
सीमा सड़क संगठन के सेवानिवृत्त निदेशक उदय शंकर श्रीवास्तव ने राहुल के इस बयान को मानहानिकारक बताते हुए उनके खिलाफ परिवाद दायर किया। यह बेहद दुखद है कि एक जिम्मेदार नेता, जो देश के एक प्रमुख राजनीतिक परिवार से ताल्लुक रखते हैं, ऐसी गैर-जिम्मेदाराना बात कहते हैं, जो हमारे सैनिकों की वीरता और बलिदान का अपमान करती है। लेकिन इससे भी ज्यादा शर्मनाक है राहुल गांधी का कोर्ट में पेश होने का तरीका। 15 जुलाई को लखनऊ कोर्ट में वे न केवल बिना किसी शर्मिंदगी के पहुंचे, बल्कि एक बड़ी भीड़ के साथ शक्ति प्रदर्शन करते हुए दिखे। कांग्रेस की आईटी सेल ने उनकी मुस्कुराती हुई तस्वीर को सोशल मीडिया पर वायरल कर दिया, जैसे कि यह कोई गर्व का क्षण हो। कोर्ट जैसे गंभीर स्थान पर ऐसी पीआर तस्वीरें खिंचवाना और उन्हें प्रचारित करना क्या यह दर्शाता नहीं कि राहुल गांधी को अपने कृत्य पर कोई पश्चाताप नहीं है?
यूजर योगेश दूबे ने ठीक ही लिखा कि भारतीय सेना का अपमान करने वाले राहुल गांधी को बार-बार कोर्ट में बुलाए जाने के बावजूद वे समय पर हाजिर नहीं हुए। और जब हाजिर हुए, तो महज 20,000 रुपये की जमानत पर छूट गए। यह हमारी न्याय व्यवस्था पर सवाल उठाता है। क्या एक रसूखदार परिवार से होने के कारण राहुल को विशेष छूट मिल रही है? कोर्ट में उनकी तस्वीर और कथित तौर पर जज के साथ सेल्फी की बात जनता के बीच आक्रोश पैदा करती है। यह न केवल न्यायपालिका की गरिमा को ठेस पहुंचाता है, बल्कि आम लोगों का भरोसा भी कमजोर करता है।
राहुल गांधी को समझना चाहिए कि भारतीय सेना देश का गौरव है। उनके जैसे नेताओं को अपनी वाणी पर संयम रखना चाहिए। सुप्रीम कोर्ट और राष्ट्रपति को इस मामले में संज्ञान लेकर यह सुनिश्चित करना चाहिए कि न्याय व्यवस्था की गरिमा बरकरार रहे और कोई भी व्यक्ति, चाहे वह कितना भी रसूखदार हो, देश की सेना का अपमान करने की हिम्मत न करे।