लखनऊ। डिम्पल यादव पर मौलाना साजिद रशीदी द्वारा की गई अभद्र टिप्पणी, जिसमें उनकी मस्जिद में बैठने की शैली और कपड़ों को लेकर आपत्तिजनक बयान दिया गया, ने उत्तर प्रदेश की सियासत में हलचल मचा दी है। इस मुद्दे पर अखिलेश यादव और डिम्पल यादव की चुप्पी ने कई सवाल खड़े किए हैं। इस चुप्पी की वजह को समझने के लिए हमें सामाजिक, राजनीतिक और सांस्कृतिक संदर्भों को देखना होगा।
पहली बात, अखिलेश यादव और समाजवादी पार्टी (सपा) की राजनीति में मुस्लिम वोट बैंक महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। सपा ने हमेशा “मुस्लिम-यादव” (MY) समीकरण को अपनी ताकत माना है। मौलाना साजिद रशीदी जैसे प्रभावशाली धार्मिक नेताओं की टिप्पणियों का विरोध करने से मुस्लिम समुदाय के एक वर्ग में नाराजगी की आशंका रहती है, जो सपा के लिए जोखिम भरा हो सकता है। अखिलेश की चुप्पी को इस संदर्भ में देखा जा सकता है कि वह वोट बैंक को नाराज करने से बचना चाहते हैं, खासकर तब जब उत्तर प्रदेश में 2027 के विधानसभा चुनाव नजदीक हैं।
दूसरी ओर, डिम्पल यादव की चुप्पी को उनके व्यक्तिगत और राजनीतिक व्यक्तित्व के नजरिए से समझा जा सकता है। डिम्पल एक सांसद के रूप में अपनी छवि को मजबूत और संयमित बनाए रखना चाहती हैं। इस तरह के विवाद में प्रत्यक्ष रूप से उलझने से उनकी छवि को नुकसान हो सकता है। साथ ही, वह इस मुद्दे को अनदेखा कर इसे समय के साथ ठंडा होने देना चाहती होंगी।
मुलायम सिंह यादव को “मुल्ला मुलायम” कहे जाने का तंज उनके मुस्लिम समुदाय के प्रति कथित तुष्टिकरण नीति से जुड़ा है। अखिलेश भी इस छवि से बचने की कोशिश करते हैं, लेकिन इस मामले में उनकी चुप्पी इसे और पुख्ता करती दिखती है। हालांकि, यह कहना कि एक नेता अपनी पत्नी के अपमान को केवल वोट बैंक के लिए सहन करेगा, सरलीकरण होगा। यह संभव है कि अखिलेश इस मुद्दे को तूल न देकर सांप्रदायिक तनाव से बचना चाहते हों।
अखिलेश और डिम्पल की चुप्पी रणनीतिक हो सकती है, जो राजनीतिक नुकसान से बचने और सामाजिक सद्भाव बनाए रखने की कोशिश को दर्शाती है। लेकिन यह चुप्पी सपा की छवि को कमजोर भी कर सकती है, क्योंकि यह उनके समर्थकों में यह संदेश दे सकती है कि वे अपमान के खिलाफ खड़े होने में असमर्थ हैं।