पटना पुस्तक मेला – कभी ना भूलने वाला अनुभव

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शंभू शिखर
चालीस सालों से लगातार पटना में पुस्तक मेला आयोजित होता रहा है ।शहर वासियों के लिए यह किसी उपहार से कम नहीं है ।पुस्तक मेले में पाठकों की भीड़ भी प्रकाशकों को उत्साहित करती है । 
मेरा यह पहला अनुभव था । पहले काव्य पाठ का जहाँ ऐसा लग रहा था कि पुस्तक मेले की पूरी भीड़ कुछ देर के लिए सिर्फ़ कविता सुनने के लिए रुक सी गई है ।हर चेहरे पर हँसी ,सभी चेहरे पर वाह वाही और सभी साथ तालियों का ताल ठोकते दिख रहे थे ।
कवि सम्मेलन के तुरंत बाद मैं “प्रभात प्रकाशन “ के स्टॉल पर गया जहाँ मेरी छठी पुस्तक “चाँद पर प्लॉट “ बिक्री ले लिए उपलब्ध थी ।
किसी हिंदी कवि या लेखक के लिए यह सौभाग्य की बात ही होगी कि उसके पहुँचने के पहले पाठक पहुँचे हुए थे । देखते ही देखते माहौल इतना उत्साहित हो गया कि लोगों को बार बार निवेदन करके पंडाल से बाहर भेजना पड़ा । दो मिनट में ही बिक्री ले लिए रखी है सभी पुस्तकें लोगों ने खरीद डाली और फिर किताब पर हस्ताक्षर और सेल्फी लेने का सिलसिला शुरू हुआ। जल्दी जल्दी में भी 60 से अधिक किताबों पर “ऑटोग्राफ” देने में १० मिनट से अधिक समय लग गए । मेरे लिये यह सब अनोखा था । अविश्वसनीय था । अकल्पनीय था ।
कुछ समय पहले अल्लू अर्जुन को देखने के लिये जब पटना वासी आए तो लोगों ने खूब आलोचना भी की लेकिन कल पुस्तक मेले में लोगों की भीड़ देखने के बाद कह सकते हैं -पटना में अजीब सी दीवानगी है।

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