दिल्ली। पिछले कुछ समय से संदीप चौधरी (एबीपी न्यूज), गरीमा सिंह (न्यूज 24), अभय कुमार दुबे, आशुतोष गुप्ता जैसे डीबेट वाले निष्पक्ष पत्रकार और उनके पैनल में बैठने वाले निष्पक्ष पैनलिस्ट हिन्दू और मुसलमान अधिक करने लगे हैं। इनकी आवाज भी ऊंची है। कभी ये लोग ऊंची आवाज में डीबेट करने की वजह से वरिष्ठ एंकर अर्णव गोस्वामी की आलोचना किया करते थे। एक नया मुद्दा कुछ समय से निष्पक्ष एंकर और पैनलिस्ट्स की चर्चा में बार बार आया कि जब मुगलों के नाम पर शहरों के नाम और सड़कों के नाम नहीं चाहिए फिर लाल किले से तिरंगा क्यों फहराया जा रहा है? उसे बदलना चाहिए! इस बात की आइए पड़ताल करते हैं कि लाल किले से स्वतंत्रता दिवस और गणतंत्र दिवस के दिन तिरंगा फहराने का स्थान क्या स्थानांतरित किया जा सकता है?
आइए समझते हैं कि भारत का राष्ट्रीय ध्वज, तिरंगा, देश की एकता और स्वतंत्रता का प्रतीक है। स्वतंत्रता दिवस पर लाल किले से तिरंगा फहराने की परंपरा ऐतिहासिक है, लेकिन क्या इसे अक्षरधाम मंदिर या किसी गैर-मुगल किले से फहराना संवैधानिक रूप से गलत होगा? क्या इससे भारत की धर्म निरपेक्षता को चुनौती मिलती है? यह लेख इन सवालों को संवैधानिक और सामाजिक दृष्टिकोण से विश्लेषित करता है।
संवैधानिक स्थिति
भारत का संविधान तिरंगे के उपयोग को भारतीय ध्वज संहिता, 2002 और राष्ट्रीय सम्मान का अपमान निवारण अधिनियम, 1971 के माध्यम से नियंत्रित करता है। ये कानून तिरंगे के सम्मान और उपयोग के नियम निर्धारित करते हैं, लेकिन यह कहीं नहीं कहते कि स्वतंत्रता दिवस पर तिरंगा केवल लाल किले से ही फहराया जाना चाहिए। यह परंपरा 1947 में जवाहरलाल नेहरू द्वारा शुरू की गई, जो लाल किले के ऐतिहासिक और प्रतीकात्मक महत्व के कारण चुनी गई। संवैधानिक रूप से, तिरंगा किसी भी स्थान-चाहे मंदिर हो, किला हो, या अन्य सार्वजनिक स्थल—से फहराया जा सकता है, बशर्ते ध्वज संहिता का पालन हो।
धर्मनिरपेक्षता का सवाल
भारत की धर्मनिरपेक्षता का अर्थ सभी धर्मों के प्रति समान सम्मान और तटस्थता है, न कि धर्म से पूर्ण दूरी। संविधान का अनुच्छेद 25 धार्मिक स्वतंत्रता की गारंटी देता है, और अनुच्छेद 51A नागरिकों को राष्ट्रीय एकता को बढ़ावा देने का कर्तव्य सौंपता है। यदि तिरंगा किसी मंदिर, जैसे अक्षरधाम, से फहराया जाए, तो यह संवैधानिक रूप से धर्मनिरपेक्षता के सिद्धांत को चुनौती नहीं देता, क्योंकि तिरंगा एक राष्ट्रीय प्रतीक है, न कि धार्मिक। भारत में कई हिंदू नेता संवैधानिक पदों पर रहते हुए धार्मिक आयोजनों, जैसे इफ्तार पार्टियों, में शामिल होते हैं, और यह धर्मनिरपेक्षता के अनुरूप माना जाता है। इसी तरह, मंदिर से तिरंगा फहराना राष्ट्रीय गौरव का प्रतीक हो सकता है, न कि धार्मिक पक्षपात का।
भगवा और तिरंगा
भगवा ध्वज के साथ तिरंगा फहराने का प्रस्ताव संवेदनशील हो सकता है, क्योंकि भगवा एक विशेष धार्मिक पहचान से जुड़ा है। हालांकि, यदि दोनों ध्वजों को ध्वज संहिता के अनुसार अलग-अलग और सम्मानजनक ढंग से फहराया जाए, तो यह संवैधानिक रूप से मान्य होगा। **राष्ट्रीय सम्मान का अपमान निवारण अधिनियम, 1971 तिरंगे के अपमान को रोकता है, लेकिन यह किसी अन्य ध्वज के साथ इसके उपयोग को प्रतिबंधित नहीं करता, बशर्ते तिरंगे का सम्मान बना रहे।
भावनात्मक संवेदनशीलता
किसी मंदिर से तिरंगा फहराने से कुछ लोगों की भावनाएं आहत हो सकती हैं, लेकिन यह व्यक्तिगत दृष्टिकोण पर निर्भर करता है। भारत में अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता (अनुच्छेद 19(1)(a)) के तहत इस तरह के कदम पर चर्चा संभव है, लेकिन अनुच्छेद 19(2) सार्वजनिक व्यवस्था को बनाए रखने के लिए उचित प्रतिबंध लगाता है। उदाहरण के लिए, यदि कोई न्यूज़ एंकर इस बदलाव पर आपत्ति जताए, तो यह उनकी व्यक्तिगत राय होगी, न कि संवैधानिक उल्लंघन।
ऐतिहासिक संदर्भ
तिरंगे के उपयोग को लेकर भारत में पहले भी विमर्श हुए हैं। 2002 में भारतीय ध्वज संहिता में संशोधन से पहले, केवल सरकारी संस्थान ही तिरंगा फहरा सकते थे। नवीन जिंदल की याचिका के बाद सुप्रीम कोर्ट ने इसे सभी नागरिकों के लिए खोल दिया। हाल के ‘हर घर तिरंगा’ अभियान ने भी तिरंगे को जन-जन तक पहुंचाया। हालांकि, लाल किले की परंपरा को बदलने या मंदिर से तिरंगा फहराने का कोई बड़ा विमर्श दर्ज नहीं है।
लाल किले से तिरंगा फहराना एक ऐतिहासिक परंपरा है, लेकिन इसे मंदिर या गैर-मुगल किले से फहराने में कोई संवैधानिक बाधा नहीं है। भारत की धर्मनिरपेक्षता सभी धर्मों के प्रति तटस्थता की मांग करती है, न कि धर्म से दूरी की। मंदिर से तिरंगा फहराना राष्ट्रीय गौरव का प्रतीक हो सकता है, बशर्ते यह ध्वज संहिता के अनुरूप हो। इस तरह के बदलाव से पहले व्यापक सहमति और संवेदनशीलता पर ध्यान देना होगा, ताकि राष्ट्रीय एकता बनी रहे।