अपने स्वत्व और स्वाभिमान की रक्षा केलिये भारतीय नारियों ने जीवन का जैसा बलिदान दिया है ऐसे उदाहरण दुनियाँ में कहीं नहीं मिलते । भारत का ऐसा कोई क्षेत्र या राज्य नहीं जहाँ रानियों और अन्य स्वाभिमानी नारियों ने जल या अग्नि कुण्ड में प्रवेश न किया हो । ऐसा ही जौहर ग्वालियर किले में हुआ । जहाँ महारानी तंवरी देवी के नेतृत्व में 1400 स्वाभिमानी स्त्री बच्चों ने अग्नि में प्रवेश किया था ।
तंवरी देवी दिल्ली के इतिहास प्रसिद्ध शासक महाराजा अनंगपालकी वंशज थीं। तंवरी देवी का विवाह ग्वालियर के शासक महाराज मलयवर्मन के साथ हुआ था । प्रतिहार वंशी मलयवर्मन अपने प्रजा वत्सल और स्वाभिमानी स्वभाव के लिये प्रसिद्ध थे । दिल्ली के सुल्तान अल्तमस ने उन पर आधीनता स्वीकार करने का दबाव बनाया । मलयवर्मन ने अस्वीकार कर दिया तो अल्तमस ने एक विशाल सेना लेकर ग्वालियर पर हमला बोला । अल्तमस का ग्वालियर पर यह हमला दिसम्बर 1231 में हुआ था । आरंभ में मलयवर्मन ने वीरता से आक्रमण का सामना किया लेकिन अल्तमस की सैन्यशक्ति अधिक थी । ग्वालियर की सेना को पीछे हटना पड़ा। और राजा अपने सुरक्षा सैनिकों सहित किले में चले गये । अल्तमस ने किले पर घेरा डाला और राजा से रनिवास सहित पूर्ण समर्पण की शर्त रखी । इसमें बेटी को डोला सहित समर्पण शामिल था । अल्तमस ने अपने दूत हैबत खाँ के हाथों यह संदेश भेजा । स्वाभिमानी शासक मलयवर्मन वार्षिक राजस्व देने पर तो सहमत थे लेकिन बेटी के डोला सहित रनिवास के समर्पण से इंकार कर दिया । अंततः अपना दबाव बनाने के लिये अल्तमस ने किले के भीतर जाने के सारे मार्ग रोक दिये और आसपास के गाँवो में लूट और नर संहार करने लगा । यह घेरा ग्यारह माह तक रहा । इससे किले के भीतर भोजन ही नहीं पीने के पानी की समस्या उत्पन्न हो गई। यह ग्वालियर के इतिहास में सबसे लंबी अवधि का घेरा था ।
यह अल्तमस के जीवन का भी सबसे बड़ा घेरा । लेकिन एक ओर राजा मलयवर्मन अपने स्वाभिमान पर अडिग रहे तो अल्तमस भी जिद पर अड़ा रहा । अंततः किले की समस्याओं से विवश रानी तंवरी देवी ने जौहर करने का और राजा मलयवर्मन ने निर्णायक युद्ध करने का निर्णय लिया । जौहर की तैयारी आरंभ हुई । किले के भीतर अग्नि कुण्ड तैयार किया गया जिसमें राज परिवार सभी स्त्री बच्चों के साथ किले के भीतर सभी सैनिकों के स्त्री बच्चों ने भी अग्न में प्रवेश कर लिया । यह जौहर तीन दिन चला और 20 नवम्बर 1232 की तिथि को पूरा हुआ । जो स्त्री बच्चे अग्नि प्रवेश न कर पाये उनका तलवार से शीश काट दिये गये और अगले दिन 21 नवम्बर को राजा मलयवर्मन अपने सभी सैनिकों के साथ केशरिया पगड़ी बाँधकर अंतिम युद्ध करने केलिये किले से निकलकर मैदान में आये । इनकी संख्या 600 बताई जाती है । युद्ध अधिक न चल सका । दोपहर तक युद्ध समाप्त हो गया । राजा मलयवर्मन बलिदान हुये उनका कोई सैनिक जीवित न बचा । युद्ध की समाप्ति और जीत के बाद इसी दिन अल्तमस ने सेना सहित किले में आया तो उसे चारों ओर शव एवं राख के ढेर मिले । इतिहास के पन्नों में इस जौहर का विवरण सबसे कम मिलता है । कहीं कहीं राजा का नाम और तिथियों में अंतर भी मिलता हैं। बहुत संभव है कि ग्वालियर के किले में एक से अधिक जौहर हुये हों। चूँकि ग्वालियर पर दिल्ली की हर सल्तनत का आक्रमण हुआ इसलिये राजा का नाम और तिथियों में अंतर है ।
ग्वालियर किले में जहाँ जौहर हुआ था वहाँ जौहर कुण्ड बना है । जो जौहरताल के रूप में प्रसिद्ध है । यह पुरातत्व विभाग द्वारा संरक्षित है । देश भर के पर्यटक ग्वालियर किला घूमने आते हैं वे जौहर कुण्ड अवश्य जाते हैं और वहाँ जाकर अपने स्वत्व और स्वाभिमान के लिये जीवन का बलिदान करने वाली सभी नारियों को नमन् करते हैं।
इस जौहर का विस्तृत विवरण लेखक मिनहाज की पुस्तक “तबकाते नासिरी” में है । बाद में अनेक इतिहासकारों ने भी शोध किया