दिल्ली। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (RSS) के शताब्दी वर्ष के उपलक्ष्य में 23 से 25 सितंबर 2025 को नई दिल्ली के विज्ञान भवन में आयोजित तीन दिवसीय व्याख्यानमाला, जिसका शीर्षक था “100 वर्ष की संघ यात्रा: नए क्षितिज”, ने देश भर में व्यापक चर्चा उत्पन्न की। संघ के सरसंघचालक डॉ. मोहन भागवत के व्याख्यानों ने संगठन की विचारधारा, कार्यप्रणाली, और भविष्य की योजनाओं को स्पष्ट करने का प्रयास किया। इस आयोजन पर मीडिया में पक्ष और आलोचना दोनों देखने को मिली।पक्ष में मीडिया की प्रतिक्रिया
- संघ की समावेशी दृष्टि पर जोर: कई मीडिया हाउस, जैसे पाञ्चजन्य और रॉयल बुलेटिन, ने सरसंघचालक के व्याख्यानों को ऐतिहासिक और दृष्टिकोण बदलने वाला बताया। पाञ्चजन्य ने लिखा कि डॉ. भागवत ने हिंदू की परिभाषा को सांस्कृतिक और समावेशी दृष्टिकोण से प्रस्तुत किया, जिसमें उन्होंने कहा कि “हिंदू कोई जातीय या धार्मिक पहचान नहीं, बल्कि एक सांस्कृतिक जीवन दृष्टि है जो विविधता में एकता को बढ़ावा देती है।” इस दृष्टिकोण को कई समाचार माध्यमों ने भारत की सांस्कृतिक एकता को मजबूत करने वाला माना।
- सामाजिक समरसता का संदेश: NDTV ने अपने लेख में डॉ. भागवत के सामाजिक समरसता पर जोर को सराहा। उन्होंने चार गुणों—मैत्री, करुणा, मुदिता, और उपेक्षा—को संघ के सामाजिक व्यवहार का आधार बताया। यह संदेश विशेष रूप से सामाजिक तनाव और ध्रुवीकरण के दौर में सकारात्मक माना गया। NDTV ने इसे “वैकल्पिक नैतिक नेतृत्व” का प्रयास बताया।
- पारदर्शिता और संवादशीलता: VSK भारत और TV9 हिंदी ने संघ की बढ़ती पारदर्शिता और उत्तरदायित्व की प्रशंसा की। तीसरे दिन के प्रश्नोत्तर सत्र को विशेष रूप से रेखांकित किया गया, जहां डॉ. भागवत ने काशी-मथुरा मंदिरों जैसे संवेदनशील मुद्दों पर स्पष्टता दी, यह कहते हुए कि “संघ की कोई योजना नहीं है कि मथुरा-काशी के लिए कोई आंदोलन चलाया जाए। राम जन्मभूमि एक अपवाद था।” यह बयान संघ की संवैधानिक प्रक्रिया और न्यायपालिका में विश्वास को दर्शाता है।
- संघ की वैश्विक दृष्टि: पाञ्चजन्य ने डॉ. भागवत के उस बयान को उद्धृत किया जिसमें उन्होंने भारत की वैश्विक भूमिका पर जोर दिया, यह कहते हुए कि भारत ने हमेशा संयम और सेवा का मार्ग अपनाया है, चाहे वह उन लोगों की मदद हो जो भारत को नुकसान पहुंचाते हैं। यह वैश्विक दृष्टिकोण कई समाचार माध्यमों ने सराहा।
आलोचना में मीडिया की प्रतिक्रियाहालांकि, कुछ मीडिया हाउस और टिप्पणीकारों ने व्याख्यानों की आलोचना की। ये आलोचनाएं मुख्य रूप से निम्नलिखित बिंदुओं पर केंद्रित थीं:
- हिंदुत्व के एजेंडे पर सवाल: कुछ विपक्षी नेताओं और टिप्पणीकारों, जैसे कि X पर
@Schandillia
और
@GopeshKhetan, ने संघ के हिंदुत्व के एजेंडे को “विभाजनकारी” करार दिया।
@Schandilliaने एक पोस्ट में कहा कि संघ का दृष्टिकोण “शिक्षा जैसे पवित्र क्षेत्र को भी राजनीतिक रंग देने का प्रयास करता है।”
@GopeshKhetanने बस्तर और कश्मीर के संदर्भ में डॉ. भागवत के बयानों को ‘असत्य’ और “UAPA के तहत कार्रवाई योग्य” बताया।
- सामाजिक समरसता पर संदेह: कुछ समाचार माध्यमों और विश्लेषकों ने सामाजिक समरसता के दावों को “खोखला” बताया, यह कहते हुए कि संघ का हिंदू राष्ट्र का विचार दलित और आदिवासी समुदायों को अलग-थलग कर सकता है। TV9 हिंदी ने उल्लेख किया कि विपक्षी दल, विशेष रूप से कांग्रेस और राहुल गांधी, संघ के हिंदुत्व के एजेंडे को लेकर आक्रामक हैं और इसे जातिगत जनगणना और आरक्षण जैसे मुद्दों के खिलाफ मानते हैं।
- राजनीतिक प्रभाव पर आलोचना: कुछ आलोचकों ने व्याख्यानों को भारतीय जनता पार्टी (BJP) के लिए अप्रत्यक्ष समर्थन के रूप में देखा। X पर
@Randeep_Sisodia
ने तमिलनाडु में AIADMK नेता ई. पलानीस्वामी के बयानों का हवाला देते हुए कहा कि संघ और BJP के बीच गठजोड़ क्षेत्रीय दलों को कमजोर कर सकता है।
