भोपाल। निर्भीक पत्रकारिता की मिसाल रहे स्व. राजकुमार केसवानी की स्मृति में दिए जाने वाले प्रतिष्ठित राजकुमार केसवानी सम्मान से इस वर्ष जानी-मानी टीवी पत्रकार ऋचा अनिरुद्ध को सम्मानित किया गया।
सप्रे संग्रहालय में बुधवार को आयोजित इस गरिमामयी समारोह में उन्हें 1 लाख रुपए की सम्माननिधि प्रदान की गई। समारोह में देश के कई प्रमुख लेखक, पत्रकार और साहित्यकार मौजूद रहे।
संग्रहालय के संस्थापक निदेशक विजयदत्त श्रीधर ने कहा कि स्व. केसवानी साहस और संवेदना के प्रतीक थे। भोपाल गैस त्रासदी आने से पहले जिस तरह उन्होंने सरकार और समाज को चेताया था, वही असली पत्रकारिता है। उनकी बेखौफ लेखनी आज भी नई पीढ़ी के लिए आदर्श है।
पत्रकारों–लेखकों ने साझा की यादें
कार्यक्रम की शुरुआत लेखक नीलोत्पल मृणाल जी ने की। उन्होंने कहा“सत्ता से सवाल पूछना और नीतियों का परीक्षण करना ही सच्ची पत्रकारिता है। केसवानी जी का लिखा आज भी लोगों के दिलों में दर्ज है।” उन्होंने कविता भी सुनाई।
लेखक दिव्य प्रकाश दुबे जी बोले
“हम केसवानी जी को यह बता भी नहीं पाए कि हम उनके कितने बड़े प्रशंसक हैं। आज की पत्रकारिता को उनकी बेखौफी से सीखना चाहिए।”
निर्देशक-लेखक, अभिनेता बलराज स्याल जी ने कहा

“मैं कभी केसवानी जी से मिल नहीं पाया, लेकिन उनका पहला लेख ‘बचा लीजिए हुजूर’ हर पत्रकार छात्र को पढ़ना चाहिए।”
कवि-पत्रकार उदय प्रकाश जी ने कहा—
“व्यक्ति प्रचार से नहीं, इतिहास से जन्म लेता है। केसवानी जी ने जो किया, वह असंभव-सा था। उनमें समय से पहले आने वाली घटनाओं को देखने की अद्भुत क्षमता थी।”
“यदि पत्रकारिता गिर रही है, तो समाज भी जिम्मेदार” ऋचा अनिरुद्ध
सम्मान ग्रहण करते हुए ऋचा अनिरुद्ध ने कहा
“यदि पत्रकारिता का स्तर गिर रहा है, तो समाज भी इसकी जिम्मेदारी से मुक्त नहीं है। कई बार ऐसी स्टोरियां करनी पड़ीं जो मन से नहीं थीं, लेकिन समाज ने उन्हें सराहा। बदलाव लाना है, तो खुद को बदलना पड़ेगा।”
51 हजार रुपए की नई स्कॉलरशिप की घोषणा
माखनलाल चतुर्वेदी राष्ट्रीय पत्रकारिता एवं संचार विश्वविद्यालय के कुलगुरु श्री विजय मनोहर तिवारी ने कहा कि उन्हें दैनिक भास्कर में केसवानी जी के साथ काम करने का सौभाग्य मिला।
“हम भाग्यशाली थे कि उनका ‘आपस की बात’ कॉलम छपने से पहले पढ़ लेते थे। उनकी भाषा और तेवर अद्वितीय थे।”
उन्होंने यह भी बताया कि केसवानी जी के 75वें जन्मदिवस पर उनके परिवार ने घोषणा की है कि विश्वविद्यालय के अंतिम वर्ष के उस विद्यार्थी को 51 हजार रुपए का पुरस्कार दिया जाएगा, जो भाषा, लेखन और तेवर की उनकी परंपरा को आगे बढ़ाएगा।
मेरी भूमिका, मेरा रिश्ता और मेरा अनुभव — एक भावपूर्ण विस्तार
“इस वर्ष के राजकुमार केसवानी सम्मान समारोह में एक विशेष सौभाग्य मुझे प्राप्त हुआ। अपने गुरु, अपने प्रेरणास्रोत राजकुमार केसवानी जी के 75वें जन्मदिवस पर आयोजित इस गरिमामयी शाम का संचालन स्वयं करने का।
देश के कई बड़े मंचों पर संचालन करने का अनुभव रहा है, लेकिन यह मंच मेरे लिए कुछ और ही था
क्योंकि यह मेरे उस्ताद का मंच था।
