पब्लिक के लिए व्यवस्था का पब्लिक धज्जी उड़ा देगा, दीदी ई बिहार है

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रेखा सिंह

पटना। बीते जून माह में मैं पटना आई थी और किसी काम के लिए राजा बाजार गई थी। राजा बाजार मेरे घर से नज़दीक ही पड़ता है, इसलिए पटना आने पर मैं शॉपिंग के लिए वहीं जाना उचित समझती हूं।

हुआ यूं कि उस दिन मैं कोई ज़रूरी सामान लेने राजा बाजार गई और समान लेकर घर जल्दी वापस आना था इसलिए कैब बुक की, लेकिन कैब आने में दस मिनट लेट दिखा रहा था तबतक मेरी नज़र सामने से आती पिंक बस पर गई, जिसके बारे में कुछ दिन पहले ही अख़बार में पढ़ी थी- ‘ कि पटना में अब महिलाओं के लिए पिंक बस की सुविधा शुरू की गई है,जिससे महिलाओं को यातायात करने में काफी सुगमता होगी’। मैं समझ गई कि यही वो पिंक बस है, तो क्यों न इसी बस से आज घर का रुख किया जाय! मैं झट से सड़क के उस पार चली गई और बस के पहुंचने से पहले वहां जाकर खड़ी हो गई । बस – स्टॉप तो अभी भी पटना में हर जगह निर्धारित नहीं की गई है, इसलिए कहीं भी हाथ दिखाने पर बस रुक जाती है। मुझे अंदाजा था कि जहां मैं खड़ी हुई हूं बस वहां ज़रूर रुकेगी और बस रुक भी गई। बस रुकते ही महिला कंडक्टर ने हाथ बढ़ाकर कर बोली –  आईए, मैडम! कहां जाना है आपको? गोला रोड, आरपीएस मोड, शगुना मोड़, कहां ?

– जी, मुझे गोला रोड जाना है। यह बोलकर मैं बस के अंदर चली गई। अंदर भीड़ थी। सारे सीट भर चुके थे और कुछ महिलाएं हैंगर पकड़ कर खड़ी  थीं। मैं भी जाकर उनके पीछे खड़ी हो गई। बस अपने अगले पड़ाव के लिए निकल पड़ी।

मैं भी हैंगर पकड़े खड़ी – खड़ी ये पिंक बस की विशेष सुविधाएं के साथ – साथ महिला कंडक्टर को देखकर खुश हो रही थी। मन ही मन सोच रही थी कि अब बिहार में हर वर्ग की महिलाएं हर क्षेत्र में अपना अधिकार और कर्तव्य सुनिश्चित ही नहीं करा रहीं, बल्कि बढ़ – चढ़कर अपना योगदान भी दे रही हैं!  

मैं,बिहार में पहली बार किसी महिला को बस कंडक्टर के  कार्य- भार को संभालते देख रही थी। वो महिला आत्मविश्वास और ज़िम्मेदारी से भरी हुई दिख रही थी! यूनिफार्म तो नहीं पहन रखी थी उसने नार्मल सारी ही पहनी हुई थी लेकिन बिहारी पुरुष कंडक्टर से थोड़े कम, लेकिन ऊंची आवाज़ में हर पड़ाव आने से पहले यात्रियों को आगाह कर रही थी चढ़ने – उतड़ने के लिए।अगला पड़ाव आया और बस रुक गई। तकरीबन दस महिलाओं की एक झुंड दनादन बस में घुस गई। श्रीमती कंडक्टर जी ने उन सारी महिलाओं का  टिकट काटना शुरू किया।महिलाओं के झुंड में से एक महिला पीछे से हाथ बढ़ाकर कुछ पैसे कंडक्टर जी के हाथ थमा दीए। कंडक्टर जी,  पैसे गिनने लगी और गिनने के बाद बोली  ” ई त’  मात्र पांच लोक के ही टिकट के पैसा दिए हैं जी, आरो पैसवा न दीजिए?

झुंड से दूसरी महिला बोली – अरे, रख लो जी! हमलोग त’ रोजे आते – जाते हैं बसबा से ऐतने पैसबा देते हैं और कोई कुछ नहीं बोलता है! और तू केतना  हुज्जत करती हो…नया कंडक्टर बनी हो का?

अब महिला कंडक्टर जी, बोलने लगी ” देखिए आपलोग ऐसे कीजियेगा तो कैसे होगा? हमको भी अगीला को हिसाब देना पड़ता है न ? हम कहां से देंगे पैसबा, अपना बाप घर से लाएंगे का?

 -” तुमको बताना पड़ता है…किसको जी?”

उसी झुंड की तीसरी महिला बोली!

– किसको? जानते नहीं हैं? कंडक्टर, इस बात को बोलकर थोड़े पीछे सरक कर खड़ी हो गई! लेकिन झुंड से अभी भी आवाज़ आ ही रही थी। पीछे बैठी सभी महिलाएं, साथ में मैं भी ये सब तमाशा देख रही थी ।

मामला थोड़ा गंभीर होने लगा था। कंडक्टर जी अकेली और वे पूरी झुंड थीं। दसो महिला का मुंह पक – पक चल ही रहा था।

अब कंडक्टर जी थोड़ा और गर्म होकर थोड़ी सख़्त आवाज़ में बोलना शुरू की –

” मैडम, पैसबा दीजिए, नहीं तो बस से उतर जाइए”
– नहीं उतरूंगी, क्या करोगी तुम ?

