निलेश
मीडिया स्कैन के तत्वावधान तैयार हुआ जो मंच ‘कलेस’ है, ये प्राथमिक तौर पर हमें यही भान कराता है और इस मंच के जरिये न केवल ऊपर वर्णित विषयों पर सार्थक चर्चा होती है, बल्कि चर्चा में शामिल होकर 360 डिग्री कॉन्सेप्ट क्लियर होता है। ये राष्ट्रहित, सांस्कृतिक मूल्यों से जुड़े मुद्दों के कई पहलुओं पर दिमाग खोलता है
धर्म परिवर्तन, लव जेहाद, मुस्लिम कट्टरपंथ, अर्बन नक्सलवाद, मिशनरियों के गुप्त/जगजाहिर मिशन, भारतीय संस्कृति को प्रभावित करने वाली अन्य कुत्सित कोशिशें वास्तव में सामाजिक, सांस्कृतिक और राष्ट्रीय महत्व से जुड़े कुछ ऐसे मुद्दे हैं, जिनके बारे में हम अक्सर सुनते तो हैं, लेकिन उसके प्रति सजग नहीं हैं। उन चुनौतियों को समझते तो हैं लेकिन उसकी गंभीरता का अनुमान हमें नहीं है।
यह चर्चा अक्सर चाय की दूकान से वाट्सग्रुपों और बस, रेल या दफ्तर से कचहरी तक हम सुनते ही हैं कि सरकार क्या कर रही है, जब देश पर ऐसा संकट आया है फिर राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ क्यों सोया हुआ है? देश की खुफिया एजेन्सियां, व्यवस्था/अधिकारी सब क्या मुफ्त का वेतन ले रहे हैं? यहां हमारा मन यह समझने को तैयार नहीं होता कि उन सभी को जो करना चाहिए, कर ही रहे हैं। इतनी बेचैनियों के बीच यदि हम आराम से घरों बैठे गपशप का आनंद ले रहे हैं तो यह उन सभी की सक्रियता की वजह से ही है। अब बारी खुद से यह पूछने की है कि आप और हम क्या कर रहे हैं?
पिछले दिनों बॉलीवुड एक्टर/सेलेब्रिटी अनु कपूर ने अपने वक्तव्य की शुरुआत ऐसे की थी कि “भारत दुनिया का सबसे बड़ा लोकतांत्रिक देश होने का ‘नाटक’ करता है।” आगे उन्होंने कहा, “यहां सुबह उठते ही सब अपने अधिकार का रोना रोने लगते हैं। हमें ये चाहिए, हमें वो चाहिए, सरकार ये नहीं कर रही, सिस्टम ये नहीं कर रहा। कर्तव्यों को लेकर वे नहीं सोचते। ये नहीं सोचते कि वे देश/राष्ट्र के लिए क्या कर रहे हैं?”
मीडिया स्कैन के तत्वावधान तैयार हुआ जो मंच ‘कलेस’ है, ये प्राथमिक तौर पर हमें यही भान कराता है और इस मंच के जरिये न केवल ऊपर वर्णित विषयों पर सार्थक चर्चा होती है, बल्कि चर्चा में शामिल होकर 360 डिग्री कॉन्सेप्ट क्लियर होता है। ये राष्ट्रहित, सांस्कृतिक मूल्यों से जुड़े मुद्दों के कई पहलुओं पर दिमाग खोलता है।
डिफेंस कॉलोनी में शनिवार (03 अगस्त 2024) को हुई खुले मंच की चर्चा, ‘थोड़ी गपशप, थोड़ी चाय साय’ बैठक के दौरान कई विषयों पर गंभीर चर्चा हुई। इस ग्रुप में जुड़ा हर व्यक्ति (मुझे छोड़कर) किसी न किसी रूप में विशेष है और कई विषयों पर गहरा ज्ञान रखता है। एक-दो घंटे के भीतर डीप-डाइव लगाना संभव तो नहीं था, लेकिन जितने भी व्यक्ति पहुंचे और अपना अनुभव सामने रखा, उन अनुभवों ने खासकर धर्म परिवर्तन, अर्बन नक्सलवाद, मिशनरीज मिशन और राष्ट्रीय सुरक्षा से जुड़े विषयों पर इतनी महीन जानकारी दी कि पहले से जो जाना पढ़ा था, उसके धागे खुल गए।
वैसे सबकुछ यहां लिखना संभव तो नहीं, एक महत्वपूर्ण बात जिससे दिव्य ज्योती जागृति संस्थान से जुड़े स्वामी विशालानंदजी ने अपनी बात शुरू की, वो ये था कि पंथ-निरपेक्ष और धर्म-निरपेक्ष, दोनों बिल्कुल अलग-अलग चरित्र हैं। हमारे देश भारत का चरित्र पंथ-निरपेक्षता है। ऐसे में मेरा मानना है कि जब, इस्लाम या अन्य धर्मों के इतिहास से काफी पुराना, काफी समृद्ध हमारा इतिहास रहा है तो एक हिंदू राष्ट्र कहे जाने की बात से आपत्ति क्यों होनी चाहिए?
ऑन कैमरा और ऑफ कैमरा लगतार बातचीत होती रही। कई गंभीर विमर्श सामने आए। सबसे जरूरी बात कि केवल समस्याओं पर चर्चा नहीं हुई, बल्कि सामूहिक अप्रोच समस्या से समाधान की ओर बढ़ने पर केंद्रित रहा।
ग्लोबल वेद फाउंडेशन के गौरव शर्माजी को नेक उद्देश्य से किए जा रहे उनके काम के लिए साधुवाद और शुभकामनाएं। वे जिस तरह गांव देहात, कस्बों और छोटे शहरों से आने वाले जरूरतमंद बच्चों को प्रशासनिक सेवा के लिए तैयार कर रहे हैं। उसकी सराहना की ही जानी चाहिए। इसके बदले वे इन बच्चों से एक रुपया भी नहीं लेते। अपने पास रखकर उनके खाने से लेकर अध्ययन सामग्री तक की चिंता वे करते हैं।
अंतिम और महत्वपूर्ण बात ये कि वहां, सभी को ये महसूस हुआ कि ऐसी चर्चाएं होती रहनी चाहिए। विषय तय कर, उनके एक्सपर्ट्स को बतौर वक्ता आमंत्रित कर ऐसे जुटान महीने में कम से कम एक बार जरूरी हैं।
आशीष अंशु भाई और कुछ अन्य साथियों ने दो दिवसीय कार्यक्रम का भी प्रस्ताव रखा, जिस दिशा में जरूर आगे बढ़ना चाहिए।
इस महत्वपूर्ण चर्चा का हिस्सा रहा, इसे मैं अपना सौभाग्य मानता हूं और सभी का आभारी हूं।
(लेखक श्रमजीवी युवा पत्रकार हैं)