पैसा वसूल परिवार के साथ देखने लायक फिल्म जॉली एलएलबी थ्री

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विष्णु शर्मा

मुम्बई : जॉली एलएलबी ने राहुल गांधी की मुहिम पर हैट्रिक बनाई, लेकिन क्या विलेन राहुल गांधी हैं?
जॉली एलएलबी की तीसरी मूवी आ गई है, मूवी लोगों को पसंद भी आ रही है क्योंकि दोनों जॉली यानी सीनियर जॉली मेरठ वाले अरशद वारसी व जूनियर जॉली कानपुर वाले अक्षय कुमार एक साथ इसमें दिखेंगे. उन दोनों की जुगलबंदी ने फिल्म तो वाकई में देखने लायक बना दी है लेकिन जो लोग इस मूवी की असली कहानी जानते हैं, उनमें चर्चा शुरू हो गई है कि राहुल गांधी को क्या उस विधायक के रोल में दिखाया गया है जो पुलिस की कार्यवाही के दौरान चुपके से अपने गुंडे के जरिए डीएम को गोली मरवा देता है?  

जिन लोगों को नहीं पता, वो ये जान लें कि इस मूवी की कहानी यूपी के ग्रेटर नोएडा के जुड़वां गांवों भट्टा पारसौल में हुए किसानों और पुलिस के बीच हुए संघर्ष से जुड़ी है. हालांकि मूवी में ये गांव बीकानेर में दिखा दिया गया है. जहां असली कहानी प्रशासन की उन दो गावों की जमीन ग्रेटर नोएडा के लिए दो नए सैक्टर्स के लिए अधिग्रहण से जुड़ी थी, जिसके लिए किसान कम मुआवजे के चलते नाराज थे. वहीं मूवी में इसे एक उद्योगपति हरिभाई खेतान के ड्रीम प्रोजेक्ट ‘बीकानेर टू बोस्टन’ के लिए सूदखोंरो के जरिए किसानों की जमीन खरीदने में दिखाया गया है, जिसमें घूस लेकर डीएम व सारे अधिकारी उनकी मदद करते हैं.

असल कहानी में जहां 2011 में गांव वालों ने जब सर्वे करने कुछ अधिकारियों को बंधक बना लिया तो उन्हें छुड़ाने पुलिस गई थी, तब बवाल हुआ, और दो पुलिस वाले और दो गांव वाले मांरे गए. मूवी में ये बवाल डीएम के गांव खाली करने के ऐलान और विधायक के गुर्गे द्वारा छुपकर डीएम को गोली मारने से शुरू होता है. ऐसे में फिल्म किसानों को खुश कर देने वाली है, जबकि हकीकत में इस जनवरी में भी बवाल करने वाले 27 किसानों के घरों पर कुर्की के नोटिस चिपकाए गए हैं. हालांकि बाकी किसान खुश हैं, फिल्म के विपरीत उनको बढा हुआ मुआवजा मिल गया है, विकसित प्लॉट भी मिल गए हैं.

2011 में 4 हत्याओं की खबर से राहुल गांधी एक्शन में आ गए थे, छुपकर वहां किसी की बाइक पर बैठकर पहुंचे और खूब माहौल बनाया, बयान दिए कि मैंने राख के ढेर में कई लाशें देखी थीं, बाद में सूचना मीडिया से ली हुई बताई. लेकिन जब चुनाव हुए तो भट्टा पारसौल के लोगों ने ही उनके विधायक प्रत्याशी को वोट नहीं दिया. हारा हुआ प्रत्याशी और उनको बाइक पर लिफ्ट देने वाला दोनों आज बीजेपी में हैं. 2012 के यूपी चुनावों में कांग्रेस को 28 सीटें आईं और लोकसभा में यूपी में जीरो.
लेकिन इस मूवी में जिस तरह से विधायक का छुपा किरदार दिखाया गया है कि उसी ने कंपनी के मालिक खेतान से पैसा लेकर डीएम पर गोली चलवाकर किसानों और पुलिस के  बीच बवाल करवाया था, लोग अनुमान लगा रहे हैं कि वो राहुल गांधी का किरदार हो सकता है. लेकिन राहुल की तरह वो फ्रंट पर आने से बचता रहा था. राहुल का किरदार हो ना हो लेकिन विपक्ष के वकील विक्रम (राम कपूर) का किरदार जरूर कई मौकों पर कपिल सिब्बल जैसा लगा है.

कुछ भी कहिए मूवी मजेदार है, सुभाष कपूर ने अरशद-अक्षय और सौरभ शुक्ला की तिकड़ी से पैसा वसूल परिवार के साथ देखने लायक फिल्म बनाई है. गजराज राव तो हमेशा की तरह बेमिसाल हैं. कई डायलॉग्स मारक हैं जैसे ‘मुक्का जब लड़ाई के बाद याद आए तो उसे अपने मुंह पर मार लेना चाहिए’ या फिर ‘किसान है तो जहान है’ और कॉमेडी मूवी में इमोशनल तड़का भी जबरदस्त है, वकील व किसान परिवारों के लिए तो मस्ट वाच है ही.  हालांकि दिल्ली की सैशन कोर्ट में बीकानेर का केस क्यों लड़ा जा रहा था, या फौरन वकील दिल्ली से बीकानेर के गांव में और बीकानेर की पुलिस दिल्ली की कोर्ट में वर्दी पहने कैसे नजर आती है, इन सब बहस में पड़ना बेकार है, बाकी गाना तो हिट हो ही गया है, फिकर ना कर तेरा भाई वकील है।

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