पृथ्वी दिवस 2025: आगरा का पर्यावरणीय संकट, तुरंत कार्रवाई की जरूरत

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आगरा: इस साल पृथ्वी दिवस पर आगरा के पर्यावरणविदों और नदी कार्यकर्ताओं ने शहर की बिगड़ती हालत को लेकर गंभीर चेतावनी दी है। ताजमहल के शहर में बजती ये खतरे की घंटी दरअसल पूरी दुनिया के सामने मौजूद पर्यावरणीय संकट की ओर इशारा करती है। जलवायु परिवर्तन, प्रदूषण और अंधाधुंध विकास से धरती को बचाने के लिए तुरंत ठोस कदम उठाने की जरूरत है।

पर्यावरणविद डॉ देवाशीष भट्टाचार्य कहते हैं, “आगरा की हवा और पानी की गंदगी, सूखती नदियाँ और घटते हरे-भरे इलाके पूरी दुनिया के सामने मौजूद चुनौतियों का एक छोटा सा नमूना पेश करते हैं। यमुना नदी जो शहर की जीवनरेखा रही है, आज मौत के कगार पर पहुँच चुकी है। नदी का सूखा हुआ तल और रेत-कीचड़ से भरी तलहटी हवा को जहरीला बना रहा है, जिसमें गाड़ियों से निकलने वाला धुआँ हालात को और बिगाड़ रहा है।”

ताज ट्रैपेज़ियम जोन के ताजा आँकड़े बताते हैं कि हवा में जहरीले कण सुरक्षित सीमा से तीन गुना ज्यादा हैं। सल्फर डाइऑक्साइड और नाइट्रोजन डाइऑक्साइड का स्तर भी लगातार बढ़ रहा है। ये जहरीली हवा न सिर्फ आगरावासियों की सेहत के लिए खतरा है, बल्कि ताजमहल जैसी विश्व धरोहर को भी नुकसान पहुँचा रही है जो धूल और धुएँ की चादर में लिपटता जा रहा है।

बायो डायवर्सिटी विशेषज्ञ डॉ मुकुल पांड्या के मुताबिक “इस संकट की जड़ में अनियंत्रित उद्योगीकरण और अव्यवस्थित शहरीकरण है। पैसा कमाने की होड़ ने जीवन की गुणवत्ता को पूरी तरह बिगाड़ दिया है। नगर निगम द्वारा पानी के रिसने वाली जगहों को सीमेंट और कंक्रीट से ढकने के कारण बारिश का पानी जमीन में नहीं जा पा रहा, जिससे भूजल स्तर लगातार गिर रहा है।”

रिवर कनेक्ट कैंपेन के सदस्यों ने प्रकृति के पंचतत्वों के बीच सामंजस्य बहाल करने पर जोर दिया। उन्होंने कम इस्तेमाल, रीसाइक्लिंग और यूज़ एंड थ्रो संस्कृति को छोड़ने की अपील की। साथ ही शहरों में वर्षा जल संचयन को अनिवार्य बनाने और प्रकृति के अनुकूल नीतियाँ बनाने की माँग की।

हालात की गंभीरता को देखते हुए विशेषज्ञों ने चेतावनी दी है कि अगर अभी नहीं चेते तो आने वाले दिनों में स्थिति और भयावह हो सकती है। बढ़ती गाड़ियाँ और फैक्ट्रियों का धुआँ ग्लोबल वार्मिंग को बढ़ावा दे रहा है। जलवायु परिवर्तन से असामान्य मौसम, पानी की कमी और पारिस्थितिकी तंत्र को गंभीर खतरा पैदा हो गया है। यमुना की दुर्दशा दरअसल दुनिया भर की नदियों की त्रासदी का हिस्सा है जो प्रदूषण और अत्यधिक दोहन से मर रही हैं, सोशल एक्टिविस्ट पद्मिनी कहती हैं।

इस संकट से निपटने के लिए तत्काल कई कदम उठाने की जरूरत है। सरकारों और नगर निकायों को उद्योगों और वाहनों पर सख्त नियम बनाने होंगे। साथ ही साफ ऊर्जा और सार्वजनिक परिवहन को बढ़ावा देना होगा, कहते हैं प्रकृति प्रेमी हरि दत्त शर्मा।

हरित कार्यकर्ता प्रदीप के मुताबिक “शहरी योजनाओं में हरित क्षेत्रों और पानी के रिसाव वाली जगहों को प्राथमिकता देनी होगी। पानी की बचत को एक सामाजिक आदत बनाना होगा। हर व्यक्ति को कम बर्बादी, रीसाइक्लिंग और टिकाऊ जीवनशैली अपनानी होगी।”

पृथ्वी दिवस पर आगरा ने जो संदेश दिया है वो साफ है – धरती को बचाने के लिए सबको मिलकर काम करना होगा। चाहे वो सरकारी नीतियाँ हों या हमारी रोजमर्रा की जिम्मेदारियाँ। अगर अभी संजीदा होकर कदम उठाएँ तो हम संतुलन बहाल कर सकते हैं, अपनी विरासत बचा सकते हैं और आने वाली पीढ़ियों के लिए एक बेहतर धरती छोड़ सकते हैं।

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Brij Khandelwal

Brij Khandelwal

Brij Khandelwal of Agra is a well known journalist and environmentalist. Khandelwal became a journalist after his course from the Indian Institute of Mass Communication in New Delhi in 1972. He has worked for various newspapers and agencies including the Times of India. He has also worked with UNI, NPA, Gemini News London, India Abroad, Everyman's Weekly (Indian Express), and India Today. Khandelwal edited Jan Saptahik of Lohia Trust, reporter of George Fernandes's Pratipaksh, correspondent in Agra for Swatantra Bharat, Pioneer, Hindustan Times, and Dainik Bhaskar until 2004). He wrote mostly on developmental subjects and environment and edited Samiksha Bharti, and Newspress Weekly. He has worked in many parts of India.

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