दिल्ली। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (RSS) की सौ वर्षों की यात्रा एक ऐसी महागाथा है, जो राष्ट्रभक्ति, निस्वार्थ सेवा, और सामाजिक एकता की अनगिनत कहानियों से सजी है। 27 सितंबर, 1925 को विजयादशमी के पवित्र दिन डॉ. केशव बलिराम हेडगेवार ने नागपुर में एक छोटे से विचार को जन्म दिया, जो आज विश्व के सबसे बड़े स्वयंसेवी संगठन के रूप में उभरा है। यह लेख उस प्रेरणादायी यात्रा का उत्सव है, जो ऊर्जा, उत्साह, और समर्पण से ओतप्रोत है। यह उन लाखों स्वयंसेवकों की कहानी है, जो बिना किसी स्वार्थ के भारत को सशक्त बनाने में जुटे हैं।
सपनों का बीज: एक विचार ने बदली तस्वीर
1925 में, जब भारत औपनिवेशिक शासकों की बेड़ियों में जकड़ा था, डॉ. हेडगेवार ने एक सपना देखा—एक ऐसा भारत, जहां हर व्यक्ति अपनी सांस्कृतिक जड़ों से जुड़ा हो और राष्ट्र के लिए समर्पित हो। इस सपने ने जन्म लिया ‘शाखा’ के रूप में, जो एक अनूठी व्यवस्था थी। शाखा में युवा एकत्र होकर शारीरिक व्यायाम, स्वदेशी खेल, और बौद्धिक चर्चाओं के माध्यम से अनुशासन और देशभक्ति के संस्कार ग्रहण करते थे।
नागपुर के एक छोटे से मैदान में पांच स्वयंसेवकों के साथ शुरू हुआ यह कारवां आज लाखों लोगों का परिवार बन चुका है। शाखाएं आज भारत के हर कोने में फैली हैं, और विश्व के 80 से अधिक देशों में हिंदू स्वयंसेवक संघ के रूप में भारतीय संस्कृति का परचम लहरा रही हैं। यह कहानी उस संकल्प की है, जो एक छोटे से विचार से शुरू होकर विश्व के सबसे बड़े सामाजिक संगठन में बदल गया।
नर सेवा, नारायण सेवा
संघ का मूल मंत्र है—’नर सेवा, नारायण सेवा’। यह विश्वास कि मानव सेवा ही ईश्वर की सच्ची भक्ति है, संघ के हर कार्य में झलकता है। चाहे प्राकृतिक आपदा हो, सामाजिक संकट हो, या महामारी—संघ के स्वयंसेवक सबसे पहले सेवा के लिए तत्पर रहते हैं।
2001 का गुजरात भूकंप हो, 2004 की सुनामी हो, या 2020 की कोविड-19 महामारी—स्वयंसेवकों ने बिना किसी भेदभाव के राहत कार्यों में हिस्सा लिया। कोविड-19 के दौरान, जब पूरा देश लॉकडाउन में था, स्वयंसेवकों ने देश भर में भोजन, दवाइयां, और मास्क वितरित किए। सेवा भारती ने सुदूर गांवों में चिकित्सा शिविर लगाए, जहां गरीबों को मुफ्त इलाज मिला। वनवासी कल्याण आश्रम ने जनजातीय क्षेत्रों में शिक्षा और स्वास्थ्य सेवाएं पहुंचाईं, उनकी संस्कृति को संरक्षित करते हुए। ये कार्य केवल सेवा नहीं, बल्कि समाज को सशक्त बनाने का एक यज्ञ हैं।संघ की सेवा केवल आपदा तक सीमित नहीं है। यह सामाजिक समरसता को बढ़ावा देता है। दलित और पिछड़े समुदायों को मंदिरों में पुजारी प्रशिक्षण देने से लेकर, सामूहिक भोजनों का आयोजन करने तक, संघ ने सामाजिक भेदभाव को मिटाने के लिए अनगिनत प्रयास किए।
