बिहार में तेजस्वी को हाफ-यादव कहा जाने लगा है। प्रदेश के यादव परिवारों में अब जैसी लालू प्रसादजी की लोकप्रियता थी। वह तेजस्वी की नहीं रही। इसकी एक वजह रशेल गोडिन्हो से उनकी शादी है। उनके मामा और चाचा परिवार के लोग इस शादी के लिए तैयार नहीं थे। अभी भी बिहार के हिन्दू ओबीसी परिवारों में शादी को दो लोगों का नहीं बल्कि दो परिवारों का मिलन माना जाता है। यहां जाति और गोत्र को बहुत महत्व मिलता है। तेजस्वी की शादी में ना गोत्र देखा गया और ना ही जाति मिलाई गई। बताया जाता है कि इस शादी के लिए परिवार (संयुक्त) तैयार नहीं था।
अब यदुवंशी राजकुमार क्रिश्चियन परिवार में शादी करके आया है तो यादव समाज के बीच इसको लेकर बात तो होगी ही। अभी बिहार का समाज ऐसी शादियों को स्वीकार करने के लिए तैयार नहीं है।
इससे पहले भी लालूजी ने अपना उत्तराधिकार बड़े बेटे को ना देकर छोटे बेटे को दिया, उस समय भी परिवार के बीच इस बात को लेकर चर्चा हुई थी कि बड़े बेटे के जीवित रहते छोटे बेटे को राजनीतिक उत्तराधिकार देना यदुवंशी परंपरा नहीं है। माता पिता के जीवित रहते, अब तेजस्वी अपनी पसंद से क्रिश्चियन बहू ले आया है।
ओबीसी समाज के बीच तेजस्वी के उप मुख्यमंत्री बनते ही कन्वर्जन बढ़ा और हिन्दू समाज को लेकर पार्टी के अंदर खूब अनर्गल बयानबाजी हुई। श्रीराम और श्रीरामचरित मानस को लेकर अपशब्द कहने वाले नेता तेजस्वी के सबसे प्रिय नेताओं में आज भी शामिल हैं। राजद के अंदर जो नेता ऐसे बयान दे रहे थे, बिहार के क्रिश्चियन लॉबी से भी उन्हें पूरा समर्थन मिल रहा था। यही लॉबी बिहार में तेजस्वी को मुख्यमंत्री बनाने के लिए एकजुट है।
अब बिहार के यादवों के बीच ही यह बात हो रही है कि जो लालू प्रसादजी अपनी बेटी के प्रेम विवाह के लिए तैयार नहीं थे, अचानक बेटे के समय ऐसा क्या हुआ कि उन्होंने अपनी सहमति दे दी। क्या अपने ही परिवार के अंदर लालू प्रसाद अब कमजोर पड़ गए हैं?