सुरेन्द्र चतुर्वेदी
जयपुर : कांग्रेस अब राजनीतिक रूप से बीते कल की बात होने जा रही है। *ऐसा लगता है कि बिहार चुनाव किसी भी राजनीतिक गठबंधन के साथ उसका आखिरी चुनाव होगा। पश्चिम बंगाल में ममता बनर्जी कांग्रेस को गांठती नहीं और उत्तरप्रदेश में अखिलेश यादव बिहार चुनाव के परिणाम के बाद किनारा कर लेंगें। कारण यह नहीं है कि कांग्रेस राजनीतिक पार्टी के रूप में महत्वहीन हो चली है, इसका बड़ा कारण तो यह है कि कांग्रेस राजनीतिक रूप से एक के बाद एक ऐसी गलतियां करती जा रही है, जो सहयोगी राजनीतिक दलों का बड़ा नुकसान कर रही है।* उस पर कांग्रेस नेतृत्व का अहंकार इतना कि वो गलतियों को सुधारने और उस पर क्षमायाचना करने की बजाय उन गलतियों को बढ़ावा देने में अपनी राजनीतिक कुशलता समझते हैं।
ताजा मामला प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की स्वर्गीय मां को अपमानित करने का है। *कांग्रेस और उनके रणनीतिकारों को साधारण सी यह बात समझ में नहीं आती कि जब जब उन्होंने प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी पर व्यक्तिगत हमला किया है, हर बार उन्होंने अपनी हार को ही सुनिश्चित किया है।* मौत का सौदागर, चाय बेचने वाला, मोदी की जाति और मोदी को चोर बताने से लेकर अब उनकी स्वर्गीय मां को अपमानित करने का है। इन सबसे कांग्रेस का तो कुछ बिगड़ेगा नहीं लेकिन बिहार में राष्ट्रीय जनता दल को जरूर नुकसान उठाना पडे़गा। इसके अतिरिक्त कांग्रेस नेतृत्व द्वारा उठाए जा रहे मुद्दे भी जनता के बीच स्वीकार्य नहीं हो रहे हैं। वोट चोरी का आरोप तो कांग्रेस को हास्यास्पद स्थिति में ले जा रहा है। जिन जिन लोगों को राहुल गांधी ने वोट चोरी का पीड़ित बताकर मीडिया के सामने प्रस्तुत किया वो सभी फर्जी साबित हो गए। बिहार से ही ऐसे लोग सामने आ गए जिन्होंने माना कि उन्होंने कांग्रेस के लिए बूथ के बूथ लूटे थे।
राजनीतिक समीक्षक यह मानने लगे हैं कि कांग्रेस राहुल गांधी की तुनकमिजाजी, अहंकार और मनमर्जी के दबाव में धीरे धीरे दम तोड़ रही है। यह बात इस तथ्य से भी प्रमाणित होती है कि *जिन जिन राज्यों में कांग्रेस के क्षत्रप प्रभावी हैं, वहां राहुल गांधी का प्रभाव शून्य है।* चाहे राजस्थान में अशोक गहलोत हों, छत्तीसगढ़ में भूपेश बघेल या मध्यप्रदेश में कमलनाथ या तेलंगाना में रेवन्त रेड्डी ही क्यों ना हों ? कर्नाटक में भी सिद्धारमैया और डी के शिवकुमार समय समय पर राहुल गांधी का पानी नापते रहते हैं। तो कुल मिलाकर राहुल गांधी ना केवल कांग्रेस, सहयोगी राजनीतिक दल बल्कि गांधी परिवार की भी राजनीतिक विरासत और संपत्ति के लिए भार साबित हो रहे हैं। राजनीतिक रूप से कांग्रेस की यह परिस्थिति भारतीय जनता पार्टी के लिए वरदान साबित हो रही है।
दरअसल, *पूरी की पूरी कांग्रेस राहुल गांधी के आगे चुप और लाचार है। इस कारण ना तो वो मतदाता की नब्ज पकड़ पा रही है और ना ही ऐसे मुद्दे ही उठा पा रही है, जिससे जनता में उनकी उपस्थिति दर्ज हो। कांग्रेस को समझ ही नहीं आ रहा है कि हिन्दू द्रोही मानसिकता के कारण देश का बड़ा मतदाता वर्ग उससे दूर जा चुका है।* जातिगत जनगणना की कांग्रेसी मांग को भी मतदाताओं ने हिन्दुओं को विभाजित करने वाला कदम ही माना। इसके अलावा मुस्लिम मतदाताओं को लुभाने के लिए जिस तरह की रणनीति पर कांग्रेस काम कर रही है उससे देश भर में मतदाताओं के बीच यह संदेश जा रहा है कि कांग्रेस मुस्लिम वोट पाने के लिए बंगलादेशी घुसपैठियों और रोहिन्गयाओं को भी देश का तानाबाना छिन्न भिन्न करने देने के पक्ष में है। इसीलिए वो चुनाव आयोग द्वारा मतदाता पहचान के लिए संचालित अभियान एस आई आर का विरोध कर रही है।
तो अब कांग्रेस को यह सोचना है कि वो राजनीतिक दृष्टि से हाशिए पर जाना चाहती है या एक सशक्त विपक्ष के रूप में देश की राजनीतिक सहभागिता में अपना अस्तित्व बनाए रखना चाहती है।
(लेखक सेंटर फॉर मीडिया रिसर्च एंड डवलपमेंट से सम्बद्ध हैं)