- संघ की मंशा पर सवाल: कुछ टिप्पणीकारों ने यह सवाल उठाया कि क्या संघ वास्तव में समावेशी है, या यह केवल अपनी छवि को नरम करने का प्रयास कर रहा है। एक लेख में यह दावा किया गया कि संघ का समावेशी दृष्टिकोण केवल ‘रणनीतिक परिपक्वता’ का हिस्सा है, न कि विचारधारा में वास्तविक बदलाव।
आलोचनाओं का जवाब
- हिंदुत्व के एजेंडे पर: आलोचकों द्वारा हिंदुत्व को विभाजनकारी कहना एक पुराना नैरेटिव है जो तथ्यों पर आधारित नहीं है। डॉ. भागवत ने अपने व्याख्यान में स्पष्ट किया कि हिंदू शब्द एक सांस्कृतिक पहचान है, जो सभी धर्मों और समुदायों को समाहित करता है। उन्होंने कहा, “जो सबको साथ लेकर चलता है, वह हिंदू है।” यह विचार भारत की सनातन संस्कृति की विशेषता “वसुधैव कुटुंबकम” को दर्शाता है। आलोचकों का यह दावा कि संघ शिक्षा को राजनीतिक रंग देता है, निराधार है, क्योंकि संघ की शाखाएं व्यक्तिगत चरित्र निर्माण और सामाजिक सेवा पर केंद्रित हैं, न कि राजनीतिक प्रचार पर।
- सामाजिक समरसता पर: आलोचकों का यह कहना कि संघ का सामाजिक समरसता का दावा खोखला है, तथ्यों से मेल नहीं खाता। TV9 हिंदी ने स्वयं उल्लेख किया कि संघ ने “एक श्मशान, एक मंदिर, एक जल स्रोत” के विचार को बढ़ावा देकर जातिगत भेदभाव को कम करने का प्रयास किया है। संघ की शाखाओं में विभिन्न जातियों और समुदायों के लोग एक साथ कार्य करते हैं, जो सामाजिक एकता का जीवंत उदाहरण है। विपक्षी दलों का जातिगत जनगणना का मुद्दा उठाना केवल राजनीतिक लाभ के लिए है, जबकि संघ का फोकस सामाजिक एकता और समरसता पर है।
- राजनीतिक प्रभाव पर: यह आरोप कि संघ BJP का अप्रत्यक्ष समर्थन करता है, गलत है। डॉ. भागवत ने व्याख्यान में स्पष्ट किया कि संघ एक सामाजिक-सांस्कृतिक संगठन है, जो किसी भी राजनीतिक दल का प्रत्यक्ष समर्थन नहीं करता। NDTV के अनुसार, उन्होंने सत्ता से दूरी और विचारधारा के प्रति प्रतिबद्धता पर जोर दिया। क्षेत्रीय दलों के नेताओं, जैसे ई. पलानीस्वामी, की टिप्पणियां उनकी अपनी राजनीतिक रणनीति का हिस्सा हो सकती हैं, न कि संघ की मंशा का प्रमाण।
- संघ की मंशा पर: यह दावा कि संघ केवल अपनी छवि को नरम करने का प्रयास कर रहा है, एक पूर्वाग्रहपूर्ण दृष्टिकोण है। संघ ने पिछले 100 वर्षों में लगातार सामाजिक सेवा, आपदा राहत, और व्यक्तिगत चरित्र निर्माण पर कार्य किया है। VSK भारत ने बताया कि संघ का संचालन गुरुदक्षिणा के माध्यम से होता है, जो इसकी स्वावलंबिता और निःस्वार्थ सेवा को दर्शाता है।
आलोचकों को उजागर करना
-
@Schandillia
और
@GopeshKhetan: इन X उपयोगकर्ताओं की टिप्पणियां तथ्यहीन और अतिशयोक्तिपूर्ण हैं।
@Schandilliaका यह दावा कि संघ शिक्षा को राजनीतिक रंग देता है, बिना किसी ठोस सबूत के है।
@GopeshKhetanका UAPA जैसे गंभीर कानून का उल्लेख करना केवल सनसनीखेज बयानबाजी है, जो गंभीर विश्लेषण की कमी को दर्शाता है।
- विपक्षी दल और मीडिया: कांग्रेस और राहुल गांधी जैसे नेताओं ने संघ को बार-बार निशाना बनाया है, लेकिन उनके दावों में तथ्यों की कमी रहती है। TV9 हिंदी ने स्वीकार किया कि संघ का सामाजिक समरसता अभियान प्रभावी रहा है, फिर भी विपक्ष इसे विभाजनकारी कहता है, जो उनकी राजनीतिक रणनीति का हिस्सा प्रतीत होता है।
निष्कर्षडॉ. मोहन भागवत के 23-25 सितंबर 2025 के व्याख्यानों ने संघ की विचारधारा, कार्यप्रणाली, और भविष्य की दृष्टि को स्पष्ट करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। मीडिया का एक हिस्सा, जैसे पाञ्चजन्य, NDTV, और VSK भारत, ने इसकी समावेशी और पारदर्शी दृष्टिकोण की सराहना की, जबकि कुछ आलोचकों ने इसे विभाजनकारी और रणनीतिक करार दिया। आलोचनाएं ज्यादातर पुराने नैरेटिव्स और राजनीतिक पूर्वाग्रहों पर आधारित थीं, जिनका जवाब संघ की कार्यप्रणाली और तथ्यों से आसानी से दिया जा सकता है। संघ की यह व्याख्यानमाला न केवल इसके शताब्दी वर्ष का उत्सव थी, बल्कि समाज के साथ संवाद और गलतफहमियों को दूर करने