मैंने फिल्म पत्रकारिता और इंटरव्यू कौशल उन्हीं से सीखा। उनकी डाँट ने मुझे अनुशासन दिया, उनके स्नेह ने मुझे व्यक्तित्व दिया। इसलिए यह शाम मेरे लिए केवल दायित्व नहीं, एक भावनात्मक यात्रा थी।
इस संचालन में मेरे साथ मेरी प्यारी छोटी बहन और
जानी-मानी एंकर मौलश्री भी थीं। उसका साथ, उसका आत्मविश्वास और हमारा तालमेल पूरे कार्यक्रम की गरिमा बन गया। समारोह के बाद जब वरिष्ठ पत्रकारों और विद्यार्थियों ने हमारे समन्वय की सराहना की—तो मन भर आया।
शुरुआत का जो हल्का-सा डर था, वह सबके आशीर्वाद से मधुर संतोष में बदल गया।
और संचालन पूरा होते ही विश्वविद्यालय के कुलगुरु, आदरणीय विजय मनोहर तिवारी जी स्वयं खड़े हुए और अत्यंत आत्मीयता से बोले
“राजेश, बहुत अच्छा संचालन करते हो।”
उनका यह वाक्य मेरे लिए प्रशंसा भर नहीं था; यह उस मेहनत, उस संवेदना और उस संवादशीलता पर लगी मुहर था, जिसने पूरे कार्यक्रम में एक लय और गरिमा पैदा की।

इस पूरे आयोजन में माधवराव सप्रे स्मृति समाचार पत्र संग्रहालय एवं शोध संस्थान के संस्थापक पद्मश्री आदरणीय विजयदत्त श्रीधर जी का स्नेह और मार्गदर्शन मेरे लिए ऊर्जा बने रहे।
उनका आशीर्वाद मेरे हर शब्द की आत्मा था।
साथ हीसुनीता केसवानी आंटी, रौनक, जिज्ञासा, मनीष समंदर भैया, रचना समंदर दीदी, देवेन्द्र गोरे भाई,
गौरव तिवारी भाई इन सभी का सहयोग आयोजन की आत्मा था।
मेरे संपादक रह चुके देशभके वरिष्ठ पत्रकार श्री आनंद पाण्डेय सर का वह वाक्य—
“राजेश, बहुत अच्छा संचालन करते हो”
मेरी स्मृति में अंकित एक स्थायी आशीर्वाद बन गया।
मेरे विद्यार्थी मेरा गर्व
मैं माखनलाल चतुर्वेदी राष्ट्रीय पत्रकारिता एवं संचार विश्वविद्यालय में जर्नलिज़्म विभाग में फैकल्टी के रूप में पढ़ाता हूँ। इस कार्यक्रम में मेरे विद्यार्थियों ने मंच पर बैठे वरिष्ठ अतिथियों से जो सार्थक, प्रासंगिक और संवेदनशील प्रश्न पूछे
उन्हें देखकर मेरे भीतर एक शिक्षक का गर्व उमड़ पड़ा।
उनके प्रश्न किसी पेशेवर पत्रकार की तरह पैने, स्पष्ट और विचारशील थे।
मैंने दिल से कहा
“अपना, अपने परिवार का और विश्वविद्यालय का नाम यूँ ही रोशन करते रहो।”
तीन विश्वविद्यालयों से आए विद्यार्थियों के लिए यह शाम बनी मास्टरक्लास
मेरे निमंत्रण पर जागरण लेकसिटी यूनिवर्सिटी के दिवाकर शुक्ला सर, एलएनसीटी यूनिवर्सिटी की अनु श्रीवास्तव मैडम, और मानसरोवर यूनिवर्सिटी की सुधा मैडम अपने मीडिया विद्यार्थियों को लेकर आए।
उन विद्यार्थियों के लिए यह शाम एक जीवंत मास्टरक्लास बन गई
जहाँ उन्होंने केसवानी जी की परंपरा,
वरिष्ठों के संस्मरण,
पत्रकारिता की संवेदना
और लेखन के गहरे पक्षों को करीब से महसूस किया।
समापन
यह समारोह केवल एक सम्मान समारोह नहीं था
यह एक विरासत की यात्रा थी,
एक गुरु-परंपरा का पुनर्स्मरण था,
और नई पीढ़ी के सपनों को नई उड़ान देने वाला क्षण था।
और उसके केंद्र में मैं था—
एक विद्यार्थी, एक शिक्षक, एक संचालक—
जो अपने गुरु की दी हुई परंपरा को
हर मंच पर, हर संवाद में,
पूरी निष्ठा से जीता हूँ।
(रिपोर्ट श्री गाबा के सोशल मीडिया पेज से साभार)



