायद नहीं है क्योंकि मैंने कई रोजाधारियों को देखा है कि वह सुबह से शाम तक अपने दैनिक कार्य करते हैं और शाम को सीधे इफ्तार की दावत में आ जाते हैं। खैर अपनी-अपनी धार्मिक मान्यताएं और परंपराएं हो सकती हैं। इसमें किसी को आपत्ति भी नहीं होनी चाहिए।
अब दूसरा पक्ष देखिए कोरोना काल और उसके बाद सोशल मीडिया पर समाचार पत्रों में गत कुछ वर्षों में ऐसी सैकड़ो वीडियो तथा समाचार आए हैं कि होटल, ढाबे में कोई थूक कर रोटी बना रहा है, कोई फल सब्जी बेचने वाला व्यक्ति अपना मूत्र सब्जियों पर छिड़क रहा है, कोई नाली, नाले का पानी सब्जियों पर डाल रहा है,कोई थूक लगाकर माला, पुष्पहार बना रहा है, कहीं हलाल सर्टिफाइड वस्तुऐं बेची जा रही है। हद तो तब हो गई जब एक वीडियो में भोजन बनाते हुए उस होटल का कर्मचारी गंदगी विस्टा अर्थात मल(लैट्रिन) मिलाते हुए पकड़ा गया। यूरोप के देश की वीडियो तथा समाचार आया कि बहुत दिनों से लोग बीमार हो रहे थे जब जांच की तो भोजन में गंदगी अर्थात मानवीय मल (लैट्रिन) मिले होने की पुष्टि हुई।तथ्य यह है कि इन सभी गतिविधियों में संलिप्त मुस्लिम समुदाय के लोग ही थे। अब यह कौन सी शिक्षा है? कौन सा मजहब है इस पर किसी नेता का, किसी मौलवी का कोई स्पष्टीकरण नहीं आया। विचार कीजिए कैसी जाहिलियत सिखाई जा रही है?
संभवत: ऐसे समाचारों, घटनाओं को संज्ञान में लेकर ही स्थानीय प्रशासन ने कावड़ यात्रा के कालखंड हेतु नियम जारी किए होंगे। इसमें किसी को कोई आपत्ति नहीं होनी चाहिए। धार्मिक आस्था व्यक्तिगत मामला है। माननीय न्यायालय को तथा राजनेताओं को विचार करना चाहिए। साथ ही राजनीतिक एजेंडा धारी नेताओं को एक पक्षीय ज्ञान नहीं देना चाहिए।
एक और हिंदू समाज है जो कावड़ यात्रा के समय हजारों भंडारे लगाता है। पूरे श्रद्धा- भक्ति भावना से शुद्ध अंतःकरण तथा शुद्ध तन मन से कावड़ यात्रियों की सेवा करता है। भोजन सामग्री जुटाने से लेकर निर्माण तथा वितरण में पूरी शुद्धता का ध्यान रखा जाता है। ऐसे में छल क्यों होना चाहिए ? क्यों माननीय न्यायालय राजनीतिक दलों द्वारा तथा आलिम मुफ्ती, मौलवियों द्वारा छल प्रपंच को बढ़ावा दिया जाना चाहिए ? क्यों अपनी पहचान छुपाने के लिए प्रोत्साहित किया जाना चाहिए ? व्यापार करना अनुचित नहीं। परंतु व्यापार में छल, छिपाव को बढ़ावा कौन दे रहा है ?
कानून, नियमों के पालन कराने हेतु सरकार विभाग बनाती है। नापतोल में गड़बड़ी न हो, चीजों में मिलावट न हो इसका ध्यान रख, दोषियों को सजा देने का प्रावधान किया गया है। ऐसा न हो तो फिर शुद्धता का ध्यान कौन रखेगा ? मिलावट और शुद्धता में अंतर है। इस पर भी माननीय न्यायालय को विचार करना चाहिए। जहां न्यायालय व्यापारी, दुकानदार को कम तोलने, मिलावट करने, कम गुणवत्ता की सामग्री बेचने, बेईमानी करने पर सजा देता है, उसी परिप्रेक्ष्य में ग्राहक को भी अधिकार होना चाहिए कि वह खाद्य पदार्थ, भगवान को अर्पण की जाने वाली पूजन सामग्री तैयार करने वाले व्यक्ति की शारीरिक, मानसिक पवित्रता और शुद्धता को जाने।
आशा करते हैं कि माननीय न्यायालय इस संबंध में शीघ्र विचार कर कोई स्थाई नीति बनाने हेतु सरकार को दिशा निर्देश देंगे।
(लेखक शिक्षा संस्कृति उत्थान न्यास से जुड़े हैं और न्यास के पर्यावरण संबंधी गतिविधि के राष्ट्रीय संयोजक हैं)