आगरा । शुद्ध पानी, स्वच्छ हवा कहां से मिलेगा?
यमुना को रिवाइव करने की चिंता नहीं, नहर, कुएं, तालाब खुदाई पर ध्यान नहीं, आगरा की तमाम लंबित मांगे ठंडे बस्ते में, लेकिन न्यू आगरा मास्टर प्लान से झुनझुने का म्यूजिक सुनाया जा रहा है।
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प्रस्तावित न्यू आगरा शहरी बसावट, यमुना एक्सप्रेसवे के आजू बाजू, के जरिए शहर अब एक बार फिर विकास की दौड़ में क़दम बढ़ाने जा रहा है । यानी पुराना आगरा जो धरोहरों, संस्कृति, व्यवसाय का सैकड़ों सालों से रहा है हब, या औद्योगिक केंद्र, साइडलाइन हो गया है, अब सारा फोकस नए आगरा पर होगा। फिर काहे को बीस हजार करोड़ का तीस किलोमीटर लंबा मेट्रो रेल नेटवर्क बनाया जा रहा है? क्यों ग्वालियर रोड साइड पर अटल नगर बसाया जा रहा है? गांव खत्म करके शहर क्षेत्र को लगातार विस्तार दिया जा रहा है! कब से आगरा एक इंटरनेशनल स्तर का स्पोर्ट्स स्टेडियम डिमांड कर रहा है, और high कोर्ट की बेंच पर आज तक कोई निर्णय नहीं हो पाया है।
उत्तर प्रदेश सरकार द्वारा मंज़ूरी पाए इस विशाल प्लान को यमुना एक्सप्रेसवे औद्योगिक विकास प्राधिकरण (YEIDA) ने तैयार किया है। 10,500 हेक्टेयर में फैला ये मन्सूबा आगरा को 2041 तक एक मॉडर्न इंडस्ट्रियल, टूरिज़्म और अर्बन हब में तब्दील करेगा।
मगर इस “विकास” की तस्वीर इतनी गुलाबी नहीं है जितनी पेश की जा रही है। शहरवासियों, पर्यावरणविदों और समाजिक संगठनों ने इस योजना को लेकर कई सवाल उठाए हैं — ज़रूरत, पर्यावरणीय कीमत और पारदर्शिता के कमी को लेकर।
विकास के नाम पर यमुना का गला घोंटने की तैयारी हो रही है। यमुना के किनारे लाइन से विकसित किए जा रहे अर्बन hubs या क्लस्टर्स के लिए पानी कहां से लाओगे। कितना भूजल का दोहन करोगे, या आगरा के हिस्से का गंगा जल डायवर्ट करोगे?
योजना में यमुना नदी की हालत पर कोई ठोस क़दम नहीं दिखता। नदी पहले ही प्रदूषित और मुरझाई हुई हालत में है। प्लान में ताजमहल के नीचे की नींव को महफूज़ रखने के लिए डाउनस्ट्रीम बैराज का कोई ज़िक्र नहीं — जबकि ये एक बेहद अहम ज़रूरत है, ख़ासतौर पर अगर विरासत की हिफ़ाज़त का दावा किया जा रहा है। ताज ट्रेपेज़ियम ज़ोन (TTZ), जिसे ऐतिहासिक धरोहरों को बचाने के लिए बनाया गया था, पर अब इंडस्ट्रियल क्लस्टर्स का ख़तरा मंडरा रहा है — हवा और पानी दोनों के लिए आफ़त बन सकता है यह मेगा अर्बन न्यू आगरा प्लान।
इस प्लान के तहत खेती योग्य ज़मीन को इंडस्ट्रियल और अर्बन डिवेलपमेंट के लिए तब्दील किया जाएगा। इससे न सिर्फ़ स्थानीय किसानों की रोज़ी-रोटी पर असर पड़ेगा, बल्कि खाद्य सुरक्षा भी खतरे में पड़ सकती है। सिर्फ़ 18% ज़मीन को ग्रीन ज़ोन और फ्लडप्लेन कंज़र्वेशन के लिए रखा गया है — जो प्लान का “इको-फ्रेंडली” होने का खोखला दावा लगता है।
प्लान में यह भी साफ़ नहीं है कि किस तरह की इंडस्ट्रीज़ लगाई जाएंगी — क्या वे पानी की बड़ी खपत वाली होंगी, ज़हरीला कचरा छोड़ने वाली होंगी, या फिर इंसानी सेहत के लिए नुकसानदेह? इस धुंधलेपन ने लोगों की चिंता और बढ़ा दी है।
इस मन्सूबे की सबसे बड़ी खामी यह है कि इसमें स्थानीय लोगों, सिविल सोसायटी और राजनीतिक प्रतिनिधियों की सहभागिता नहीं है न ही राय नहीं ली गई है। ऐसा लगता है जैसे बाबूओं और बिल्डर लॉबी ने मिलकर यह प्लान थोप दिया है। अच्छा होता अगर NEERI, ASI, केंद्रीय जल आयोग और वन या सिंचाई विभाग की भी सलाह ली जाती— और सुप्रीम कोर्ट से हरी झंडी ली गई होती, क्योंकि TTZ मामलों पर शीर्ष कोर्ट निगरानी रखता है। यह एक कानूनी और पर्यावरणीय लापरवाही है, जो भविष्य में बड़ा संकट ला सकती है।
17.24 लाख नौकरियों का वादा तो है, लेकिन ये नहीं बताया गया कि ये नौकरियाँ कैसी होंगी — क्या ये कुशल और स्थायी होंगी, या फिर कम मज़दूरी पर आधारित अस्थायी श्रमशक्ति का शोषण?
आगरा का असली चेहरा: विरासत और खेती, ना कि सीमेंट और कंक्रीट है।
एक स्थानीय किसान का दर्द झलकता है — “ये प्रोजेक्ट थोपा गया लगता है, माँगा नहीं गया। हमारी ज़मीन और हमारी नदी दांव पर लगी है और हमसे पूछा तक नहीं गया।” सिविल सोसायटी ग्रुप्स ने भी खुले संवाद की मांग की है। लेकिन लगता नहीं कि हुकूमत सुनेगी अवाम की आवाज़?
अगर सरकार इस प्लान को बगैर ज़रूरी मुआमले और समाजिक सहभागिता के लागू करती है, तो यह आगरा की तहज़ीब, और फितरत को प्रभावित करेगा।
यह वक़्त है थम कर सोचने का। वरना एक दिन ताजमहल के शहर में ना ताज बचेगा, ना महल — बस धुंआ, धूल और अफ़सोस। क्या यही है तरक्की का नया नक़्शा? या फिर एक और शहरी खौफ का साज़िशन आग़ाज़?