सर्वेश कुमार सिंह
यदा यदा हि धर्मस्य ग्लानिर्भवति भारत।
अभ्युत्थानमधर्मस्य तदात्मानं सृजाम्यहम्।।
परित्राणाय साधूनां विनाशाय च दुष्कृताम।
धर्मसंस्थापनार्थाय सम्भवामि युगे युगे।।
लखनऊ: भगवान श्रीकृष्ण के अर्जन से कहे गए ये वचन शास्वत, सनातन और चिरंतन भारतीय संस्कृति की जीवनी शक्ति हैं। इस जगत में जब-जब धर्म का नाश और अधर्म की वृद्धि होती है या संस्कृति पर आक्रमण होते हैं तो ईश्वरीय शक्ति स्वयं अवतरित होती है। यह शक्ति त्रेता में भगवान श्रीराम के रूप में तो द्वापर में भगवान श्रीकृष्ण के रूप में इस धरा पर अवतरित हुई। वही ईश्वरीय शक्ति, राष्ट्र चेतना के रूप में कलियुग में “राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ” के रूप में सौ साल पहले विजयादशमी के दिन अवतरित हुई है। इस दैवीय शक्ति से प्रेरित और सम्पन्न समाज सेवा के लिए अवतरित यह अद्भुत संगठन आज अपनी स्थापना के सौ साल पूरे कर रहा है। किसी को आश्चर्य नहीं होना चाहिए कि आखिर कोई संगठन बगैर विघटति हुए, बगैर किसी विवाद के, बगैर किसी सरकारी सहायता के भी सौ साल पूरे कर सकता है।
भारत में समाज सेवा, धर्म स्थापना और मानव सेवा के लिए अनेक संगठनों ने समय-समय पर जन्म लिया है। उन्होंने अच्छे कार्य किये हैं। वे अपने-अपने उद्देश्यों के प्रति समर्पित रहे हैं, किन्तु वे एक सीमित कालखण्ड तक ही अपने आप को सशक्त और सबल बनाकर रख सके हैं। संघ की स्थापना के पूर्व अनेक सगठनों की स्थापना हुई। लेकिन वे समय की चुनौतियों का सामना करने में पूरी तरह सफल नहीं हो सके। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ एक मात्र ऐसा संगठन है जो सौ साल बाद भी उसी ऊर्जा, उसी लगन और उसी प्रेरणा को लेकन नित नवीन स्वरूप बनाये हुए खड़ा है, और राष्ट्र आराधना के अपने उद्देश्य में सफल भी हुआ है।
विचारणीय है कि संघ ने जब सौ साल पूरे किये हैं तो क्या कारण है कि यह अन्य संगठनों की तरह थका नहीं, रूका नहीं, ठहरा नहीं। अनथक आगे बढ़ रहा है। बल्कि ऐसा विस्तार किया कि आज दुनिया का सबसे बड़ा स्वयंसेवी संगठन बना हुआ है। संघ के विस्तार और उसकी सांगठनिक रचना को देखें तो आज लगभग 78 हजार स्थानों पर एक लाख 25 हजार इसकी दैनिक और साप्ताहिक शाखाएं लग रही हैं। संघ सेवा के कामों में दुनिया में सबसे आगे है। देश के शहरी और ग्रामीण स्थानों पर लगभग एक लाख 29 हजार सेवा कार्य संचालित कर रहा है। सुदूर वनवासी क्षेत्रों, पर्वतीय क्षेत्रों से लेकर सम्पूर्ण भारत में शिक्षा और संस्कार के कई लाख केद्र संचालित हैं। संघ ने समाज जीवन का कोई ऐसा क्षेत्र नहीं छोड़ा है जहां अपने उद्देश्य के लिए कोई कार्य खड़ा न किया हो। इसी लिए संघ प्रेरित लगभग 40 विभिन्न संगठन सक्रिय हैं। दुनिया के समाजशास्त्री अध्ययन कर रहे हैं कि आखिर कोई संगठन दुनिया का सबसे बड़ा और निर्विवाद संगठन कैसे बनता है। इस प्रश्न का उत्तर जानने के लिए संघ को पढ़ने और संघ के बारे में सुनने से ज्यादा उसमें उतरने की जरूरत है। संघ को समझना है तो संघ के निकट जाना ही पड़ेगा, तब संघ समझ में आएगा। संघ की अद्भुत पद्यति शाखा को समझना और उसमें जाकर देखना होगा।
