कई बार ऐसा लगता है कि Press Club of India और Editors guild of India जैसी संस्थाएं पत्रकारों के हित में आवाज उठाने का धर्म भूल गई हैं, इसीलिए स्टेटमेंट जारी करने से पहले चेक करती हैं कि पीड़ित पत्रकार उनके खेमे का है या नहीं! उनके खेमे का पत्रकार नहीं होने से, वे दो शब्द कहते भी नहीं पीड़ित के पक्ष में। ऐसे में इन दोनों संस्थाओं पर कैसे विश्वास किया जाए?
ऐसे दर्जनों मामले हैं, जहां पीड़ित पत्रकार के पक्ष में प्रेस क्लब और एडिटर्स गिल्ड ने चुप्पी साध ली क्योंकि पीड़ित पत्रकारों की विचारधारा उनके न्याय के अधिकार की लड़ाई के आड़े आ गई।
जब देश में राष्ट्रीयता में विश्वास रखने वाले सैकड़ों की संख्या में पत्रकार और बड़ी संख्या में संपादक हैं फिर इस दिशा में प्रयास करके दो मजबूत संगठन भी खड़े नहीं किए जा सकते क्या? ऐसे संगठन जिनसे यह विश्वास किया जा सके कि वो अपनी लड़ाई में अकेले पड़ गए पत्रकारों का साथ देंगे। आवश्यकता पड़ी तो उनके समर्थन में सड़क पर उतरेंगे। सोशल मीडिया पर अभियान चलाएंगे।
महत्वपूर्ण बात यह भी है कि वह संगठन ऐसा हो, जो पीड़ित को न्याय दिलाने के संघर्ष के दौरान अपने-पराये का भेद ना करे।
इस दिशा में एक बार सोचने का यह समय है!