दिल्ली । अगस्त 2025 को गाजा में इजरायली रक्षा बलों (IDF) ने अल जजीरा के पांच पत्रकारों, जिनमें अनस अल-शरीफ शामिल था, को एक हवाई हमले में मार गिराया। IDF का दावा है कि अल-शरीफ हमास का एक सक्रिय सदस्य था, जो रॉकेट हमलों की योजना बनाता था। इजरायली सेना ने कहा, “प्रेस कार्ड आतंकवाद का ढाल नहीं हो सकता।” इस घटना ने पत्रकारिता और आतंकवाद के बीच की रेखा पर बहस को तेज कर दिया है।
अल जजीरा ने इस कार्रवाई की निंदा की, इसे “पत्रकारों के खिलाफ लक्षित हमला” करार दिया। नेटवर्क का कहना है कि उनके पत्रकार गाजा में युद्ध की रिपोर्टिंग कर रहे थे, और यह हमला प्रेस की स्वतंत्रता पर हमला है। गाजा में पत्रकारों की सुरक्षा लंबे समय से चिंता का विषय रही है। अंतरराष्ट्रीय संगठनों ने इस घटना की स्वतंत्र जांच की मांग की है, ताकि यह स्पष्ट हो सके कि क्या पत्रकार वास्तव में आतंकी गतिविधियों में शामिल थे।
IDF ने दावा किया कि उनके पास ठोस सबूत हैं, जिनमें खुफिया जानकारी शामिल है, जो अल-शरीफ को हमास की सैन्य गतिविधियों से जोड़ती है। हालांकि, ये सबूत सार्वजनिक नहीं किए गए हैं, जिससे संदेह बढ़ रहा है। दूसरी ओर, पत्रकारिता समुदाय का तर्क है कि युद्ध क्षेत्रों में पत्रकारों को निशाना बनाना अंतरराष्ट्रीय कानून का उल्लंघन है।
यह घटना इजरायल-हमास संघर्ष के व्यापक संदर्भ में देखी जा रही है, जहां दोनों पक्ष एक-दूसरे पर मानवाधिकार उल्लंघन का आरोप लगाते हैं। प्रेस की स्वतंत्रता और युद्ध क्षेत्रों में पत्रकारों की भूमिका पर यह घटना गंभीर सवाल उठाती है। क्या प्रेस की आड़ में आतंकी गतिविधियां संचालित हो रही हैं, या यह पत्रकारों को चुप कराने की रणनीति है? इस सवाल का जवाब जांच के बाद ही मिल सकता है।