1934 में महात्मा गांधी ने संघ के शिविर का दौरा किया और वहां छुआछूत की अनुपस्थिति देखकर अभिभूत हुए। यह सेवा भाव ही वह शक्ति है, जो हर स्वयंसेवक के हृदय में बसता है।
शाखा: संस्कारों का अनमोल स्कूल
संघ की शाखा वह पाठशाला है, जहां व्यक्ति निर्माण होता है। सुबह या शाम को आयोजित होने वाली शाखाएं केवल व्यायाम का मैदान नहीं, बल्कि जीवन मूल्यों को सीखने का केंद्र हैं। यहां बच्चे, युवा, और प्रौढ़ एक साथ आकर शारीरिक और बौद्धिक विकास करते हैं। शाखा में खेले जाने वाले स्वदेशी खेल, जैसे कबड्डी और खो-खो, न केवल शारीरिक स्वास्थ्य को बढ़ाते हैं, बल्कि सामूहिकता का भाव भी जागृत करते हैं।
शाखा की प्रार्थना ‘नमस्ते सदा वत्सले मातृभूमे’, शाखा के गीत युवाओं में देशभक्ति की आग जलाते हैं। बौद्धिक सत्रों में राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय मुद्दों पर चर्चा होती है, जो स्वयंसेवकों को समसामयिक विषयों से जोड़ती है। आज भारत में 83,000 से अधिक शाखाएं हैं, जो हर दिन लाखों लोगों को एकजुट करती हैं। यह शाखाएं केवल संगठन का विस्तार नहीं, बल्कि समाज के हर वर्ग को जोड़ने का एक सेतु हैं।
नारी शक्ति का उत्सव: राष्ट्र सेविका समिति
संघ की विचारधारा केवल पुरुषों तक सीमित नहीं है। राष्ट्र सेविका समिति महिलाओं को राष्ट्र निर्माण में बराबर की भागीदार बनाती है। सेविकाएं न केवल बस्तियों में जाकर शिक्षा और स्वास्थ्य सेवाएं प्रदान करती हैं, बल्कि परिवार और समाज को संस्कारित करने में भी अग्रणी भूमिका निभाती हैं।
लक्ष्मीबाई केलकर ने 1936 में राष्ट्र सेविका समिति की स्थापना की, और तब से यह संगठन महिलाओं को सशक्त बनाने का प्रतीक बन गया। चाहे वह आत्मरक्षा प्रशिक्षण हो या सामाजिक जागरूकता के कार्यक्रम, सेविकाएं समाज में परिवर्तन की वाहक हैं। लोकमाता अहिल्यादेवी होल्कर की त्रिशताब्दी जयंती के अवसर पर 27 लाख लोगों ने भाग लिया, जो नारी शक्ति को समाज में स्थापित करने का प्रतीक था।
सामाजिक समरसता: एकता का अमर संदेश
संघ का मानना है कि समाज की एकता ही राष्ट्र की शक्ति है। सामाजिक समरसता के लिए संघ ने अनेक पहल की हैं। ‘एक मंदिर, एक शमशान, एक जलस्रोत’ जैसे विचारों के माध्यम से संघ ने सामाजिक भेदभाव को मिटाने का प्रयास किया। स्वयंसेवक गांव-गांव जाकर लोगों को एक साथ लाते हैं, चाहे वह मकर संक्रांति पर तिल-गुड़ बांटना हो या रक्षाबंधन पर झुग्गी-झोपड़ियों में राखी बांधना।
ये छोटे-छोटे कार्य समाज में प्रेम और भाईचारे का संदेश देते हैं। संघ का यह प्रयास है कि हर व्यक्ति, चाहे वह किसी भी जाति, वर्ग, या समुदाय से हो, भारतीयता के सूत्र में बंधे। यह एकता ही वह शक्ति है, जो भारत को विश्व गुरु बनाने की दिशा में ले जा रही है।
वैश्विक मंच पर भारतीयता का परचम
