ऑपरेशन सिंदूर और अश्वत्थामा।

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दिनेश कांडपाल

चीन और तुर्की को यकीन नहीं हुआ कि भारत दुश्मन पाकिस्तान के परमाणु ठिकाने के इतने करीब पहुंचकर उसे बर्बाद करने की क्षमता रखता है। पाकिस्तान में सरगोधा के पास एक जगह है किरना हिल्स। 10 मई की रात यहीं पर एक भारतीय स्ट्राइक ने अगले 12 घंटे के लिए पूरी दुनिया को बेचैन कर दिया था। शाहबाज शरीफ सदमे में था और जनरल असीम मुनीर के हसीन ख्वाब पलट चुके थे।
जिस परमाणु बम का गुब्बारा लेकर पाकिस्तान खुद को इस्लामी दुनिया का ताकतवर मुल्क कहता आया उस गुब्बारे की हवा एक ब्रह्मोस ने निकाल दी। ईरान के हुक्मरानों को भारत की ताकत का अंदाजा पहले से था सऊदी अरब जानता था कि पाकिस्तान की बेवकूफियां पूरी दुनिया पर भारी पड़ सकती है, डोनाल्ड ट्रंप की सिट्टी पिट्टई गुम हो चुकी थी। इसलिए वो एहतियात बरत रहे थे।
जरा सोचिए पूरा अमेरिकी निजाम भारत को यह समझाने में लग गया की युद्ध विराम जरूरी है।

मूर्ख मुनीर न्यूक्लियर कमांड की बैठक बुला चुका था। सी आई ए हर मिनट की खबर ट्रंप तक पहुंचा रहा था। ट्रंप ने पहले जेडी वांस को काम पर लगाया, लगा कि मामला पूरी तरह से नहीं सम्हलेगा तो विदेश सचिव मार्को रूबियो भी मैदान में कूद पड़े। कुछ घंटे के लिए पूरे अमेरिका का एक ही एजेंडा बन गया किसी तरह मोदी को मनाओ।

जिस वक्त सोशल मीडिया पर खबर और अफवाह की धूल भरी आंधी में यह तय कर पाना मुश्किल हो रहा था कि क्या सही है क्या गलत उसे समय अमेरिका, रूस, ब्रिटेन, फ्रांस और पाकिस्तान का चाचा चीन अपने-अपने मिलिट्री कमांड सेंटर में पहुंच चुके थे।

किसी को कोई रास्ता समझ नहीं आ रहा था। अगले पल की कल्पना बहुत डराने वाली थी। करारी हार और घनघोर बेज्जती की आशंका से घबराया जनरल असीम मुनीर अपने पागलपन में न्यूक्लियर कमांड में कोई सनकी फरमान जारी कर सकता था। भारत की तैयारी ऐसी थी कि अगर किराना हिल्स के पास एक और मूवमेंट हुई तो उसके सारे औजार पुर्जा पुर्जा हो सकते थे।

ब्रह्मास्त्र साधा जा चुका था। जाहिर है अगर इसका इस्तेमाल हो जाता तो उसकी तपिश पूरी दुनिया को झेलनी पड़ती। पाकिस्तान को परमाणु टेक्नोलॉजी देने की बदनामी का दाग लिए कई अश्वत्थामा सदियों तक इस पृथ्वी पर विचरते रहते।
भारत सांस्कृतिक समृद्धि और शक्ति का देश। यहां पर मनुष्य का मोल है। ज़िम्मेदार शासक गंभीर होता है। शक्ति के साथ कल्याण का भाव जय और विजय की उद्दिग्नता से कहीं दूर होती है। यही वजह है की युद्ध के ज्वार में बह रही धारा के वेग की परवाह न करते हुए एक ऐसा फैसला लिया गया जिसमें आलोचनाओं का जोखिम तय था, और वो होने भी लगी।

जिस संस्कृति में रणछोड़ को भी कल्याण का मार्ग माना गया हो वहां युद्धविराम एक छोटा निर्णय था। इसलिए ये जोखिम लिया गया।

भारत को लक्ष्य की प्राप्त हो चुका थी। दुश्मन पाकिस्तान दहला पड़ा था और उसके आका चीन और तुर्की भारतीय टेलीविजन पर अपनी मिसाइल और ड्रोंस के मलबे देख कर व्यथित थे। ट्रंप, वांस और रूबियो सिचुएशन रूम से हिल नहीं पाए।

अब इधर का हाल देखिए। बाड़मेर में चीनी मिसाइल को हमारे लड़के टेंपो में भर कर ले गए। पंजाब के लड़के इस बात पर लड़ लिए कि खेत में गिरा टर्की के ड्रोन का मलबा कौन घर ले जाए। कुछ स्क्रैप डीलर इस बात पर नाच लिए कि भारतीय पोस्ट पर LoC के उस पार दागर गए गोला बारूद के खोखे का कई टन पीतल मिल जाएगा।

कुल मिलाकर संदेश साफ़ है। ये नया भारत है। घुसे या ना घुसे लेकिन मारेगा ज़रूर।

(फेसबुक वॉल से)

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