राणा सांगा पर चल रहा है बकवास

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मनोज श्रीवास्तव

मैंने पहले ही कहा था कि औरंगजेबों को बचाने के लिए ये लोग जयसिंह का नाम भले ले रहे हों लेकिन न ये मराठों के सगे हैं न राजपूतों के, ये तो बस एक से दूसरे को भिड़ाकर अपना उल्लू सीधा करने वाले लोग हैं। सो औरंगजेब को जस्टिफ़ाई करने के चक्कर में तब ये परशुराम को उतार लाये और अब राणा सांगा को।

कि बाबर को राणा सांगा ने आमंत्रित किया था।

एक बार पहले भी ये बकवास किन्हीं मूर्खों ने फ़ेसबुक पर की थी तब भी मैंने इस पर उनकी वाल पर जाकर उन्हें विस्तृत उत्तर दिया था।

अब फिर राणा सांगा की बात होने लगी।

राणा सांगा जो लोदी शासन के विरुद्ध राजपूतों का महासंघ बनाने वाले अद्वितीय वीर थे, उन्हें कितनी चतुराई से देश के दीर्घकालिक हितों के प्रति असावधान बताया गया, यह एक और उदाहरण है भारत के इतिहास लेखन की अनंत बदमाशियों का।

यह सिर्फ भारत में चलता है कि इसके बारे में शत्रु क्या कहते हैं, वही प्रमाण मान लिया गया।
यह ऐसा ही है जैसे पाकिस्तानी से भारत के बारे में चरित्र प्रमाणपत्र लिया जाये। राणा सांगा के बारे में बाबर ने बाबरनामा में क्या कहा, वही मान लिया गया।

किन्तु बाबर ने भी राणा सांगा के निमंत्रण का उल्लेख नहीं किया था। वह दौलत खान के निमंत्रण के बारे में अवश्य कहता है और उसके साथ हुए समझौते का विस्तृत उल्लेख भी करता है। तो आया वह दौलत खान के निमंत्रण पर था। राणा सांगा के बारे में वह वादाखिलाफी का आरोप अवश्य लगाता है कि उन्होंने मदद करने का वादा नहीं निभाया। बाबरनामा में भी यह उल्लेख पानीपत की लड़ाई के पहले नहीं आया बल्कि जब बाबर और राजपूत सेनाओं के बीच लड़ाई होने को थी, तब आया है।

पर जिस तरह से वह दौलत खान लोदी और आलम खान के साथ हुए समझौतों का विस्तृत वर्णन करता है, राणा साँगा के साथ हुए ऐसे किसी समझौते का विस्तृत उल्लेख नहीं करता। दौलत खान लोदी के निमंत्रण के अन्य स्रोतों से भी प्रमाण मिलते हैं पर राणा के नहीं।अलाउद्दीन और इब्राहीम के चाचा भी उसे आमंत्रित कर चुके थे।

और ऐसा क्यों है कि बाबर के इस राणा संबंधी कथन का समर्थन किसी समकालीन राजपूत लेखक छोड़िये, किसी समकालीन हिंदू लेखक छोड़िये किसी मुस्लिम लेखक तक से नहीं होता।

What value an assertion without a corroborative evidence has?

Nil. लेकिन हमारी पाठ्यपुस्तकों में इसका उल्लेख करना आवश्यक समझा गया। जिस चीज़ का एक भी स्वतंत्र स्रोत से समर्थन नहीं होता था, उस पर इतनी निर्भरता।

चलो सभी material particulars में न सही, कुछ अंशों में ही सही, कोई तो स्वतंत्र पुष्टि होती।

बल्कि परिस्थितिजन्य साक्ष्य तो विरोध में हैं।इस हद तक कि गोपीनाथ शर्मा अपनी पूरी पुस्तक में बाबर के कथन की अविश्वसनीयता सिद्ध करते हुए यह भी कहने पर बाध्य हुए कि It was a pity that all later writers have uncritically accepted Babur’s version.

और याद रहे, हम परिणाम की बात नहीं कर रहे, प्रस्ताव की बात कर रहे हैं। यह तो स्वयं बाबर तक मानता है कि राणा से धेला भर मदद नहीं मिली। जी एन शर्मा और गौरीशंकर ओझा जैसे बहुत से इतिहासकारों का निष्कर्ष है कि उलटे बाबर ने राणा से मदद माँगी होगी क्योंकि उनके नेतृत्व में राजपूत संघ बहुत शक्तिशाली माना जाता था। राजपूत खतौली और धोलपुर के युद्ध में इब्राहीम लोदी की सेनाओं को पहले ही हरा चुके थे।

राणा ने न तो पानीपत के युद्ध में भाग लिया और न अपनी सेना को तिल भर खिसकाया। राणा सांगा इब्राहीम लोदी के विरुद्ध लगातार सफल हो रहे थे तो उन्हें बाबर की सहायता की ज़रूरत ही नहीं थी। राणा सांगा ने तो राजपूत राजों को साथ लेकर खानवा का युद्ध बाबर से किया। 120 राजाओं को उन्होंने एकत्र किया और सिकंदर लोदी का लड़का महमूद लोदी जिसे अब नया सुल्तान घोषित किया जा चुका था, वह भी राणा सांगा से आकर मिल गया। राणा बार बार बाबर के द्वारा भेजी गयी टुकड़ियों को परास्त भी करते रहे। बयाना के युद्ध में भी उन्होंने बाबर की फ़ौजों को हराया।

