-प्रणय विक्रम सिंह
यह कोई सामान्य गिरफ़्तारी नहीं थी। यह उस अदृश्य मानसिक युद्ध के पर्दे उठने का क्षण था, जिसमें आस्था को अस्त्र बनाकर अस्मिता पर आघात किया जा रहा था। प्रेम, पंथ और पैसा, इन 3P के सहारे चल रहा यह अवैध धर्मांतरण का ‘मजहबी मिशन’ विशुद्ध रूप से एक वैचारिक व सामरिक अतिक्रमण था, जिसमें हिंदू समाज की जड़ों को हिलाने की कुचेष्टा की जा रही थी।
*बलरामपुर से ब्रेनवॉश तक: छांगुर बाबा का छलावरण*
बलरामपुर की गलियों में वर्षों से एक अघोषित युद्ध चल रहा था। धर्मांतरण का छद्म युद्ध, जिसमें निशाना थी बेटियां। साधन था प्रलोभन और छल। उद्देश्य था भारत की आत्मा को विखंडित करना।
यूपी एटीएस व एसटीएफ द्वारा सहयोगी नीतू उर्फ नसरीन सहित बलरामपुर के मधपुर से गिरफ्तार 50 हजार का इनामी मास्टरमाइंड जमालुद्दीन उर्फ ‘छांगुर बाबा’ खुद को ‘पीर बाबा’ और ‘हज़रत जलालुद्दीन’ जैसे नामों से प्रचारित करता था। उसका नेटवर्क केवल एक व्यक्ति या स्थान नहीं, बल्कि एक विस्तृत मानसिक और मजहबी अभियान था। उसके मज़हबी चोले के पीछे एक वैश्विक एजेंडा छिपा था। भारत के भीतर से ही उसकी संस्कृति, उसकी बेटियों और उसकी चेतना को तोड़ने का प्रयास।
*मोह, मजहब और मनी: विदेशी फंडिंग से फैला फरेब का जाल*
छांगुर गिरोह के सदस्यों की 40 से अधिक बार इस्लामिक देशों की यात्राएं, 40 से ज्यादा बैंक खाते, ₹100 करोड़ की संदिग्ध फंडिंग, विदेशी संपर्क और मानसिक ब्रेनवॉश के लिए छपी किताबें, ये केवल तथ्य नहीं, फतवा रूपी फरेब के सबूत हैं। इन्हीं अवैध पैसों से बंगले, शोरूम और लग्जरी गाड़ियां खरीदी गईं। यह गिरोह धर्मांतरण को एक संगठित आर्थिक अपराध के रूप में संचालित कर रहा था। विदेशों से आई यह राशि धार्मिक उद्देश्य की आड़ में देश के भीतर सामाजिक अस्थिरता फैलाने में प्रयुक्त हो रही थी।
छांगुर गिरोह ने ‘प्रेमजाल’ को ब्रह्मास्त्र बनाया और हिंदू युवतियों को टारगेट कर धर्मांतरण का तंत्र खड़ा किया। ‘शिजर-ए-तैय्यबा’ जैसी पुस्तकों से मनोवैज्ञानिक जिहाद चलाया गया, जहां कथित सूफी भावनाओं की ओट में आस्थाओं को खंडित किया गया। यह किताब ब्रेनवॉश का मैनुअल थी, जो हिंदू युवतियों की मानसिक संरचना को ध्वस्त करने का षड्यंत्र था।
वह युवतियां जो कभी तुलसी के पौधे में जल चढ़ाती थीं, वे अब मानसिक रूप से दरगाह की जंजीरों में बंध चुकी थीं। यह धर्मांतरण नहीं, आत्मांतरण था, जिसमें चेतना को धीरे-धीरे छीन लिया गया।
*जाति के आधार पर ईमान की कीमत: धर्मांतरण की ‘रेट लिस्ट’*
धर्मांतरण के इस गिरोह ने पीड़िताओं की जाति के आधार पर ‘दरें’ तय कर रखी थीं। ब्राह्मण, क्षत्रिय और सिख लड़कियों के लिए ₹15-16 लाख, पिछड़ी जातियों के लिए ₹10-12 लाख, और अन्य वर्गों के लिए ₹8-10 लाख की राशि निर्धारित थी। यह आंकड़े स्पष्ट करते हैं कि यह धर्मांतरण न तो आस्था था, न आवश्यकता बल्कि यह एक बाज़ार था, जहां ईमान को बोली पर चढ़ाया जाता था। यह ‘रेट कार्ड’ ही साबित करता है कि इस षड्यंत्र का उद्देश्य किसी ईश्वरीय आस्था का विस्तार नहीं, बल्कि सांस्कृतिक अस्मिता का आर्थिक अपहरण था। लखनऊ निवासी गुंजा गुप्ता जैसे मामले इसकी भयावहता को सामने लाते हैं। यह ‘रेट कार्ड’ उस कलंक का प्रमाण है, जहां स्त्री का विश्वास बाजार में नीलाम हो रहा था।
