रांची: प्रभात खबर, झारखंड, बिहार और पश्चिम बंगाल का एक प्रमुख हिंदी दैनिक समाचार पत्र, आज अपनी स्थापना के 42वें वर्ष में प्रवेश कर चुका है। 14 अगस्त 1984 को रांची से शुरू हुई इसकी यात्रा को कभी ‘अखबार नहीं, आंदोलन’ कहा गया। उस समय किसी ने नहीं सोचा था कि यह छोटा सा प्रयास, जिसके भविष्य को लेकर लोग 28 महीने भी भरोसा नहीं करते थे, एक दिन पूर्वी भारत का एक सशक्त मंच बन जाएगा।
प्रभात खबर की शुरुआत एस. एम. विनोद और भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के नेता ज्ञान रंजन ने न्यूट्रल पब्लिशिंग हाउस लिमिटेड के तहत की थी। रांची में शुरू हुआ यह अखबार सामाजिक मुद्दों और भ्रष्टाचार के खिलाफ अपनी निडर पत्रकारिता के लिए जल्द ही चर्चा में आया। 1992 में चारा घोटाले को उजागर करने में इसकी भूमिका ऐतिहासिक रही। धमकियों के बावजूद, अखबार ने 70 से अधिक खबरें प्रकाशित कीं, जिसने इसे राष्ट्रीय स्तर पर पहचान दिलाई।
1989 में उषा मार्टिन समूह द्वारा अधिग्रहण के बाद प्रभात खबर ने विस्तार की राह पकड़ी। 1995 में जमशेदपुर, 1996 में पटना, 1999 में धनबाद, 2000 में कोलकाता और 2004 में देवघर में इसके संस्करण शुरू हुए। आज यह रांची, जमशेदपुर, धनबाद, देवघर, पटना, मुजफ्फरपुर, भागलपुर, गया, कोलकाता और सिलीगुड़ी से प्रकाशित होता है। 2019 के इंडियन रीडरशिप सर्वे के अनुसार, इसके 1.16 करोड़ पाठक हैं और यह देश के शीर्ष हिंदी दैनिकों में सातवें स्थान पर है।
प्रभात खबर ने न केवल समाचारों को छापा, बल्कि सामाजिक बदलाव का वाहक बना। 2000 में झारखंड के गठन पर इसने 76 पेज का विशेष संस्करण प्रकाशित किया, जिसमें बिरसा मुंडा के विचारों को प्रमुखता दी गई। 2012 में नक्सलियों द्वारा अपहृत एक बीडीओ की रिहाई में इसकी मध्यस्थता और पूर्व राष्ट्रपति डॉ. एपीजे अब्दुल कलाम को अतिथि संपादक बनाने जैसे नवाचारों ने इसे अनूठा बनाया। डिजिटल युग में भी प्रभात खबर ने अपनी साख बनाए रखी। इसने ई-पेपर, रेडियो धूम, और पंचायतनामा जैसे ग्रामीण केंद्रित साप्ताहिक पत्र शुरू किए। प्रभात खबर इंस्टीट्यूट ऑफ मीडिया स्टडीज की स्थापना ने गुणवत्तापूर्ण पत्रकारिता को बढ़ावा दिया।
आज, 42 वर्षों बाद, प्रभात खबर न केवल एक समाचार पत्र है, बल्कि जनता की आवाज और सामाजिक न्याय का प्रतीक है। इसकी निडरता और जनसरोकार ने इसे एक आंदोलन का रूप दिया है, जो आने वाले वर्षों में भी समाज को दिशा दिखाता रहेगा।