बाधाओं और चुनौतियों का किया सामना
राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की स्थापना को सौ वर्ष पूर्ण हो गए। विजयादशमी के अवसर पर वर्ष 1925 में नागपुर में डा.केशवराव बलिराम हेडगेवार ने संघ की स्थापना की थी। स्थापना के समय ही संघ ने अपना उद्देश्य और ध्येय स्पष्ट कर दिया था। संघ का ध्येय उसकी प्रार्थना की प्रथम पक्ति “नमस्ते सदा वत्सले मातृभूमे, त्वया हिन्दूभूमे सुखमं वर्धितोअहम्” तथा प्रार्थना के अन्त “भारत माता की जय” से सुस्पष्ट है। संघ किसी के विरोध में कार्य नहीं करता और न ही किसी के विरोध के लिए इसकी स्थापना हुई है। जब संघ का स्वयंसेवक नियमित रूप से “नमस्ते सदा वत्सले मातृभूमे” कहता है तो स्पष्ट ही है कि वह इस भारत मां की पूजा करता है, उन्हें नमन करता है, उनके लिए समर्पण का भाव प्रकट करता है और अंत में जब “भारत माता की जय” कहता है तो स्पष्ट है कि भारत को सदेव विजयी और यशस्वी देखना की कामना है। ऐसे निस्वार्थ और निष्काम उद्देश्य को धारण किये हुए संघ को भी अपनी सौ साल की यात्रा पूरी करने में अनेक कठिनाइयों, चुनौतियों, झूठे विमर्शों, मनगठंत आरोपों का सामना करना पड़ा है।
संघ के बारे में विरोधियों ने जो झूठे विमर्श गढ़े उनमें सबसे प्रमुख रहा कि यह सामप्रदायिक संगठन है, मुस्लिम विरोधी संगठन है। इस विमर्श को गढने में विशेष रूप से कांग्रेस और वामपंथी विचारधारा के राजनीतिक दलों ने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। लेकिन ये सभी आरोप समय के साथ झूठे साबित होते चले गए। देश में एक भी घटना ऐसी नहीं घटी जिसमें संघ पर कोई आरोप प्रमाणित हुआ हो। देश में आजादी के बाद भीषण साम्प्रदायिक दंगे भी हुए लेकिन किसी में संघ को आरोपित नहीं किया जा सका। किसी भी न्यायालय ने संघ के खिलाफ कोई आदेश पारित नहीं किया। आजादी के तत्काल बाद राष्ट्रपिता की हत्या से जब सारा देश स्तब्ध था। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ ने उनकी हत्या की घोर निंदा की। संघ ने 13 दिन का शोक मनाने के लिए शाखाओं को रोक दिया। इसके बावजूद संघ को गांधी जी की हत्या के लिए दोषी ठहराने का एक अभियान चलाया गया। संघ पर तत्कालीन केन्द्र सरकार ने प्रतिबंध भी लगा दिया, लेकिन न्यायालय से संघ निर्दोष साबित हुआ। आपातकाल में संघ पर दूसरा प्रतिबंध लगा। अयोध्या में विवादिद ढांचा ध्वसं के बाद भी संघ पर संक्षित प्रतिबंध लगाया गया। लेकिन संघ ने अपने संगठन कौशल और समाज के स्नेह और सामूहिक समाज शक्ति के बल पर इनका सामना किया।
संघ शक्ति का केन्द्र शाखा
