ऋषभ कुमार
इसे साउथ सिनेमा का समय कहा जा सकता है। क्योंकि वहां नये-नये विषयों या फिर पुराने विषयों को लेकर नए और इनोवेटिव तरीकों से गड़ते हुए सिनेमा का निर्माण किया जा रहा है। इसी दौर में जब बॉलीवुड के बारे में यूट्यूबर शतीश राय अपने फेक पॉडकास्ट में सटायर करते हुए कहते हैं कि “बॉलीवुड एकदम ऑरिजनल रीमेक बनाता है” अब ऑरिजनल का तो पता नहीं पर रीमेक बनाने में तो बॉलीवुड का कोई मुकाबला ही नहीं है विश्व में कहीं से भी एक फिल्म उठाई और उसे बना दिया रिमेक यानी कॉपी पेस्ट की परंपरा को बॉलीवुड बहुत ही उम्दा तरीके से निभा रहा है। अब कोई ऑरिजिनल, अच्छी कहानी बॉलीवुड से क्यों नहीं निकल पा रही? उसके कारणों पर बात फिर कभी आज फिलहाल बात करते हैं तमिल में आयी फिल्म मारीसन( Maareesan) की।
इसका शीर्षक “मारीसन” रामायण से प्रेरित है जिसका अर्थ है मारीक्ष, मायावी या स्वर्ण मृग जो इस कहानी को बहुत ही सुन्दर तरीके से प्रस्तुत करता है पर ट्वीस्ट यह है कि यहां मारीक्ष सत्य के पक्ष से बैटिंग करता हुआ नज़र आता है।
कहानी की शुरुआत में एक चूहे को एक सिपाही पिंजड़े में बंद किए हुए पानी में डुबोकर मारने की कोशिश करता है पर पानी से निकलते ही वह चूहा भाग जाता है। इसके बाद एक चोर की कहानी में इंट्री होती है जो चोरी से अपना पेट पालता है इसका किरदार निभाया है ‘फहाद फासिल’ ने, जिन्हें आप पुष्पा फिल्म के एसपी भंवर सिंह के नाम से जानते हैं। जिसकी चोरी करते हुए एक बूढ़े व्यक्ति से मुलाकात होती है, उस बूढ़े व्यक्ति का किरदार निभाया है तमिल के जाने-माने कॉमिडियन एक्टर ‘वडिवेल्लु’ ने, अगर आप साउथकी फिल्में देखते हैं तो ये आपको बहुत सी पहले की फिल्मों में अपने ऊल-जलूल तरीकों से हंसाते दिख जाएंगे। वो जंजीर से बंधा हुआ है तो वह चोर को पैसों का लालच देता है कि उसे जंजीरों से आज़ाद कर दे। चोर मान भी जाता है पर एटीएम से पैसे निकालते हुए चोर उसके खाते में लाखों की रकम देखता है। यानी कि स्वर्ण मृग सामने है पर उसे पकड़ा कैसे जाए? पर समस्या यह है कि वह बूढ़ा व्यक्ति अल्जाइमर का रोगी है, वह अक्सर चीज़ें भूल जाता है। अब फिल्म में पैसे हासिल करने के लिए बहुत ही मजेदार तिकड़म करते हुए फहाद फासिल दिखाई देते हैं।
अब इस कहानी में आप सोचेंगे कि हीरो फहाद फासिल होगा क्योंकि हमें बचपन से हीरो की यही परिभाषा सिखाई गई है पर अगर कहानी अच्छी हो तो हीरो कैसा भी और कोई भी हो सकता है। इस कहानी के हीरो की पत्नी अल्जाइमर से मर चुकी है पर उसने अपने पति से बच्चियों पर हुए अन्याय को न्याय में बदलने का वचन लिया था।
हमारे देश में “यत्र नार्यस्तु पूज्यन्ते रमन्ते तत्र देवताः” की परंपरा रही है जो बताता है कि “जहाँ स्त्रियों का सम्मान और पूजा की जाती है, वहाँ देवता निवास करते हैं अर्थात जहाँ उनका सम्मान नहीं होता, वहाँ अच्छे कर्म भी व्यर्थ हो जाते हैं।” परंतु हमारे राष्ट्र की समस्या है कि आज भी रावण जैसे लोग बने हुए हैं जो किशोरियों के साथ अनाचार और अपहरण जैसे मामलों को अंजाम देते नजर आते हैं। NCRB का डेटा बताता है कि हर वर्ष करीब 80000 से 90000 हजार गुमशुदगी के मामले सामने आते हैं जिनमें से 75% अवयस्क लड़कियां होती हैं और इतना ही नहीं हर वर्ष NCRB की रिपोर्ट के अनुसार 2022 में 62095 POCSO के केश सामने आए थे जो 2017 के मुकाबले 90% ज्यादा हैं। (उसके बाद के आंकड़े उपलब्ध नहीं हुए हैं) तो बच्चियों के खिलाफ हो रहे इन भयावह अपराध के मुद्दे को फिल्म ने बड़ी खूबसूरती के साथ उठाया है। क्लाइमेक्स तक आप हीरो और अपराधी को नहीं पकड़ पाएंगे।
फिल्म को डायरेक्ट किया है सुधीष संकर ने अगर फिल्म के किरदारों के अभिनय की बात करें तो फहाद फासिल और वडिवेल्लु ने शानदार अभिनय किया है। बल्कि वडिवेल्लु का अभिनय कई जगह आपको चौंकाता है। फिल्म की डबिंग निराश करती है, जिसे औसत से नीचे का ही कहा जा सकता है इसकी वजह से फिल्म में डायलॉग का जादू जो चल सकता था डबिंग की वज़ह से ग़ायब दिखता है। साउथ सिनेमा को डबिंग पर काम करना चाहिए बल्कि अगर साऊथ की फिल्मों ने अच्छी डबिंग कर ली तो वह हिन्दी सिनेमा को खा जाएगा या फिर हिंदी सिनेमा सार्थक सुधार पर विवश हो जाएगा।
(लेखक दिल्ली विश्वविद्यालय के हिन्दी विभाग में शोधार्थी हैं)