प्रणय विक्रम सिंह
जब पाठशाला को ‘पार्टीशाला’ बना दिया जाए, जब वर्णमाला में ‘वंशवाद’ घुल जाए, जब बालकों के भोलेपन पर बौखलाहट की बिसात बिछाई जाए तब समझिए, शिक्षा नहीं, सियासत का षड्यंत्र चल रहा है।
समाजवादी पार्टी द्वारा आरंभ की गई तथाकथित PDA पाठशाला कोई शैक्षणिक नवाचार नहीं, बल्कि एक सुनियोजित राजनीतिक कूटचाल है, जिसमें शिक्षा को संकीर्ण सोच, सांप्रदायिक समीकरण और सत्ताकांक्षा का औजार बना दिया गया है। यह उस वैचारिक बुखार का विस्तार है, जो बालक के मन में वर्णमाला के माध्यम से वंशवाद बोने का दुस्साहस करता है।
“A for Akhilesh”, “B for Baba Saheb”, “C for Charan Singh”, “D for Dimple” यह कोई शब्दावली नहीं, समाजवादी संकीर्णता का संकेतमंत्र है। यह वर्णमाला नहीं, वोटमाला है। यह वह प्रयोग है, जो बच्चों को पठन नहीं, पक्षपात सिखाता है। यह शिक्षा नहीं, शब्दों के माध्यम से सत्ता की संकल्पना को संचित करने की योजना है।
विडंबना यह है कि शिक्षा के जो स्वयंभू प्रवक्ता आज PDA का पाठ पढ़ा रहे हैं, उनके ही शासनकाल (2012–2017) में उत्तर प्रदेश के सरकारी विद्यालय उपेक्षा, भ्रष्टाचार और दुर्गति के जीते-जागते उदाहरण थे।
समाजवादी सरकार ने शिक्षा को न प्राथमिकता दी, न प्रतिष्ठा। सरकारी आंकड़े चीख-चीखकर बताते हैं कि उस काल में 64,000 से अधिक विद्यालयों में शौचालय, पीने का पानी और ब्लैकबोर्ड जैसी मूलभूत सुविधाएं नहीं थीं। 80,000 से अधिक शिक्षक पद रिक्त पड़े रहे, भर्तियां जातिगत जोड़-घटाव और चहेते समीकरणों पर टिकी रहीं। मिड डे मील योजना में दूध में पानी नहीं, पानी में दूध निकला और कभी-कभी उसमें छिपकलियां भी। कई विद्यालय चुनावी बैठकें और राजनीतिक प्रशिक्षण केंद्र बन गए। जो भवन शिक्षा के मंदिर थे, वहां न छात्रों की उपस्थिति थी, न संस्कारों की प्रतिष्ठा।
अब जब मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के नेतृत्व में उत्तर प्रदेश सरकार ने ‘पेयरिंग नीति’ लागू कर बिखरे हुए विद्यालयों को एकीकृत किया, शिक्षकों की उपलब्धता सुनिश्चित की, और बच्चों को सशक्त शिक्षा उपलब्ध कराने की दिशा में ‘मिशन कायाकल्प’ के माध्यम से बुनियादी ढांचे में ऐतिहासिक सुधार किए तब वही समाजवादी पार्टी इसे ‘विद्यालय बंदी’ का नाम देकर राजनीतिक भ्रामकता का ब्रह्मास्त्र चला रही है। लेकिन तथ्य यही कहते हैं 1.38 लाख विद्यालयों में शौचालय, रंग-रोगन, स्मार्ट क्लास, पुस्तकालय, फर्नीचर, और बाउंड्री वॉल जैसी आवश्यक सुविधाएं दी गईं। बच्चों को ड्रेस, जूते, बैग आदि के लिए अब DBT के माध्यम से धन दिया जा रहा है।
कहने का अर्थ यह है कि जब योगी सरकार स्कूलों को संस्कार की संवाहिका बना रही है, समाजवादी पार्टी उन्हें समीकरण की संधि भूमि बनाना चाहती है।
