प्रेमानंद महाराज के कथन का सही संदर्भ, साथ में उनके पीछे पड़े षडयंत्रकारियों की मजम्मत

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वृंदावन। हाल ही में, प्रेमानंद महाराज का एक वीडियो सोशल मीडिया पर वायरल हुआ, जिसमें उन्होंने कहा कि “आज के दौर में 100 में से 2-4 लड़के और लड़कियां ही पवित्र बचे हैं।” इस बयान को लेकर समाज में व्यापक चर्चा और विवाद हुआ है। दुर्भाग्यवश, कई आलोचकों और मीडिया चैनलों ने इस बयान को अधूरा और गलत संदर्भ में प्रस्तुत किया, जिससे समाज में भ्रम और गलतफहमी फैली। विशेष रूप से, कुछ लोग और संगठन इरादतन इस बयान को तोड़-मरोड़ कर पेश कर रहे हैं, ताकि महाराजजी की छवि को धूमिल किया जा सके और सनातन धर्म के प्रति नकारात्मक भावना को बढ़ावा दिया जा सके।

प्रथम दृष्टया, यह स्पष्ट है कि प्रेमानंद महाराज ने लड़के और लड़की, दोनों के लिए समान रूप से बात कही है। उनका उद्देश्य समाज में पवित्रता और नैतिकता के ह्रास पर चिंता व्यक्त करना था, न कि किसी एक लिंग को निशाना बनाना। फिर भी, कुछ आलोचकों ने केवल “लड़कियों” वाले हिस्से को हाइलाइट किया, जिससे यह भ्रम पैदा हुआ कि महाराजजी लड़कियों के चरित्र पर सवाल उठा रहे हैं। यह महाराजजी के खिलाफ जानबुझकर किया गया षडयंत्र मालूम पड़ता है, जो सत्य को तोड़-मरोड़ कर प्रस्तुत करने का एक उदाहरण है।

इस तरह की अफवाह फैलाने वाले आलोचकों की मंशा पर सवाल उठाना आवश्यक है। कई बार, इन आलोचकों का एजेंडा राजनीतिक या सामाजिक होता है, जहां वे सनातन धर्म और इसके प्रतीकों को निशाना बनाकर अपनी विचारधारा को बढ़ावा देना चाहते हैं। विशेष रूप से, कांग्रेस, सपा और राजद जैसे दलों के प्रभाव में आने वाले कुछ वर्ग सनातन धर्म के विरोध में खड़े हो गए हैं, और ऐसे में प्रेमानंद महाराज जैसे सन्यासियों को निशाना बनाना उनकी रणनीति का हिस्सा बन गया है।

फैक्ट चेक से स्पष्ट है कि महाराजजी का बयान दोनों लिंगों के लिए था, और यह किसी भी तरह से लैंगिक भेदभाव या पूर्वाग्रह को दर्शाता नहीं है। फिर भी, आलोचकों ने इसे गलत तरीके से प्रस्तुत किया, जिससे समाज में गलत संदेश गया। यह न केवल महाराजजी के प्रति अन्याय है, बल्कि सत्य को दबाने और भ्रम फैलाने की एक कोशिश है।

आलोचकों को आइना दिखाने की जरूरत है। वे जो अफवाहें फैला रहे हैं, वे न केवल तथ्यों को तोड़-मरोड़ कर पेश करती हैं, बल्कि समाज में विभाजन और असहिष्णुता को भी बढ़ावा देती हैं। प्रेमानंद महाराज एक सन्यासी हैं, जिनका उद्देश्य समाज को नैतिकता और आध्यात्मिकता की ओर प्रेरित करना है, न कि किसी को नीचा दिखाना। उनकी बातों को सही संदर्भ में समझने की बजाय, आलोचकों ने उन्हें गलत साबित करने के लिए हरसंभव प्रयास किया है।

इस पूरे प्रकरण से यह स्पष्ट होता है कि सनातन धर्म और इसके प्रतीकों के प्रति कुछ वर्गों की नफरत और पूर्वाग्रह कैसे समाज को भटका सकते हैं। प्रेमानंद महाराज के बयान को सही ढंग से समझने और प्रस्तुत करने की बजाय, आलोचकों ने इसे एक अवसर के रूप में इस्तेमाल किया, ताकि अपनी राजनीतिक या सामाजिक एजेंडा को आगे बढ़ाया जा सके।

समाज को ऐसे आलोचकों से सावधान रहने की जरूरत है, जो तथ्यों को तोड़-मरोड़ कर पेश करते हैं और सनातन धर्म के प्रति नकारात्मक भावना को बढ़ावा देते हैं। प्रेमानंद महाराज का बयान एक चिंताजनक सत्य को दर्शाता है, जिसे हमें गंभीरता से लेना चाहिए, न कि इसे राजनीतिक या सामाजिक एजेंडा के तहत तोड़-मरोड़ कर पेश करना चाहिए।

प्रेमानंद महाराज के बयान को सही संदर्भ में समझना और आलोचकों की मंशा पर सवाल उठाना आवश्यक है। उनकी आलोचना करने वालों को यह समझना चाहिए कि वे न केवल एक सन्यासी की छवि को धूमिल कर रहे हैं, बल्कि समाज में सत्य को दबाने और भ्रम फैलाने का काम भी कर रहे हैं। समय आ गया है कि हम तथ्यों को सही ढंग से समझें और अफवाहों से बचें।

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