संघ की विचारधारा केवल भारत तक सीमित नहीं है। हिंदू स्वयंसेवक संघ के माध्यम से यह भारतीय संस्कृति और सेवा भाव को विश्व के 80 से अधिक देशों में ले गया है। विदेशों में रहने वाले भारतीय अपनी जड़ों से जुड़ रहे हैं और विश्व को ‘वसुधैव कुटुंबकम’ का संदेश दे रहे हैं। यह संगठन सिद्ध करता है कि भारतीयता की भावना सीमाओं को पार कर सकती है, बिना अपनी जड़ें छोड़े।
आत्मचिंतन और संकल्प का अवसर
2025 में संघ अपनी स्थापना के सौ वर्ष पूरे कर रहा है। यह अवसर उत्सव का नहीं, बल्कि आत्मचिंतन और पुन: समर्पण का है। संघ ने इस वर्ष को ‘पंच परिवर्तन’ के लिए समर्पित किया है, जिसमें सामाजिक समरसता, पर्यावरण संरक्षण, स्वदेशी, परिवार प्रबोधन, और नागरिक कर्तव्यों पर जोर दिया गया है।
हिंदू सम्मेलनों का आयोजन, ग्रामीण और शहरी क्षेत्रों में शाखाओं का विस्तार, और समाज के हर वर्ग को जोड़ने की योजना इस वर्ष की विशेषता है। संघ का लक्ष्य है कि प्रत्येक गांव और बस्ती तक उसकी शाखाएं पहुंचें, ताकि भारत एक संगठित, आत्मविश्वासी, और सशक्त राष्ट्र बने।
स्वयंसेवकों की अनकही कहानियां
संघ की सौ वर्षों की यात्रा में लाखों कहानियां हैं, जो अनकही रह गईं। एक स्वयंसेवक, जो बाढ़ में अपनी जान जोखिम में डालकर लोगों को बचाता है, या वह युवा, जो सुदूर गांव में बच्चों को पढ़ाने के लिए अपना जीवन समर्पित कर देता है—ये कहानियां संघ की आत्मा हैं।
इन कहानियों में एक बात समान है—निस्वार्थ भाव। स्वयंसेवक वह है, जो बिना किसी अपेक्षा के समाज के लिए जीता है। यह भाव ही संघ को अद्वितीय बनाता है। हर स्वयंसेवक एक दीपक है, जो अपने प्रकाश से समाज को रोशन करता है।
सशक्त भारत का स्वप्न
संघ की यह यात्रा केवल अतीत की गाथा नहीं, बल्कि भविष्य का मार्गदर्शन है। यह संगठन विश्वास करता है कि भारत का हर व्यक्ति, हर समुदाय, और हर विचारधारा एक साथ मिलकर राष्ट्र निर्माण कर सकती है। संघ का सपना है एक ऐसा भारत, जहां हर व्यक्ति अपनी सांस्कृतिक जड़ों से जुड़ा हो, सामाजिक समरसता से बंधा हो, और राष्ट्र के लिए समर्पित हो।
यह कहानी उस व्यक्ति को भी प्रेरित करती है, जो संघ को नहीं जानता। यह उसे बताती है कि संघ केवल एक संगठन नहीं, बल्कि एक परिवार है, जो प्रेम, सेवा, और समर्पण से बना है। यदि किसी के मन में नफरत है, तो यह कहानी उसे प्रेम में बदल देगी, क्योंकि संघ का हर कार्य प्रेम और एकता का संदेश देता है।
राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की सौ वर्षों की यात्रा एक प्रेरणादायी गाथा है, जो हमें सिखाती है कि निस्वार्थ सेवा और संगठित प्रयासों से असंभव को भी संभव बनाया जा सकता है। यह कहानी हर भारतीय के हृदय में देशभक्ति, प्रेम, और समरसता का दीप जलाती है। आइए, इस शताब्दी वर्ष में हम सब मिलकर एक सशक्त, समृद्ध, और एकजुट भारत के निर्माण में सहभागी बनें।