बाबर तथाकथित निमंत्रण के पहले चार बार ( 1503, 1504, 1518, 1519) भारत पर असफल आक्रमण कर चुका था। इसलिए उसकी क्रेडिबिलिटी इतनी नहीं थी कि राजपूत संघ का नेता यानी राणा उसे इब्राहीम लोदी के विरुद्ध आहूत करता।

बाबर लोदियों तक को काफिर कह चुका था। उसे राणा के विरुद्ध युद्ध ही नहीं, जेहाद करना था जो उसने अपने सैनिकों को उकसाने के लिए कहा भी।

मुझे तो आश्चर्य है कि इन लोगों के पास अपनी दुकान चलाने के लिए कितनी कम पूँजी है।

अब कहाँ हैं वे लोग जो राजपूतों के विरुद्ध मराठों की पोजिशनिंग कर रहे थे? किसी वृद्धा लेखिका की रील वायरल करके।

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याद करें क्या लिखा था शिवाजी ने अपने पत्र में मिर्जा राजा जयसिंह को :

जय सिंह को लिखे एक लंबे पत्र में शिवाजी ने मिर्जा राजा को संदेश दिया: “यदि आप अपने लिए दक्कन जीतने आए हैं, तो मैं आपको अपनी सेवाएँ देना पसंद करूँगा। लेकिन चूँकि आप औरंगज़ेब की ओर से आए हैं, इसलिए मैं थोड़ा उलझन में हूँ कि आपसे कैसे निपटूँ। अगर हम दोनों लड़ेंगे, तो हिंदुओं का नुकसान दोनों तरफ़ से होगा। आपस में लड़ने में कोई बहादुरी नहीं मानी जाएगी और कोई वीरता नहीं होगी।” औरंगजेब की मंशा यह है कि हिंदुओं में कोई भी बहादुर आदमी जिंदा न बचे। शेर आपस में लड़कर खुद को खत्म कर लें, ताकि गिद्ध राज कर सकें। तुम मुगलों की रणनीति नहीं समझते… मैं तुम्हें कहता हूँ कि तुम हम जैसे शेरों से लड़कर हिंदुओं के मुंह पर कालिख न पोतो। अगर तुममें हिम्मत है तो हिंदू धर्म के दुश्मनों पर हमला करो और इस्लाम को खत्म करो। अगर दारा शिकोह इस देश का शासक होता तो वह हम पर प्यार और स्नेह बरसाता। लेकिन जब से तुमने जशवंत सिंह जैसे लोगों को छोड़ दिया है, तुम अच्छे और बुरे में फर्क नहीं कर सकते। तुम अब तक छोटे लोगों से लड़ते रहे हो और अब जब से तुम्हें मेरे जैसे शेरों से लड़ना है, तब से तुम्हें पता चलेगा कि तुम कहां खड़े हो। तुम मृगतृष्णा के पीछे भाग सकते हो। यह ऐसा है जैसे इतनी मेहनत करने के बाद तुम एक खूबसूरत महिला को पकड़कर हमारे दुश्मन को सौंप सकते हो। क्या तुम इतने घटिया इंसान हो? क्या तुम ऐसे दुष्टों का एहसान पाकर गर्व महसूस करते हो? क्या तुम जुजार सिंह के प्रयासों के परिणाम से वाकिफ नहीं हो? कुछ मुसलमानों ने हमारे महान देश पर कब्ज़ा कर लिया, यह देखकर मुझे बहुत आश्चर्य हुआ। लेकिन यह उनके कारनामों की वजह से नहीं हुआ है। अगर आप समझने की कोशिश करें तो वे हमसे अच्छी तरह से बात करते हैं और हमें गुलाम बनाते हैं। अगर आपकी आँखें देख सकती हैं, तो आप इसे महसूस कर सकते हैं। हमें यह समझने की ज़रूरत है कि वे कैसे हमारे पैरों में बेड़ियाँ बाँध रहे हैं और हमारी ही तलवारों से हमारे सिर काट रहे हैं। हमें हिंदुओं, हिंदुस्तान और हिंदू धर्म की रक्षा के लिए बहुत प्रयास करने की ज़रूरत है। हमें जैसे को तैसा की नीति अपनानी चाहिए। तुर्कों को हमारी तलवारों की ताकत दिखानी चाहिए। अगर आप मारवाड़ के राजा जसवंत सिंह और मेवाड़ के राणा राज सिंह के साथ हाथ मिला सकें, तो यह बहुत मददगार होगा।

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क्या वही कोशिश आज भी जारी नहीं है कि शेर आपस में लड़ के एक दूसरे को नष्ट कर लें ताकि गिद्ध राज कर सकें।

Prophetic words थे शिवाजी के।

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