राष्ट्रीय स्वयंसेवक सघ की शक्ति का केन्द्र बिन्दु उसकी शाखा है। शाखा देखने में कुछ बालकों, युवाओं या प्रौढों का एक छोटा सा समूह किसी मैदान में खेलता, योग व्यायाम करता या विचार विमर्श करता दिख जाएगा। भगवा ध्वज के सम्मुख प्रार्थना करते स्वयंसेवकों को देखकर उनके समर्पण को समझा जा सकता है। यही वह केन्द्र है जो किसी सामान्य से बालक या युवा को समर्पित, निष्ठावान, चरित्रवान, उद्देश्य के लिए उत्कट राष्ट्र भावना लिए स्वयंसेवक का निर्माण कर देता है। शाखा सामान्य खेलकूद का मैदान नहीं राष्ट्र के लिए व्यक्ति निर्माण की कार्यशाला है। यहां न तो किसी की जाति पूछी जाती है न किसी के साथ ऊंच नीच का कोई भाव होता है। बस अगर कुछ होता है तो सिर्फ हिन्दू समाज के संगठन की प्रबल भावना। यही मंत्र समूचे देश में आज सवा लाख से अधिक शाखाएं खड़ी करके संघ को दुनिया का सबसे बड़ा संगठन बना सका है।
उन्नत, सशक्त भारत के लिए संघ दृष्टि
राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ ने इस वर्ष विजयादशी से लेकर अगले वर्ष 2026 की विजयादशी तक संघ शताब्दी वर्ष मनाने का निर्णय लिया है। इस शताब्दी वर्ष में जो कार्यक्रम सघ ने निर्धारित किये हैं, वे संघ की व्यापक और समाजहित की समग्र दृष्टि को प्रतिबिम्बित करते हैं। संघ ने जो कार्यक्रम निर्धारित किये हैं। वे भारत की सम-सामयिक चुनौतियों का भी सामना करने के लिये समाज को खड़ा करेंगे। ये कार्यक्रम पंच परिवर्तन के नाम से जाने जा रहे हैं। समाज में संघ पांच विशेष कार्य अभियान आरंभ करने जा रहा है। इसमें सबसे प्रमुख है, सामाजिक समरसता। संघ ने समाज में भेदभाव ऊंच-नीच जाति-पांति को समाप्त करने के लिए सामाजिक समरसता को सबसे ऊपर रखा है। आज अगर कोई सबसे बड़ी चुनौती भारत के सामने है तो वह है सामाजिक भेदभाव, जातिवाद, अलगाववाद। इनको समूल समाप्त करने के लिए संघ सामाजिक समरता का जागरण और प्रबोधन करेगा। इसके बाद दूसरा प्रमुख कार्य है पर्यावरण संरक्षण, आज भारत ही नहीं, बल्कि सम्पूर्ण विश्व पर्यावरण सम्बन्धी चुनौतियों का सामना कर रहा है। ये चुनौतियां समय के साथ और अधिक भयावह होने वाली हैं। इसलिए संघ ने इसे प्रमुख गतिविधि मान कर इसके लिए जनजागरण कर समाज को पर्यावरण संरक्षण के लिए खड़ा करने का फैसला किया है। भारत में परिवारों का विघटन भी एक प्रमुख समस्या बनी है। इसे दूर करने के लिए कुटुम्ब प्रबोधन का भाव जगाना है। भारत जब परतंत्रता की बेडियों में नहीं जकड़ा था और स्वदेशी शासन, स्वदेशी व्यवस्था संचालित होती थी तो आत्मनिर्भर था। आज फिर स्व का भाव जगाकर भारत की स्व की भावना को प्रबल करना आवश्यक है यह मानकर स्वदेशी और निज राष्ट्र, निज भाषा. निज संस्कृति, निज धर्म के प्रति स्वाभिमान का भाव जगाने के लिए अभियान आरंभ किया जा रहा है। एक नागरिक के रूप में हमारे क्या कर्तव्य हैं यह जानना हर देशवासी के लिए आवश्यक है। उनका पालन करने से समाजजीवन में अनुशासन का भाव जागृत होता है और हम राष्ट्रीय दायित्व का निर्वहन करने के लिए भी तैयार और तत्पर होते हैं। यह भावना जगाने के लिए नागरिक कर्तव्य को पंच परिवर्तन का पांचवा आयाम संघ ने बनाया है।
अपने संगठन बल और व्यापक आधार के बल पर संघ पंच परिर्वतन से देश में क्रांतिकारी परिर्वतन लाने में अवश्य सफल होगा।