*डर की दरगाह: जब धर्मांतरण में सहमति नहीं, सिर्फ साज़िश थी*
गिरोह का कार्य केवल प्रेमजाल में फंसाना नहीं था, बल्कि उसमें असहमति पर उत्पीड़न का उपकरण भी शामिल था।
यदि कोई लड़की धर्मांतरण से इनकार करती, तो उसे डराया जाता, बदनाम किया जाता, उसके विरुद्ध झूठे मुकदमे दर्ज कराने का भय दिखाया जाता। यह ‘लव जिहाद’ नहीं, लव-जाल-जिहाद था, जिसमें सुरक्षा और समृद्धि के सपनों के माध्यम से लड़की को मानसिक कैदी बनाया जाता था। यह कार्य न केवल समाज, बल्कि संविधान के विरुद्ध अपराध था। यह एक मानसिक और सामाजिक बलात्कार था।
*STF की सटीक सर्जरी: जब वर्दी बनी धर्म की प्रहरी*
इस समस्त प्रकरण में सबसे सराहनीय भूमिका उत्तर प्रदेश एसटीएफ ने निभाई है। STF ने न केवल गुप्त सूचनाओं को बारीकी से संकलित किया, बल्कि छांगुर बाबा जैसे खतरनाक व्यक्ति को पकड़ने के लिए जो तकनीकी दक्षता, मनोवैज्ञानिक परिपक्वता और सामरिक रणनीति अपनाई, वह देश भर की पुलिस इकाइयों के लिए अनुकरणीय उदाहरण है। इस केस में STF ने फंडिंग, पासपोर्ट रिकॉर्ड, संदिग्ध सोशल नेटवर्क और मोबाइल डाटा के माध्यम से अपराध के उस चेहरे को बेनकाब किया, जो ‘पीर’ की पोशाक में ‘पैसों के पैगंबर’ बने घूम रहा था। एसटीएफ ने दिखा दिया कि उत्तर प्रदेश अब धर्मांतरण के दलालों का नहीं, धर्म की गरिमा के रक्षकों का प्रदेश है। यह केवल गिरफ्तारी नहीं, अंतःकरण की सुरक्षा थी। यह दिखाता है कि यूपी पुलिस अब अपराध पर नहीं, अस्मिता पर अतिक्रमण को रोकने में सक्षम है।
मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ पहले ही स्पष्ट कर चुके हैं कि उत्तर प्रदेश में ‘लव जिहाद’, अवैध धर्मांतरण और विदेशी फंडेड षड्यंत्रों के लिए कोई स्थान नहीं है। इधर, UP STF और ATS की इस संयुक्त कार्रवाई ने स्पष्ट कर दिया है कि अब उत्तर प्रदेश की धरती पर न प्रेम के नाम पर प्रपंच चलेगा, न पंथ के नाम पर षड्यंत्र पनपेगा। यह केवल गिरफ़्तारी नहीं, एक चेतावनी है कि अब कानून केवल किताब नहीं, धर्म और न्याय का कटिबंध है।
छांगुर बाबा की गिरफ्तारी कोई अंत नहीं, यह शुरुआत है उस प्रक्रिया की, जहां सांस्कृतिक सुरक्षा, महिला अस्मिता और राष्ट्र की चेतना को एक सूत्र में बांधने का प्रयास हो रहा है। उत्तर प्रदेश यह संदेश दे चुका है कि अब ‘आस्था’ के नाम पर ‘अधर्म’ नहीं पनपेगा।
यह लड़ाई केवल एक गिरोह के विरुद्ध नहीं थी। यह संघर्ष था उस मानसिक उपनिवेशवाद के विरुद्ध, जो भारत को तोड़ना चाहता है, भीतर से, बगैर गोली के। पर योगी सरकार और उत्तर प्रदेश की एसटीएफ ने यह स्पष्ट कर दिया है कि अब न मजहबी मशीनरी चलेगी, न मजहबी मक्कारी।