झुंड से एक महिला बोली।
अब बेचारी कंडक्टर जी, करती भी तो क्या करती?
वो ड्राईवर के तरफ़ देख रही थी और ड्राइवर साहेब को ज़रा सा भी फ़र्क नहीं पड़ रहा था इन हल्ला, चिल्ली से। और फ़र्क पड़ता भी तो क्यों? ये सब सुनना तो शायद उनका प्रतिदिन के आदतों में शुमार होगा, इसलिए वे बस ‘ बस’ के स्टीयरिंग थामे बस को अपनी रफ़्तार में भगाए जा रहे थे।
इधर झुंड और कंडक्टर जी के बीच बहस जारी ही थी। इतने में तपाक से झुंड से सबसे पीछे खड़ी महिला जिसने टिकट के पैसे दिए थे,वो एकदम कंडक्टर जी पर चढ़ कर बोली-

” तू जानत न हवा हमनी के, हम के हैं ? हम सब पार्टी के कार्यकर्ता हैं ..हमनी से पैसा मांगोगी तुम?
सच में, मैं इस तरह की “महिला” रंगदार नेताइन पहली बार देखी थी। उल्टा चोर कोतवाल को डांटे! ये कहावत एकदम चरितार्थ हो रहा था। अब कंडक्टर जी, भींगी बिल्ली की तरह एक – दो बार और म्याऊं , म्याऊं करके चुप हो गई। मुझसे ये बिल्कुल देखा नहीं गया ! मैं आगे बढ़ी और उस झुंड को बड़े इत्मीनान से बोली ” आप सब ख़ुद को किसी ख़ास पार्टी की कार्यकता कहकर फ्री में सरकारी सेवा का फायदा उठा रही हैं, और टिकट मांगने पर उल्टा कंडक्टर को उल्टा – सीधा सुना रही हैं ये कैसा तरीका है? आप लोग ही ऐसा करेंगी तो बाकी लोग क्या करेंगे? आपलोग सरासर गलत कर रही हैं? मुझे बोलते देख पीछे से कुछ और महिलाएं उन नेताइन महिलाओं पर बरस पड़ी ” आप जैसे लोगों के कारण ही ये सुविधा भी सरकार बंद कर देगी। फ्री में कब तक सुविधा देती रहेगी?

वे सारी महिलाएं मतसुन होकर हमारी बातें सुन रही थी, जैसे कुछ हुआ ही नहीं है। इतने में उनके पड़ाव आ गए और वे सारी भड़भड़ा कर उतर गईं।
मुझे बहुत हैरानी नहीं हुई इस बात से क्योंकि अभी भी बिहार में बेटिकट यात्रा करना लोग अपना अधिकार समझते हैं! मुझे उस समय थोड़ी हैरानी इस बात की हुई थी कि वे सारी महिलाएं,किसी ख़ास दल की कार्यकर्ता कहकर अपना धौंस दिखाकर पिंक बस में फ़्री में यात्रा कर रहीं थीं, जिसका किराया पहले से ही न्यूनतम रखी गई है,वो उतना भी पे नहीं कर सकती थी?

मैं तो कहूंगी लानत है ऐसे लोगों पर!
अब हमारा पड़ाव भी आनेवाला ही था। श्रीमती कंडक्टर जी, चुपचाप सीट के सिरहानी पकड़ कर खड़ी थी। मेरी नज़र उन से मिली! मैं मुस्कुराई तो उन्होंने भी मुस्कुराकर ही मेरे मनोभाव का आदर किया।

मैंने उनसे कहा – “आपको बधाई ” आपने बहुत हिम्मत वाला जॉब चुना है! क्योंकि मैंने महसूस किया है कि बिहार में महिला कंडक्टर का जॉब करना आसान काम नहीं है!

श्रीमती कंडक्टर जी ने मुझे “थैंक्स” बोली और साथ ही ये भी कही ” मैडम जी, ई बिहार है, यहां की सरकार पब्लिक के लिए कोनो व्यवस्था कर दे, लेकिन पब्लिक उस व्यवस्था का धज्जी उड़ा ही देती है।

– हां, ये बात तो है! पब्लिक और पॉलिटीशियन दोनों को जिम्मेदार होना होगा तभी कोई सिस्टम या सुविधा सुचारू रूप से चलेगा।
–  जी, मैडम!

मैडम जी, आपको हिएं न उतरना है, गोला रोड?

जी, जी यही उतरना है!

‘ बस’ अपने निर्धारित पड़ाव पर आकर रुकी, जहां मुझे उतर जाना था सो मैं उतर गई मन में कई सारे सवाल, जवाब और विचार लिए।
ओह! बिहार में” पिंक बस “का संस्मरण लिखते समय चूल्हे पर चावल चढ़ा रखी थी, लेकिन लिखने के धुन में इतनी बेसुध थी कि भात सहित पूरी केतली ही जल गई! जलने की बू आई तो मुझे लगा बाहर किसी ने कुछ जलाया होगा शायद! लेकिन जब किचन से धुआं निकलने लगा तब याद आया कि “हे भगवान मैंने तो चूल्हे पर भात पकने को रख आई थी!

ख़ैर….इस में लेखन का क्या दोष?

 (सोशल मीडिया से)

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