PDA पाठशाला दरअसल समाजवादी पार्टी की जातीय राजनीति का ‘शैक्षिक संस्करण’ है। यह कोई प्रयोग नहीं, पीढ़ियों को पार्टी की परिधि में बांधने का प्रयास है। ‘पिछड़ा, दलित, अल्पसंख्यक’ इस तिकड़ी को एक कृत्रिम वर्ग के रूप में स्थापित कर बालकों को यह बोध देना कि वे एक उत्पीड़ित समुदाय से आते हैं, और समाजवादी पार्टी ही उनका तारक है, एक वैचारिक वैचारिक विषवमन है। यह शिक्षण नहीं, शिकार है, बालबुद्धि के साथ भी, और संविधान की भावना के साथ भी।
यह योजना भारतीय संविधान के अनुच्छेद 21(A) के स्पष्ट उल्लंघन के साथ-साथ UNCRC जैसे अंतरराष्ट्रीय बाल अधिकार संधियों के भी प्रतिकूल है। ये संधियां बच्चों को राजनीतिक तटस्थता और स्वतंत्र बौद्धिक विकास का अधिकार देती हैं। लेकिन समाजवादी पार्टी बच्चों को विवेक की जगह वंश का, राष्ट्र की जगह जाति का और विवेचना की जगह वैमनस्य का पाठ पढ़ा रही है।
PDA पाठशाला में “A for Awareness”, “B for Bharat”, “C for Constitution” नहीं है। वहां केवल “A for Akhilesh” है। यह कोई अनजाने में हुई भूल नहीं, यह सुनियोजित संकल्पनात्मक विलोपन है। इसमें राष्ट्र नहीं, केवल ‘राग दरबारी’ है। राष्ट्रवाद का स्थान ‘रिश्तावाद’ ने ले लिया है। यह विचार की हत्या है, और विचारधारा की हठधर्मिता का उत्सव।
ऐसे समय में जब भारत नई शिक्षा नीति के माध्यम से वैज्ञानिक सोच, सांस्कृतिक गौरव तथा वैश्विक प्रतिस्पर्धा की दिशा में आगे बढ़ रहा है और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी देश को डिजिटल भविष्य की ओर ले जा रहे हैं, तब समाजवादी पार्टी जातीय अतीत के जाल में बच्चों को उलझा रही है। यह PDA नहीं, वोट बैंक का Vedic Destruction Agenda है।
समाज को तय करना होगा कि क्या हम अपने बच्चों को बुद्धिमत्ता का ब्रह्मास्त्र देना चाहते हैं या वोटबैंक का बायोमैट्रिक? क्या हमारी पाठशालाएं ज्ञान, गौरव और गत्यात्मकता का केंद्र बनेंगी या गुटबंदी, गणना और गुमराही का मंच? क्या हम वर्णमाला में ‘वंदे मातरम’ खोजेंगे या ‘वोट दो मुलायम को’ ?
PDA पाठशाला कोई शैक्षिक योजना नहीं, यह सामूहिक चेतना की चीरहरण योजना है। यह एक वैचारिक अपराध है, जो संविधान की भावना, सामाजिक समरसता और शिक्षा की गरिमा तीनों का अपमान है। यह पठन नहीं, प्रपंच है। यह अक्षर नहीं, एजेंडा है। यह विद्या नहीं, वोटवाद है। यह शिक्षा नहीं, सियासत की संकीर्णता है।
अतः अब समय आ गया है कि हम शिक्षा को राष्ट्रवाद की ऊर्जा दें, और इसे समाजवाद के दुराग्रह से मुक्त करें। हमें अपनी पाठशालाओं को फिर से ‘गुरुकुल’ बनाना है। जहां ज्ञान हो, गरिमा हो, और गौरव हो। PDA जैसे षड्यंत्रों को उजागर करना केवल बौद्धिक जिम्मेदारी नहीं, राष्ट्र की रक्षा का दायित्व है।
PDA का अर्थ अब स्पष्ट है ‘पार्टी द्वारा डिज़ाइन किया गया अपहरण’। इसे रोकिए, इससे पहले कि पीढ़ियां केवल ‘पार्टी’ के लिए पढ़ने लगें और ‘भारत’ को भूल जाएं।
यह मात्र बौद्धिक चेतना की पुकार नहीं, राष्ट्रचेतना की प्रार्थना है। अब यह संघर्ष केवल शब्दों का नहीं, संस्कारों का है और इस युद्ध में मौन अपराध है।