पटना की कांग्रेस रैली में अव्यवस्था की वजह पार्टी की आंतरिक कार्य संस्कृति को माना जा रहा है। विश्लेषकों का कहना है कि कांग्रेस में “गणेश परिक्रमा” का कल्चर हावी है, जहां कार्यकर्ता और नेता शीर्ष नेतृत्व के इर्द-गिर्द चक्कर लगाने में व्यस्त रहते हैं। पार्टी में नेतृत्व का भविष्य तय माना जाता है, जिसमें राहुल गांधी, प्रियंका गांधी, और भविष्य में उनके बच्चों—रैहान वाड्रा और मिराया वाड्रा—के नाम शामिल हैं। इस कारण कार्यकर्ताओं का ध्यान संगठनात्मक कार्यों के बजाय नेताओं की चाटुकारिता पर रहता है।
स्थानीय स्तर पर भी यही स्थिति है। बिहार के छोटे नेता दिल्ली से आए बड़े नेताओं के होटलों के बाहर मंडराते हैं, जबकि कार्यकर्ता इन स्थानीय नेताओं के इर्द-गिर्द चक्कर लगाते हैं। नतीजतन, ज़मीनी स्तर पर काम करने की जिम्मेदारी कोई नहीं लेता। रैली में मंच व्यवस्था से लेकर भीड़ प्रबंधन तक में खामियां साफ दिखीं। कार्यकर्ताओं की धक्का-मुक्की और अव्यवस्थित भीड़ ने आयोजन की छवि को धूमिल कर दिया।
वहीं, RSS के आयोजनों में स्वयंसेवकों का अनुशासन और समर्पण एक मिसाल है। विज्ञान भवन के कार्यक्रम में सैकड़ों MIP और VIP की मौजूदगी में स्वयंसेवकों ने ट्रैफिक प्रबंधन, बैठने की व्यवस्था, और अन्य कार्यों को बखूबी संभाला। RSS का संगठनात्मक ढांचा और स्वयंसेवकों का प्रशिक्षण इस तरह का है कि हर व्यक्ति अपनी जिम्मेदारी बिना किसी बाहरी दबाव के निभाता है।
कांग्रेस की इस रैली ने एक बार फिर पार्टी की कार्य संस्कृति और नेतृत्व पर सवाल खड़े किए हैं। जब तक चाटुकारिता और परिवारवाद का बोलबाला रहेगा, ऐसी अव्यवस्था बनी रहेगी। दूसरी ओर, RSS का अनुशासित मॉडल अन्य संगठनों के लिए प्रेरणा का काम करता है।